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(३)
विशेष ॥ वैराट सिंधु सूरसेन देश, तिहां मथुरा नगरी निवेश ॥ ४ ॥ लाट नोट कर्णाट ए सोहे, देश काशी वाराणसी मोहे | दक्षिण देश विचद नारी, देश केकय अर्ध विचारी ॥ ५ ॥ मगध देश अनुपम लहीए, सामी पंचवीश आरज कहीए | तेहमां नगर कहुं वली ईश, राजगृही नगरी बे जगी ॥ ६ ॥ जिहां धर्म तणी बहु खाणी, तिए राजगृही नगरी कहीवाणी ॥ हुआ मेघकुमार अजयकुमारो, सुलसा रेवइ श्राविका सारो ॥ ७ ॥ राज्य करे त्यां श्रेणिक रायो, शुद्ध समकितधारी कवायो || नित प्रणमे वीर जिन रायो, पद्मनाभं जिन जीव जाणो ॥ ८ ॥ हुआ धर्मी तिहां कयवन्नो, शालिन हुआ वली धन्नो ॥ नालंदो पाडो तिहां होय, चौद चोमासां वीर जोय ॥ ए॥ जोयण नव बारी कहीए, अमरपुरीथी अधिकी लहीए ॥ चरम केवली जंबूकुमारो, बीजा अनेक पुरुष उदारो ॥ १० ॥ राजगृही नगरी ए सारो, तेथी गुर्जर देश मनोहारो ॥ दान मान दयानी खाणी, चतुर देश छानोपम जाणी ॥ ११ ॥ तिदां नगर शिरोमणि कहीए, त्रण नाम तेनां लहीए ॥
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