________________
(२४) लक्षणवती पाम्यो संसार ॥६॥वधू आव्ये दारिद्य कीधुं पूर,दिन दिन वस्तुपाल वाध्यु नूर ॥कामकाज घरनां सह करे, कुमली बांधव बे शिर धरे ॥७॥ श्म करतां दिन केता थाय, श्रीशेजेजे संघ यात्रा जाय ॥ पाटणथी संघ पीयाj कीध, अनुक्रमे धोलके आव्या सीध ॥७॥संघ देखी मन उलट थयो, कुटुंब तेमी वस्तग यात्रा गयो ॥ फाटो तूटो डेरो कीध, वांकी वहेल बलद उबला लीध ॥ ए॥ संघ बोहलो नवि पामे गम, तटाककोरे डेरो दीए ताम ॥ पूरव पुण्य श्हां परगट होय, सोवनकलश तिहां नीकले सोय ॥१०॥ वस्तुपाल नोमे खीली धरे, कलश देखी त्यां चित्तडं ठरे ॥ अनुपमदेवी बुद्धिवंती नार, पीयु पूडे एकांत विचार ॥ ११ ॥ सोवन देखी नारी हर्ष अपार, सुलदणी बोली तेणी वार ॥ ए अव्य श्हां रहेवा दी, वाट सारु जोशए ते ली ॥ १५॥ नारीवचन हृदयमां धरी, हती कमा तिहां मूकी परी ॥ चाल्यो संघ साथे वस्तुपाल, गणेशधोलके पोहता ततकाल ॥१३॥ संघ मेव्हाण तिहां डेरा दीध, खणता वस्तुपाल देखे रिक ॥ नारीवचने वली ते तिम करे, गम ठगम एम
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org