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________________ ( १०५) हवे तप ग केरो राजी, श्री विजयराज सूरि शण गारी रे ॥ २३ ॥ वी० ॥ सकल पंकित शिरोमणि, नाम जपो सहु गुणमालो रे ॥ नामे नव निधि पामीए, पंकित गोपजी गणि रसालो रे ॥ २४ ॥ वी० ॥ तास शिष्य शोजा घणी, साधु तो शणगारो रे ॥ वैरागी गुण आगलो गणि, रंगविजय नामे जयकारो रे ॥ २५ ॥ वी० ॥ तस पदपंकज मधुकरु, सेवानो सुखवासी रे ॥ रास रच्यो रलियामणो, पंदित मेरुविजय उसी रे ॥ २६ ॥ वी० ॥ संवत् सत्तर एकवीश कहुं, चैत्र शुक्ल बीज सारो रे ॥ कानमी वीजापुर सुख लही, रास रच्यो बुधवारो रे ॥ २७ ॥ वी० ॥ श्रावक जन सह महे में, चरित्र रच्यो रसालो रे ॥ लघु प्रबंध वस्तपाल तणो, जोइ रास रच्यो सुविशालो रे ॥ २८ ॥ वी० ॥ जणे गुणे जे सांजले, तस घर मंगलमाला रे ॥ श्रीशांति जिन पसाउले, मेरु पाम्या ली विशाला रे ॥ २५ ॥ वी० ॥ वस्तपाल तेजपाल गुण वर्णव्या, ते तो देव गुरुनो आधारो रे ॥ रंगे मेरुविजय प्रभु विनवे, जिन नामे जयजयकारो रे ॥ ३० ॥ वी० ॥ ॥ इति श्रीवस्तुपालतेजपालरासः संपूर्णः ॥ ॥ श्रीरस्तु ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003691
Book TitleVastupal Tejpal no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1920
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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