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(१२) हरख्या संघ बाबु शाय ॥ ए॥ की॥ महोडे मीठो हियडे धीठो धर्मग्ग थयो रे, देव गुरु प्रणमे पाय ॥ पुंजे प्रमार्जे चरवला मुहपत्ति रे, धर्मे रंजे आबु शाह ॥ १० ॥ की० ॥ पात्र पवित्र आवो अम घर आंगणे रे, सेवा करे स्वामी सोय ॥ शालि दाल सुखमी जली परे साचवे रे, साचो खामी मुज होय ॥ ११॥ की० ॥ ते निरखे गोख मंदिर मालीयां रे, निरखे कुमरी घरबार ॥ पोल प्राकार शेरी बारी निरखतो रे, निरखे वली तालां कुंची सार ॥ १२ ॥ की० ॥ सामी धामी हरामी त्रीजो ए मख्यो रे, एथी श्वान कहुँ सार ॥ अधर्मवार्ता करवी चिंतवे रे, रजनी हरु ए नार ॥ १३ ॥ की॥
॥दोहा॥ ॥ नगर नबुं मालासपुं, वसे वरण अढार ॥राजधर नामे एक राश्को, रहेतो नगर मकार ॥१॥ आसक राश्काने मल्यो, मित्र थयो उदास ॥ एक जीव काया जुजुवी, बानी वात करे तास ॥५॥ सऊन एसा कीजीए, जेसा सोपारी जंग ॥ आप करावे टुकमा, परमुख दीए रंग ॥३॥ सेवो सऊन अंब सम, अवगुण तजी गुण लेय ॥ उ उथथे प
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