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________________ (३) वर नमुं, उत्कृष्ट काले होय ॥ विहरमान वीशे नमुं, महाविदेह देत्रे जोय ॥ ७॥ गुरुप्रसादे जिन लह्या, गुरु गरुया गुणवंत ॥ सरस्वती प्रसन्न गुरु थकी, गुरु हितकारी जंत ॥ ए॥ ब्रह्माणी ब्रह्मवादिनी, कविजन केरी माय ॥ वाणी आपे निर्मली, वस्तुपाल गुण गाय॥१०॥ वली तेजपाल ए क्या हुआ, किम राख्युं जग नाम ॥ धर्मकरणी शी शी करी, कहुं माय ताय तस गम ॥ ११॥ गुर्जर देश सोहामणो, सकल देश शणगार ॥ अणहिलपुर नगरी तिहां, धर्म तणो आगार ॥ १२ ॥ ॥ ढाल पहेली॥ ॥ जिनजननी हरष अपारो ॥ ए देशी ॥ जंबूहीपते रुको जाj, लाख योजन तेह वखाएं ॥ जरत क्षेत्र ते मांदे कहीए, पांचसे योजन जाको लहीए ॥१॥ बत्रीश सहस्स अनारज देश, तेमां जैन धर्म लवलेश ॥ सामा पंचवीश आरज देश, तेहमां धर्म कह्यो सुविशेष ॥२॥ अंग बंग कलिंग बे देश, काशी कोशल ने कुरुवंश ॥ वली पंचाल सोरठ कहीए, जिहां शत्रुजय तीरथ लहीए ॥३॥ कुशावर्त्त जांगल वसु देश, सांमिल मायाल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003691
Book TitleVastupal Tejpal no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1920
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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