Book Title: Mahavir 1933 04 to 07 Varsh 01 Ank 01 to 04
Author(s): C P Singhi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीमान् यह अंक श्रापकी सेवा में नमूने के तौर पर मावश्यक भेजा जाता है आपकी बड़ी कृपा होगी यदि श्राप इसका वार्षिक मूल्य रु० १) व पोस्टज के ।) जुमले रु० १।) के टिकट लिफाफे में बंद कर भेज देंगे इस से कार्यालय वी. पी. की माथाकूट से बच जायगा और श्रापका पैसा जो वी. पी. का लगेगा वह खर्च नहीं होगा इस पत्र को इतना सस्ता देने का साहस आप साहिबों के सहारे पर ही किया गया है। इसको चलाने में कोई खर्चा नहीं रक्खा गया है । इसके सब सम्पादक अवैतनिक हैं फिर भी इसका खर्चा साली. याना एक हजार कापी छपवाने व पोस्ट प्रादि करने में करीब रु. १२००) बारह सौ का है । अतएव हरएक पौरवाल बन्धु व बहिन से प्रार्थना है कि थे पत्र के स्वयम् ग्राहक हो जाय और अपने इष्ट मित्रों को इसके ग्राहक बनावें । यह पत्र पौरवाल महा-सम्मेलन का मुखपत्र है और इससे हर पोरवाल भाई के पास पोरवाल जाति सम्बन्धी हिल चाल के समाचार व जाति को योग्य रास्तों पर लाने की योजनाएं निकला करेंगी और साथ ही साथ पोरवाल जाति के भिन्न २ फिरकों में परस्पर रोटी बेटी व्यवहार पुष्ट करने का आन्दोलन जोरों से किया जायगा। ____प्यारे युवको ! पत्र का चिरायु रहना श्राप पर निर्भर है आप जिस ग्राम नगर और शहर में बसते हैं वहां पर जितने ग्राहक प्रयत्न से हो सकें बनाकर भिजवाने की कृपा करावें । इतनी प्रार्थना पर भी आपने रुपया न भेजा और ग्राहक होने जा न होने की इत्तला न भेजी तो आपका मौन स्वीकृति समझ कर पांचवा अंक १० पी० से भेजा जायगा। --- समर्थमल रतनचन्दजी सिंघी' महामंत्रीश्री अखिल भारतवर्षीय पौरवाल महासम्मेलन, सिरोही, (राजपूताना ) . Page #2 --------------------------------------------------------------------------  Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DOO DOO महावीर (नियमाला) (श्री अखिल भारतवर्षीय पौरवाल महासम्मेलन का मुख पत्र ) पौरवालों का कीर्ति स्तम्भ वर्ष १] अप्रेल से जुलाई १६३३ ई० [ अङ्क १,२,३,४ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकगणची. पी. सिंघी, सिरोही ताराचन्द्र डोसी, भीमाशङ्कर शर्मा, वकील सिरोही ऋखबदास जैन, शिवगञ्ज प्रकाशक समर्थमल रतनचन्दजी सिंघो, महामंत्री-श्री अखिल भारतवर्षीय पौरवाल महा सम्मेलन, सिरोही (राजपूताना . मुद्रक र इसी छूटक अङ्क का मूल्य ॥८) वार्षिक मूल्य मय पोष्टेज रु० १।) के. हमीरमल लूणिया, दि डायमण्ड जुबिली प्रेस, अजमेर. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीर श्रीमान् सेठ दलीचंदजी वीरचंदजी श्राफ सूरत निवासी प्रेसिडेण्ट श्री अखिल भारतवर्षीय पौरवाल महा सम्मेलन (प्रथम अधिवेशन) श्री बामणवादजी महा तीर्थ, सिरोही. D. J. Press, Ajmer, महावीर श्रीमान् सेठ भबूतमलजी चतराजी देलदर निवासी स्वागताध्यव श्री अखिल भारतवर्षीय पौरवाल महा सम्मेलन (प्रथम अधिवेशन) श्री बामणवादजी महा तीर्थ, सिरोही. Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीर महावीर श्रीमान् शेठ कपूरचंदजी उमाजी देलदर निवासी स्वागताध्यक्ष के बड़े भाई, इन दोनों भाइयों ने रु० ५१०००) पौरवाल जैन हाई स्कूल के लिये देना स्वीकार किया है। श्रीमान् जाति भूषण शेठ डाहाजी खूमाजी संघवी Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीर ' (निबन्धमाला) निज देश हित करना सदा, यह एक ही सुविचार हो। परचार हो सद् धर्म, का, याचार पूर्वाचार हो॥ वर्ष १ वी० २४५६ वैशाख, ज्येष्ठ, प्राषाढ़ १९६० अंक १-२-३ पौरवाल जाति की महिमा प्रेषक-ठाकुर लक्ष्मणसिंह चौधरी देवास-सीनियरः . - remain भी वीर प्रभु पद पंकजों में मन हमारा लीन हो! श्री सिद्ध पर प्राचार्य ऊपाध्याय गुण तल्लीन हो ! भी साधु मादेशांनुरागी वाग्विहारी मीन हो ! '- श्री वीर प्राग्वाट् जाति महिमागानगरिमाधीन हो ॥१॥ है पूर्व की महिमा अनूठी, पूर्व है मंगलप्रदा। ." - ... है समुग्वळ पूर्व जिसका, मान होता है सदा ॥ श्री जैन मत उद्धार कर्ता वीर जन्मे पूर्व में । होता उदय सम नाश कर्ता सूर्य शशि का पूर्व में ॥२॥ है पूर्व का वायूहि . वर्षा काल को लाता यहां। यह पूर्व ही धन धान्य दे भब भी जिलाती है जहाँ ॥ महिमान्विता इस पूर्व से पूर्वज हमारे पाए थे। परवीर शतसत रक्षिता श्रीमाता अनमो भाए थे ॥३॥ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २] महावीर प्राग्बाद इसी कारण कहाये अंबिका के भक्त वे । राजा प्रजा के प्रिय सदा कर्त्तव्य में अनुरक्त वे ॥ जब अंबिका का यह वे सब कर रहे थे एकदा । दैवात् स्वयंप्रभ सूरि लाकर टल गई वह आपदा ॥ ४ ॥ उपदेश रसको पानकर प्राम्म्राट् सभी जैनी हुए । जो मूक प्रश्झ के अत्र थे वे प्राणधन दानी हुए || कुछ काल के पश्चात् फिर श्रीमाल महिमा घट गई । aartaarater नगर की आपही से बढ़ गई ॥ ५ ॥ - पुरजब वहां के करगए प्रस्थान नाना स्थान में । प्राग्वाद भी जाकर बसे अन्यत्र हिन्दुस्थान में ॥ गुजरात जांगल में तथा पद्मावती में जा रहे | तबसे उसी स्थळ नाम से अबतक भि जाने जारहे || ६ || उस काल में सम्बुच्ध के साधन नहीं थे आज से । तब बन गई वे ज्ञातियां उनकी जहां जो जा बसे । इतना हुआ वो भी रहे प्रखाद उन्नत सर्वदा | ध्रुव धीर बुद्धीमान वे सम्मान पाते थे सदा ॥ ७ ॥ गुर्जरपती का मंत्रिपद प्रावाट ही के पास था । छक्ष्मी सरस्वती कीर्ति का इनके यहां पर बास था || महामंत्री मुंजाल को यूनान भी था जानता । ब्रह कौन था जो इंडि उनके हाथ की नहीं मानता ॥ ८ ॥ मंत्री विमलसा वीर, लक्ष्मी पुत्र, प्रेमी धर्म का । 3.1.1 सानी न था सेनापती में तेज़ वस्तूपाल का || हैं भाबु के अनुपम् जिनालय गा रहे महिमा यही ! बस शिल्प के ऐसे नमूने पृथ्स में हैं नहीं ॥ ६ ॥ थे राणपुर के भव्य मंदिर के विधाता पौरवाड़ । इनके जिनालय से भट्टा है गोडवाड़ा मारवाड़ || जिनतीर्थं खाली है नहीं इस ज्ञाति के मौदार्य से । इतिहास भी खाली नहीं इस जाति के सत्कार्य से ॥ १० ॥ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पोरवाल जति की महिमा मोडन्य गढ़ के श्रेष्ठ महिसा लाल थे इस होति के थे रत्न पेथंड से अनेकों पुत्र नाना भांति के ॥ प्राग्वाट कर थे दानरत अतिथी चमकती न्याय से । थी बुद्धि श्रद्धायुक्त वे डरते सदा अन्याय से ॥११॥ इन पूर्व के सत्पूर्वजों की है कथा श्रानन्द दा । सत्स्फूर्तिदा है कीर्तिदा हम सब को है शिक्षाप्रदा ॥ हा ! हा ! परन्तु शौक है ! अनभिज्ञता इतिहास की । अब भी खटकती है नहीं, पर्वा नहीं परिहासकी ॥ १२ ॥ वीरत्व को है खो दिया धन्बा लगाया धर्म को । जैनी रहे अब नाम के जाने नहीं उस मर्म को ॥ संतान वीरों की अहा ! निर्वीर्य क्योंकर हो गई । परिवार के स्त्री पुत्र की रक्षाभि कर पाते नहीं ॥१३॥ तळकर क्या ! भब चाकु का उपयोग भी जाने नहीं । बस फूट ईर्षा के सिवा ये न्याय को माने नहीं ॥ मिलकर सभी एकत्र जो निज शत्रु को ललकारते । अब वे परस्पर बड़ झगड़ कर शत्रुओं से हारते ॥ १४॥ धन, धर्म में जो काम श्राता जारहा दुष्कर्म में I पर वर्म ढकने की अपेक्षा घाव करते मर्म में ॥ परमार्थ की इच्छा नहीं सबै स्वार्थ ही में है जुटे । जब किसकी भले इस जाति का न गला घुटे ॥ १५॥ धन के नशे में धुन्द हो विद्या से वंचित हो गए । विद्या गई तब मूर्ख हो धन कोष से कर धो गए ॥ कह रूढियाँ कारण अविद्या के तभी भाकर घुसी । अश्लीलता भी श्राधसी स्त्री गायनों में राक्षसी ॥१६॥ सम्मान भी तो चलबसा बक्काल बनिये बन गये । निज उद्यता को भूलकर लघुकार्य में ही सन गए इसके न उसके अब रहे होना पतन सो हो चुका। भारत् भि अब तो जग उठा है सोनुका सा 1 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .. “महावीर जिस पूर्व की शुभ लालिमा पर कालिमा थी छागई। . .. . . . . विषधुल रहा अब फिर उसीपर लालिमासी आगई ॥ केवल कमी है शक्ति की वह ऐक्य से ही आएगी। , विषमय फुटेली फट जब जड़से उखाड़ी जाएगी ॥१८॥ इस भव्य भारत की सभी ज्ञाती लगी उत्थान में । प्राग्वाट फिर कैसे रहें अपने सुषुप्तिस्थान में ॥ निजदेश के कार्यार्थ मिलकर एक होवेंगे सभी । . उन पूर्वजों की कीर्ति में बट्टा न लावेंगे कभी ॥१६॥ भतएव जागो बन्धुभो ! सुनलो समयकी मांगको । कर संगठन आगे बढ़ी तज रूढियों के स्वांग को ॥ यह क्षेत्र सन्मुख कार्य का कर्तव्य से पूरा भरा। . . .. करना है सेवा देशकी इसमें नहो त्रुटी जरा ॥२०॥ अबतो प्रभो ! आनंदवर्धक श्रात्मबल को दीजिये । निज जाति गौरव स्रोत उरसे शीघ्र प्रसृत कीजिये ।। कर जोड़कर विनयान्विता प्रभु आपसे है प्रार्थना । अानंद मंगल देशमें हो है यही अभ्यर्थना ॥२१॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः प्रकाशक का वक्तव्य.. इस 'महावीर' पत्र को निकालने के लिये ड्राफ्ट रिजोल्युशन में जिक्र किया गया था और उसी अनुसार पोरवाल समाज से प्रार्थना नामक ट्रेक्ट भी श्री अखिल भारतवर्षीय पोरवाल महासम्मेलन के प्रथम अधिवेशन की अखीर ता० १३ को बांटे गये थे। परन्तु उस रोज अधिक वर्षा होने से इस विषय में अधिक प्रगति न कर सके और न उस समय इसके ग्राहक बना सके । महा सम्मेलन के छठे प्रस्ताव के अनुसार इसके उद्देशों का प्रचार करने के लिये पोरवाल समाज से प्रार्थना नामक निबन्ध में विस्तार से उल्लेख कर दिया नोट-उपरोक गायन ठाकुर बमणसिंहजी देवास निवासी ने प्रथम अधिवेशन के समय पर भी:बामणवादजी में पड़ा था। Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक का वक्तव्य है इस लिये यहां पर थोड़े शब्दों में इसके जन्महेतु को लिख देते हैं। पौरवाल जाति को उसकी अज्ञानानन्द भरी मीठी निद्रा से जगाना ही इसका प्रधान कर्त्तव्य होगा । इस पर से साफ जाहिर है कि इस पत्र का कार्यक्षेत्र उदार और विशाल न होकर केवल पोरवाल जाति तक ही परिमित रह जायगा । परन्तु हमारा यह दृढ़ विश्वास है कि किसी विशेष समाज या जाति को जगाने के लिये यही शैली आवश्यक तथा लाम प्रद है । इस शैली को अंगीकार कर केवल अथवा मुख्यतया उसी जाति सम्बन्धी अधिक चर्चा की जायगी। पौरवाल समाज को सच्चे रास्ते पर लाने और जाति में क्रान्ति पैदा करने के लिये कोई पत्र नहीं है और उसको साप्ताहिक रूप में निकाल कर जाति की सेवा करने का मुख्य ध्येय था। परन्तु बिना ग्राहकों के ऐसा साहस करना मुनासिब न समझ कर इसको मासिक के रूप से शुरु करते हैं। हमें इस बात का अनुभव है कि एकदम इस समाज में साप्ताहिक चलना कठिन व दुश्कर है इसका मुख्य कारण यह है कि अभी तक समाज में ज्यादातर अविद्या का प्रचंड जोर है। विद्या के मीठे फल से सर्वथा वंचित है। इस पत्र का मुख्य उद्देश