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________________ ( १७ ) ॥ चोपाइ ॥ ॥ सराज बोले ते वाय, चिंता न करो तुम्हे पुत्री माय ॥ मुजने वात कही जे हती, हवे प्रगट थ‍ पाय लागुं जति ॥ १ ॥ एम कही चाल्यो परदेश, सद्गुरु सुण्या बे गुर्जर देश ॥ समरथ साहसिक साह - सधीर, गुरुचरणे जइ भेट्यो वीर ॥ २ ॥ विनय करी गुरु प्रणमे पाय, हियमा जीतर हर्ष न माय ॥ स्वामी तुम्हे बे पुत्रज का, ते जाया पण थिर मवि रह्या ॥ ३ ॥ सहगुरु लख्यो श्रावक सोय, अकह कहाणी ए पण होय ॥ मुज वयण एणे अणुसस्त्रो, हवे हाथ थकी नवि मूकुं परो ॥ ४ ॥ सहगुरु बोले ज्ञाने करी, सोपारा पाटण परिहरी ॥ श्रावो वेराट देश मकार, वीरधवल राजा जयकार ॥ ५ ॥ गुरुवचने ते हरख्यो घणुं, कुटुंब तेमी यावे यापणुं ॥ शुकन नोपम हुआ विशेष, नगर मध्य कीधो प्रवेश ॥ ६ ॥ प्रथम जइ भेटे जिन पास, सकल वंबित ते पूरे यश | जाडे आवास एक कीधो वली, कुटुंब सह तिहां रहे मिली ॥ ७ ॥ प्रथम खंडे ए वातज कही, सदगुरु पासे में पण लही || आमलचूमलो तपति होय, वस्तरा तेजपाल हवे जनमज जोय ॥ ८ ॥ वस्तु ० २ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003691
Book TitleVastupal Tejpal no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1920
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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