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(१४) मुख बांधीयुं, सांढ लेश् चाल्यो ततकाल ॥३॥ एह ॥ घमीए जोजन चालती, आवी रजनी मांय ॥ आसापहीए वीयां, निर्जय ते तिहां थाय ॥४॥ एह ॥ वांकी वसमी नूमिका, कोतर जालां नहीं पार ॥ आसो नील तिहां कडं, पसीपति शणगार ॥५॥ एह ॥ पूरवे नगरी करुणावती, जव करण अवतार ॥ नव योजन लांबी वसे, बार योजन विस्तार ॥६॥ एह० ॥ कर्मे कालज व्यापीठ, नगर हां उदवेस ॥आसो चोर तिहां रहे, सुख न दीए लवलेश ॥७॥ एह॥मयवासो सारुये,चोर तणां इतां राज ॥ पाटण हाकम नावतो, त्यां याव्यो आसराज ॥ ॥ एह ॥ पडे गुर्जर देश राजा हुई, महा बलवंत वमवीर ॥ अहमदशा जग जाणीए. राजनगर वास्युं धीर ॥ ए॥ एह ॥ संवत् चौद अगवने, आसो माने रायनी आण ॥ पहिडं नगर करुणावती, हवे आसाउल जाण ॥ १० ॥ एह० ॥ शाह अहमद राजा पालतो, वास्युं अहमदावाद ॥ संवत् अगसठे कहुं, वास्युं महमदावाद ॥ ११॥ एह० ॥ वैशाख वदि सातम नली, पुष्य नक्षत्र रविवार ॥ राजनगर कीधी थापना, जाणे
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