सामाजिक सुधार है इस लिये इसकी उत्पत्ति हुई है। बुरे २ रस्म तथा अनर्थकारी कुरीतियों को जड़ मूल से उठा देने के लिये यह पत्र सर्वदा अपनी आवाज उठाने को तैयार रहेगा। इस पत्र का वार्षिक मूल्य रु० २) रखने का विचार था परन्तु इसके उद्देशों का विशेष प्रचार लक्ष में रख कर इसका वार्षिक मूल्य रु० १) रखा गया है। और यह साहस अल्प मूल्य में इस पत्र को देने का केवल इस लिये किया गया है कि सर्व साधारण इसका लाभ उठा सकें। हमारे समाज में वाचन की रुचि बढ़े यही इमारा ध्येय है। इस साहस से जो कुछ हानि होगी उसे सहन करने को सम्मेलन तैयार है। सर्व साधारण को यह सुन कर प्रसन्नता होगी कि इस पत्र का सम्पादन करने में अवैतनिक कार्य करने के लिये श्रीयुत् ताराचंदजी डोसी, श्रीयुत् भीमाशंकरजी शर्मा वकील, श्रीयुत् बी० पी० सिंघी ( सिरोही) व श्रीयुत् खबदासजी जैन, पौरवाल (शिवगंज) ने कबूल किया है। इस लिये सम्मेलन उनको धन्यवाद देता है। इन व्यक्तियों का पोरवाल समाज को नवीनता से Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Lada महावीर परिचय कराने की आवश्यक्ता नहीं है। पत्र सम्पादन एवं लेखन कला का इनको पर्याप्त अनुभव है और जिसका प्रत्यक्ष परिचय हम अखिल भारतवर्षीय पौरवाल महा सम्मेलन, ( बामणवाड़जी ) के प्रथम अधिवेशन के अवसर पर पा चुके हैं । हमको आशा ही नहीं प्रत्युत दृढ़ विश्वास है कि इन महानुमानों की लेखनी, हमारे निद्रित समाज को जागृत कर उसको कर्तव्य परायण बनाने में अवश्य फलीभूत होगी । अन्त में सर्व साधारण से हमारा यही निवेदन है कि इस पत्र को अपनाने मैं किसी तरह हाथ पीछे नहीं खींचे और साथ ही साथ उन महाशयों से जो कि पत्र मंगा कर केवल ताक में रख देते हैं, हमारी यह प्रार्थना है कि वे जाति हित के लिये एक दफा पत्र को पढ़ें अगर न पढ़ सकें तो अपने इष्ट मित्रों से पढ़ा कर जाति को उन्नति के पथ पर ले जाने की लगन सदा अपने अंदर रखा करें । समर्थमल रतनचन्दजी सिंघी, महामंत्री, श्री श्र० भा० पो० महासम्मेलन, सिरोही. पौरवाल जाति प्रगति की चोर आज कल संसार की समस्त जातियां अपनी २ उन्नति करने का प्रयत्न कर रही हैं। जहां दृष्टि डालते हैं वहाँ सब जातियां तन मन धन से अपने उत्कर्ष के लिये प्रयास करती हुई मालूम पड़ती हैं । सब जगह 'उन्नति' तथा 'सुधार' की पुकार सुनाई देती है । सामाजिक सुधार की अब सबको आवश्यक्ता दीखने लगी है । सब जातियां अपने समाज हित के लिये अपने गिरते हुए समाज को पुनः प्रगति के मार्ग पर लाने के लिये इन दिनों घोर परिश्रम कर रही हैं | स्थान २ पर सभाएं स्थापित हो रही हैं । उपदेशकों का पूरा प्रबन्ध किया जा रहा है । आर्यसमाज किस जोश व उत्साह से कार्य कर रहा है. यह किसी से छिपा नहीं है । यदि सच पूछा जाय तो इस शताब्दी में गाढ़ निद्रा से सोई हुई हिन्दु जाति को जगाने का महत्वपूर्ण कार्य आर्यसमाज ने ही किया है ! स्त्री जाति में ज्ञानभानु का प्रकाश फैलाने का आर्यसमाज ने निस्संदेह बहुत ही प्रशंसनीय कार्य किया है । कहने का तात्पर्य यह है कि इस शताब्दी के Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पोरवाल जाति समति की ओर tw प्रकाशमय समय में किसी जाति को, किसी देश को किसी भी तरह से अन्धकार में रहना नहीं सुहाता । सब जातियों के नेतागण अपनी २ कौम के लिये कल्याणप्रद मार्ग की खोज में लगे हुए हैं। एक प्रकार से सब जातियाँ उन्नति की घुड़दौड़ में आगे बढ़ रही हैं और इसी उद्देश्य के अनुसार पौरवाल जाति श्री खनति की ओर अग्रसर होने