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लवण रहे एक वार ॥ ८ ॥ हवे इंद्र तणां सुख जोगवे, वीरधवल राजान ॥ सुधर्मा सजा जिसी दी - पती, राय दीए वस्तगने बहु मान ॥ ९ ॥ बीजो खंग खांते जयो, आशो सुदि बीज वखा ॥ कविजन अति उलट धरी, रास रच्यो गुणखाण ॥ १० ॥ तप
केरो राजी, श्री विजयदान सूरिराय ॥ पंगित गोपजी गणि रंगविजय, मेरुविजय गुण गाय ॥ ११ ॥ ॥ चोपाइ ॥
॥ सरस वचन दीर्ज सरस्वती माय, त्री जो खंग खांते कद्देवाय ॥ वस्तग तेजपाल तो कहीशुं रास, कविजन के पूरो आश ॥ १ ॥ त्रीजा खंगमां बे अधिकार, प्रथम तेजपाल विवाह सार ॥ बीजो युद्धअधिकारज होय, त्रीश राज मंत्री जीते सोय ॥ २ ॥ एहवो बलवंत मंत्री कहुं, एह समो अवर नवि लहुं ॥ वीरधवल इम बोले वाण, धन्य धन्य वस्तपाल तुं सुजाण ॥ ३ ॥ प्रधान राजामन राखे सदा, वचन न लोपे रायनुं कदा ॥ यश बोले सहु मंत्री तणो, वस्तग तेजपाल हरखज घणो ॥ ४ ॥ शेव सेनापति व्यवहारी जेह, प्रधान उपर सहु आ नेह ॥ मंत्री चाले रायने चित्त, बंधव परणावे
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