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________________ (३५) राज अंतेउर दीगं पुर्बलां, दास दासी नवि दीसे जलां ॥ राजधानी दीठी वस्तुपाल, पजे जर नेटे नूपाल ॥ १६ ॥ ॥दोहा॥ ॥ चतुर चिंते चित्त बापणे, गले कर न जाये कोय ॥ देव गुरु राजा वली, नेटज करवी सोय ॥१॥ दाम दीए राजानेटणे, गुरुमुख पच्चरकाण कीध॥देव. मंदिर आखे कहुँ, विनये पामे सिह ॥२॥ विनयः वंत वारु वाणीया, वस्तग ने तेजपाल ॥ ज रायने चरणे नमे, मेरु वचन वदे रसाल ॥३॥ ॥ ढाल॥ ॥उंचे उंचे डुंगरीए जश् रह्यो, जदूं की, नेमनाथ ॥ मेरे लाल ॥ए देशी॥वारु विचदण वाणी, जश्नम्यो वीरधवल राय ॥ मेरे लाल ॥ सरस सलूणी सुखमी, नेट करीने लाग्यो पाय ॥ मेरे लाल ॥१॥ वारु विचक्षण वाणी, सकल प्रधान शिरदार ॥मेरे लाल ॥धर्म तणो अधिकारी, राजा वीरधवल शणगार॥मेरेला ॥२॥वा॥ए आंकणी॥ विनय करीने विनवे, सांजल तुं नूपाल ॥ मेरे लाल || राज्य सीदाये तुम्ह तएं, श्म बोले त्यां वस्तुपाल ॥ मे ॥३॥वा॥ उत्रीश Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003691
Book TitleVastupal Tejpal no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1920
Total Pages110
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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