का प्रयास कर रही है जिसका ताजा दाखिला आपके सामने मौजूद है कि एक माह पहिले श्री अखिल भारतवर्षीय पौरवाल महासम्मेलन का प्रथम अधिवेशन श्री बामणवाड़जी महातीर्थ में ता० ११-१२-१३ अप्रैल सन् १६३३ ई० को हुआ था और उसमें जो प्रस्ताव १६ पास किये गये हैं उनको देखते यह प्रतीत होता है कि यदि पौरवाल समाज ने इन प्रस्तावों का पूर्णतया पालन किया तो इसमें कोई भाथर्य की बात नहीं है कि जाति की उम्रति थोड़े समय में हो सकेगी और अपने समाज की खोई हुई कीर्ति को पुनः प्राप्त कर सकेगी । इस स्थान पर प्रस्तावों पर उल्लेख करना अनुचित नहीं होगा । प्रस्ताव नं० १ -- श्रीमान् राज राजेश्वर महाराजाधिराज महारावजी साहेब सिरोही को धन्यवाद का । प्रस्ताव नं० २ - विद्या प्रचार का जिसके लिये एक कमिटी १५ महाशयों की बनाई गई है जो इस विषय पर अपनी रिपोर्ट आगामी अधिवेशन के पहिले प्रबन्धकारिणी कमेटी को पेश करे । प्रस्ताव नं० ३ - मृत्यु सम्बन्धी जीमन ( टोणा मौसर ) को बंद करने के विषय में है । यह प्रस्ताव बहुत ही महत्वपूर्ण है और इससे समाज को बड़ी २ हानिएं हो रही है। सम्मेलन के उत्साही कार्यकर्त्ताओं ने इसको पास कर समाज के सामने एक उदाहरण उपस्थित किया है परन्तु खाली कागजों के पन्नों पर पास करके रहने देने से काम नहीं चल सकेगा इसके लिये अधिक प्रयास की शरूरत है । • प्रस्ताव नं० ४ -- कन्याविक्रय की महा निन्दित प्रथा को बंद करने के विषय में है जो अति उत्तम है। परन्तु यह प्रथा पोरवाल समाज में जोरों से घर करके बैठी हुई है जिससे समाज को परित्राण पाना बड़ा कठिन है। इसके लिये गांव २ के नवयुवकों को तैयार करना जरूरी है। युवक और युवतियों के सत्याग्रह से ही यह प्रथा बंद हो सकती है जिसके लिये प्रयास करना बहुत जरूरी है। Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ = ] · महावीर प्रस्ताव नं० ५ - वृद्धविवाह को रोकने व कन्या और वर की उमर नियन्तृत करने के विषय में है जो समय को देखते हुए ठीक है। इस विषय में बृटिश सरकार ने शारदा एक्ट पास किया है और उसी के अनुसार इन कानूनों को तोड़ने वालों को सजाएं हो रही हैं। भारत की बहुतसी रियासतों ने भी इस कानून को पास किया है । उम्मेद है कि सिरोही राज्य मो अपनी प्रजा के श्रेय के लिये इस कानून को पास करे और प्रजा का आशीर्वाद प्राप्त करे। जहां कि प्रथम सम्मेलन हुआ है | प्रस्ताव नं० ६ - महा सम्मेलन के उद्देश्य व प्रस्तावों का प्रचार करने के लिये एक मुख पत्र को प्रकाशित करने के विषय में है और उसी के अनुसार यह ' निबन्ध माला ' के रूप में प्रकाशित होरहा है । प्रस्ताव नं० ७- - हाथी दांत के चूड़े को सर्वथा बंद करने के विषय में है। यह प्रस्ताव पास कर ६०००० हजार हाथियों की हिंसा बंद करने के विषय में जो प्रयास किया गया है अति प्रशंसनीय है और इस प्रसङ्ग पर योगनीष्ट शांतमूर्ति अनन्त जीव प्रतिपाल योग लब्धी सम्पन्न राजराजेश्वर भी शान्ति विजयजी महाराज ने बहुत कुछ उपदेश दिया जिस पर सारा पण्डाल क्या स्त्री और क्या पुरुष सब ने आइन्दा चूड़ा न पहिनने व पहिनाने व खरीदने का उनके सामने प्रण किया। योगनिष्टजी से निवेदन है कि वे इस विषय में पूर्णतया उपदेश देवें ताकि यह प्रथा सर्वथा बंद होजाय ।