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________________ (६५) तब सुनटे मन प्राणी मया, मंत्रीने ते कहेवा गया ॥ स्वामी या व आपणी, ए मति मूको मूंगी पापणी ॥ २० ॥ तव मंत्री इम वयण उच्चरे, एक अंगुली व्यावो ते खरे ॥ सुजट ते तिम करता सही, ते चांगली नगरीए फेरवे वही ॥ २१ ॥ धरम अवज्ञा करशे जेह, तेहज फल वली लदेशे एह ॥ एवो श्रावक वस्तपालज कहुं, एह समो अवर नवि लहुं ॥ २२ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ हवे वस्तपाल एम चिंतवे, मुज शिर वैरी दोय ॥ उदयन बीजो सूर्यमल्ल, सांनिध करे धर्म सोय ॥ १ ॥ वैरी व्याधि वैश्वानर, व्याज व्यसन निवार ॥ ए पंच वकार परिहरे, ते पामे सुख संसार ॥ २ ॥ वैरी रूठो दा दीए, विषधर चंप्यो खाय ॥ विरह विलुधी कामिनी, विष देश परघर जाय ॥ ३ ॥ वैरी ते वैरी सही, जो कीजे शत उपकार ॥ अग्ने घृत जो होमीए, तोहि सुख नवि दीए लगार ॥ ४ ॥ मंत्रीश्वर उदयन हवे, द्वेष धरे अपार ॥ मति विदुणो पापी, वली वैर पोखे गमार ॥ ५ ॥ वस्तु० ५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003691
Book TitleVastupal Tejpal no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1920
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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