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________________ (३.) गादी तेहमां धरी जी, शूनी बच्चां तेहमां लीध ॥ १५ ॥ नि० ॥ एहवी दया मंत्री धरे जी, दीन दुर्बल करतो सार ॥ नि० ॥ जीवदया प्रतिपालतो जी, करतो परउपगार ॥ १६ ॥ नि० ॥ एणे अवसर वातज हुइ जी, ते सांजलो नर नार ॥ नि० ॥ ते नगरे वसे व्यवहारी जी, नामे धनपति सार ॥ १७ ॥ नि० ॥ सात पेढी नगरशेती जी, दाम तो नहीं पार ॥ नि० ॥ दान पुण्य ते नवि करे जी, खाय खरंचे नहीं गमार ॥ १८ ॥ नि० ॥ दक्षिणावर्त्त शंख तस घरे जी, ते पूरवे वंबित कोम ॥ नि० ॥ एक दिन शेव सुतो मालीये जी, यावी कहे सुर कर जो ॥ १९ ॥ नि० ॥ शेठ सुतो तुंशा जणी जी, एम कहे सुर शंखराय ॥ नि० ॥ सात पेढी तुम घर रह्यो जी, पूरव पुण्य पसाय ॥ २० ॥ नि० ॥ दृढ मूठी तें चादरी जी, धर्म न कीधो कोय ॥ नि० ॥ एम कही सुर जो रह्यो जी, जाउं वस्तपाल घर सोय ॥ २१ ॥ नि० ॥ धसमसतो शेव उठी जी, लागे सुरने पाय ॥ नि० ॥ कहे किम राख्या तुमे रहो जी, नाना कही सुर जाय ॥ २२ ॥ नि० ॥ चिंतातुर ते शेठ थ्यो जी, ए जीवन जीव कहेवाय ॥ नि० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003691
Book TitleVastupal Tejpal no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1920
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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