* प्रस्ताव नं० ८ - देश और समाज की मौजूदा आर्थिक स्थिति देखते सम्मेलन ने विवाहादि प्रसङ्गों पर कम खर्च करने का जो प्रस्ताव पास किया है। वह समयोचित है । अतः हर गांव की पंचायत से निवेदन है कि वे इस पर पूरा पूरा अमल करे । प्रस्ताव नं० ६ - विवाहक्षेत्र को विस्तृत करने के विषय में है जो समाज को टिकाने में साधनभूत है विवाहक्षेत्र को विस्तारित करने और जाति में सामाजिक सुधारों की झड़ी लगाने और उनको कार्यरूप में रखने के लिये जांति के उत्साही युवकों व युवतियों को कार्यक्षेत्र में उतर जाना चाहिये। पौरवाल जाति के हरएक विभाग को इसे कार्य रूप में रखने के लिये अपनी २ * नोट -- इस विषय में विशेष जानना होतो बहिनों से दो बातें " नामक पुस्तक सम्मेलन ऑफिस द्वारा प्रकाशित को देखें । "" Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पोरवाल जाति प्रगति की ओर पंचायतों में पूर्ण मान्दोलन करना चाहिये और जहां तक हो इसको शीघ्रमेव कार्य रूप में परिणित कर देना चाहिये । : प्रस्ताव नं० १०-वैश्यानृत्य, आतिशबाजी और फूलवाड़ी को बंद करने के विषय में है। प्रस्ताव नं० ११-रेशमी कपड़ा हिंसात्मक होने से बंद किया गया है एक बार रेशम को तैयार करने में ४०००० हजार तक कीड़े मारे जाते हैं। यह हिंसामय प्रवृत्ति है इसलिये अनुरोध है कि समाज का कोई व्यक्ति रेशम को नहीं खरीदे । :: .. प्रस्ताव नं० १२-सम्मेलन के स्थाई फण्ड के विषय में है जो विद्या प्रचार कमिटी की रिपोर्ट आने बाद एकत्रित करने की योजना अमल में आयगी । प्रस्ताव नं० १३-प्रबन्धकारिणी समिति नियत करने के विषय में है जो ४१ सदस्यों की होगी जिसके लिये प्रान्तवार पत्र व्यवहार से निश्चय हो रहा है और निश्रय होते ही सदस्यों के नाम इसी पत्र द्वारा प्रकाशित किये जाएंगे। प्रस्ताव नं० १४-देश की बनी हुई वस्तुओं के उपयोग के विषय में है। इसके लिये हर एक भारतीय का फर्ज है कि अपने देश के व्यापार को तरक्की देने के लिये जहां तक हो सके देश की बनी हुई चीजों का ही उपयोग किया जाय। प्रस्ताव नं० १५-पौरवाल समाज के इतिहास व डाईरेक्टरी के विषय में है और जिसका लिपिबद्ध होना बहुत जरूरी है । उसको शीघ्रमेव कार्यरूप में रखने की आवश्यक्ता है और इस विषय में बात चीत पर यह मालूम हुआ है कि योजना बहुत शीघ्र अमल में लाने का प्रबन्ध हो रहा है। प्रस्ताव नं० १६-श्रीमान् सेठ डाहाजी खुमाजी मडवारीया वालों को नातिहित व धार्मिक कार्यों में लक्ष्मी का अच्छा सव्यय करने से 'जाति भूषण' की पदवी देने के विषय में है । पौरवाल समाज ने जो कदर की है वह अक्षर २ करने योग्य है इसके लिये सेठ डाहाजी तो क्या परन्तु समग्र पोरवाल समाज धन्यवाद का पात्र है। . गो एक दफा सम्मेलन का अधिवेशन हो जाने से और प्रस्ताव पास करने से जाति की स्थिति नहीं सुधरने की है परन्तु उस पर अमल करने से ही जाति की उन्नति हो सकेगी। Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 महावीर समाज में इस मासिक पत्र को प्रकाशित करने की आवश्यहा क्यों और कैसे समझी गई इस पर एक पूरा प्रस्ताव पास हो चुका है फिर भी इस पर विशेष रूप से प्रकाश डालने के लिये और जाति संबंधी पत्र की उपयोगिता को समझाने के लिये इसी अंक में अन्यत्र स्वतंत्र लेख छपा है उसकी ओर पाठकों का ध्यान खींचते हैं। ___ इस समय पोरवाल समाज की दशा अत्यन्त सोचनीय है। इसका सुधार होना अत्यन्त आवश्यकीय है और जिसके लिये प्रयास भी हो रहा है। परन्तु अधिक प्रयास की आवश्यक्ता है। जब तक रोग साध्य होता है तब तक ही उसका इलाज हो सकता है । अभी रोग असाध्य नहीं हुआ है केवल कष्ट साध्य ही है। कुछ परिश्रम करने से उसका समूल नाश हो सकता है। जाति के नेता कहलानेवाले, समाज की उन्नति चाहने वाले, बात २ में धर्म की दुहाई देनेवाले, धर्मगुरू कहलाने