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(२५) धन नीसरे ॥ १४ ॥ अनुक्रमे पालीताणे गया, आदेसर पूजी निर्मल थया ॥ नारी कहे पहिरावो संघ, एक प्रासाद मंमावो रंग ॥१५॥ नारीवचने मांड्यो प्रासाद, गगन सरिसो मांडे वाद ॥ घणुं अव्य त्यां खरची करी, यात्रा करी घर आवे फरी॥१६॥ वाटे आवतां जांगी वहेल, पीजणी तलाइ त्रूटी सेल ॥ गाम समीपे वहेल ते जोय, सुतारने लश् जाएं सोय ॥१७॥ गजधरने जश विजवे वस्तुपाल, मुच्य ले काम करो ततकाल ॥ गमार बोल्यो तट्रकी करी, हवां ना, तुं जाने फरी ॥१७॥वस्तुपास दरबारे जइ कहे, तुम्ह नगरे गजधर एक रहे ॥ दाम बापतां न करे काज, ए नगरनी किम रहेशे खाज ॥ १७ ॥ नीच माणस वसवाल होय, अटक बोल ते बोले सोय ॥ नव नारु ने कारु पांच,अधिकीने दीए बहु लांच ॥ २० ॥ शेव सेनापति नरपति जोय, वस्तुपाल वचने हरख्या सोय ॥ नफर एक आव्यो तेणी वार,हवे शब्दे आव्यो सुतार ॥२१॥ लोकवार्ता एणी परे कहे, एकह बेला षटंका लहे॥ वस्तुपाल मन निश्चे कीधा अधिकारण विनाकार काम न सिफ॥२२॥
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