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( २० )
सु० ॥ जाल तिलक जलां दीपतां, जमुह धनुष सम जाणी || सरल नासिका दीपती, बोले अमृतवाणी ॥ १२ ॥ सु० ॥ लघुपणे लीला घणी, बालक सरखा रमे दोय ॥ पंच अष्ट वर्ष जे हुआ, पुत्र जणावे सोय ॥ १३ ॥ ० ॥ पद्यं ॥ माता शत्रुः पिता वैरी, बालो येन न पावितः ॥ सनामध्ये न शोजते, हंसमध्ये बको यथा ॥ १४ ॥
॥ दोहा ॥
॥ दशे कापण नावी, सोले कला न होय ॥ वीशे. उदार न पामीर्ज, पढे जलपण वाढे न जोय ॥ १ ॥ विद्या धेनु जास घर, सदा सलूणी होय ॥ क्षण जे दण कशे, मूयां विसूके सोय ॥ २ ॥
॥ ढाल ॥
॥ विद्यावंत जग पूजीए, विद्याधन बानुं होय ॥ राज चोर लेइ नविशके, विद्या नवि सीदावे कोय ॥ १ ॥ सु० ॥ विद्या नगर परदेशडे, विद्या माने नरेश ॥ विद्याथी जरा वाधतो, विद्या जणो विशेष ॥ २ ॥ सु०॥ नृपथी विद्या मोटकी, नृप निज देश पूंजाय ॥ गम वाम विद्या पूजी, माने राणा राय ॥ ३ ॥ सु० ॥ पंच वरष पुत्र पालीए, दश वरष जणावे सोय ॥ सोल
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