वाले सब ही धनी मानी प्रतिष्ठित महा पुरुषों से तथा सर्व साधारण से हमारा यही साग्रह और सविनय निवेदन है कि यदि आप वास्तविक समाज की उन्नति चाहते हो, नहीं, नहीं यदि आप अपने समाज को इस संसार में टिका रखने की प्रबल इच्छा रखते हों तो अब आप कटिबद्ध होकर इस जाति की हित चिन्ता में, इसके कल्याण के लिये उचित मार्ग की खोज में लग जाइये । - हमारे समाज की कैसी सोचनीय गृहणीय दशा हो रही है यह किसी विचारशील मनुष्य से छिपा हुआ नहीं है। यों तो समस्त जातियों में विद्या की कमी है परन्तु उनमें से पौरवाल समाज तो विद्या सरस्वती देवी के लाभों से बिलकुल वंचित है । जब पुरुषों की यह अवस्था है तो फिर स्त्री जाति तो विद्या के विषय में बड़ी सुन्न है । उनके लिये काला अक्षर काली भैस के घराबर है यह कहने में किसी प्रकार की अतिशयोक्ति नहीं है। जब हमारे समाज में स्त्रियों की ऐसी दशा है तो किसी भी प्रकार की उन्नति की आशा करना आकाश पुष्प के समान है। अब तक हमारी माताएं, बहिनें तथा गृह लक्ष्मीएं सुशिक्षित तथा सुसंस्कृत नहीं होंगी तब तक हम किसी भी प्रकार से उन्नति नहीं कर सकते । बोनापार्ट नेपोलियन ने फ्रॉन्स के माताओं की सुशिक्षा को ही उस देश की उत्क्रान्ति का मूल समझा था। Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पौरवाल जाति प्रगति की ओर हमारे पौरवाल समाज में बुरे २ रस्म और रिवाज न मालूम किस तरह से घुसे हुए हैं कि अब उनमें जरा भी परिवर्तन करना धर्म के नियम को सोड़ना माना जाता है। वृद्ध विवाह और बाल विवाह के कीट हमारे समाज के जीवन को बुरी तरह से नष्ट कर रहे हैं । इस विषय पर सम्मेलन ने प्रस्ताव किया है परन्तु इसको कार्यरूप में रखना पोरवाल समाज के नवयुवकों का कर्तव्य है। उपरोक्त दोनों प्रथाएं बड़ी भयानक तथा हानिकारक हैं। अतएव अब इनका यहां से निरन्तर पावासस्थान करने का विचार है । हे जाति के नेताओ ! क्या अब भी मांखें नहीं खुलती ? क्या अभी दुःख का घडा नहीं भरा है ? क्या अभी अवनति चरम सीमा तक नहीं पहुंची ? क्या अभी गिरना और बाकी है ? क्या आपकी निद्रा उस समय आपका त्याग करेगी जिस समय यह विषमयी कुरीतियें जाति का मृलोच्छेदन कर जायगी ? अब क्या कमी रही है ? अबतो अपनी जाति पर दया करके इसके हित के उपायों की योजना करो। कमर कसकर इस जाति की उन्नति करने के लिये अपने प्राणों को अर्पण करदो । जाति के सच्चे नेता व नायक वे ही हैं जो उसके सच्चे सेवक हैं। जो निस्वार्थता से उसकी सेवा करते हों-उसके कल्याण के लिये ही अपने तन मन धन का भोग देते हों। हम कभी उन्नत यहां थे, आज अवनत बन गये । भाव सारे धर्ममय थे, पाप में सब सन गये। हम कभी ऊंचे चढे थे, आज नीचे गिर गये। ये भयानक चक्र हैं हा !, सिर अचानक फिर गये ।। यह हमारी जाति सारी, ग्रह दशा में पड़ गई। दुर्भाग्य इस कीच में, धस कर यहां ही अड़ गई ।। अब दुर्दशा निज जाति की, आंखों लखी जाती नहीं । हे वीर सुत ! ये देख कर भी हा ! तरस आती नहीं ॥ हे दीन रक्षक जिनेश ! मेरी, प्रार्थना स्वीकार हो । इस दुर्दशा का नाश हो, इस जाति का उद्धार हो । मिलकर सभी कुछ सोचकर, उद्योग कुछ ऐसा करै । . कि जिससे जाति पौरवाल, फिर जग कर उन्नति करै ॥ .. -सम्पादक: Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीर पौरवाल समाज का सफल सम्मेलन सत्तर हजार मानव मेदनी में शिक्षा प्रचार और समाज सुधारों के लिये किये गये प्रस्ताव, वीरनगर की भूमि पर पौरवाल समाज के इतिहास का पुनः उत्थान श्री बामणवाड़जी का स्थान श्री बामणवाड़जी तीर्थ सिरोही राज्य में है। इस तीर्थ की यात्रार्थ जानेबालों को बी० बी० एण्ड सी० आई० रेलवे के सज्जन रोड पर उतरना होता है । यहां से ।) मोटर किराया देकर मोटर द्वारा श्री बामणवाड़जी तीर्थ भेटने जाया जाता है। सम्मेलन ने कोशिश कर ।) भाड़ा को कम कराकर सम्मेलन के उत्सव तक तीन आना करा दिया था। श्री बामणवाड़नी महा तीर्थ भगवान् की पवित्र उपसर्ग भूमिका आज जंगल में स्थित है । स्वयम् तीर्थ जैन जगत में भी अर्धदग्ध प्रसिद्ध है परन्तु आज यह तीर्थ श्री अखिल भारतवर्षीय पोरवाल महा सम्मेलन और गोलियां के उत्सव की वजह से प्रकाश में आया है । चैत्री ओलियों के उत्सव व पोरवाल महा सम्मेलन के कार्यक्रम का प्रचार बहुत ही उत्तम रीति से किया गया निससे लोगों का उत्साह इस तरफ झुका और जहां पांच पचीस मनुष्यों की बसती नहीं थी वहां पर पांच हजार भाविकों ने नवपद आराधन उत्सव किया । मारवाड़ में यह उत्सव पहिला व अपूर्व था। रचना का कार्यक्रम अच्छा था नवपद आराधन कार्य उत्साहपूर्ण था और आत्म भक्ति के लिये जो कार्यक्रम निश्चय किया गया था वह अपूर्व था । जैन धर्म के अपूर्व भाव भरे हुए विविध तीर्थों के और भगवान् महावीर के बोध प्रद प्रसङ्ग खास तौर से तैयार कराये गये थे जो जनता को अच्छा बोध पाठ सिखा रहे थे । श्री बम्बई पोरवाल मित्र मंडल के आश्रय के नीचे यह उत्सव आरंभ किया गया था जो अच्छी तरह निर्विघ्न पूर्वक समाप्त हो गया। ता० ५ को श्री विजय वल्लभभूरीश्वरजी के शिष्य परशिष्य चरणविजयजी आदि के आगमन पर लोगों ने योग्य सत्कार किया और व्याख्यानों का लाभ लिया । उपरोक्त मंदिर एक विशाल कोट में घिराहुआ है। कोट के अंदर दुकानें, कोठरियां, धर्मशाला व कमरे इस कदर बनी हुए हैं जिनमें दो हजार मनुष्य बड़े आराम से ठहर सकते हैं। Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पोरवाल समाज का सफल सम्मेलन tla श्री बामणवाडी के कम्पाउण्ड के बाहिर सम्मेलन के डेलीगेटों के लिये वीरनगर की रचना : - ता० ११ अप्रेल सन् १६३३ ई० को सम्मेलन का कार्य शुरू होने वाला था । tara सम्मेलन के कार्यवाहक १५ दिन से पहिले ही आने शुरू हो गये थे । समाज के उत्थान के लिये इस परिषद् की मंत्रणा बहुत समय से चल रही थी और उसको क्रियात्मक रूप देने के लिये लोगो में अपूर्व उत्साह था । इसके प्रथम अधिवेशन को संगीन सफल करने के लिये समाज में जागृति अपूर्व थी । आमंत्रणों के जवाबों को देखते इस बात की खातरी होगई कि विशाल मानव मेदनी इस अधिवेशन को सफल बनाएगी । इस पर से ही श्री बामणवाड़जी के कोट के बाहिर की जमीन में वीर नगर बसाया गया । नगर में अनेक तम्बू वं रावटिएं लगाई गई और ता० ११ अप्रेल सन् १९३३ को यह नगर मानव मेदनी से खचाखच भर गया । 1 वीर नगर के दरवाजे पर ही स्वागताध्यक्ष ने अपना डेरा रक्खा था इससे सार सम्हाल करने का बहुत सुभीता था । स्वागताध्यक्ष वयोवृद्ध हैं परन्तु युवकों से अच्छे कार्यकर्त्ता हैं । वीर नगर में पदार्पण करते ही बांई ओर एक खेमे में उतारा समिति का उसके बराबर के खेमे में तपास ऑफिस रक्खा गया था । इसके द्वारा यात्रियों को ठहराने एवं हर बात को बताने का अच्छा प्रबन्ध हो रहा था । डेरे तंबू और रावटी द्वारा बसाया हुआ नगर जब खचाखच भर गया तब मंदिर के कोट के बाहिर सामने की ओर दूर २ तक के खेतों में डेरे तम्बू लगवाकर आनेवाले ठहराये गये । इस सम्मेलन में करीब पांच हजार मनुष्यों के आने की संभावना थी परन्तु आशा से कहीं अधिक मनुष्यों का आना हुआ। इसमें कई एक कारण थे जैसे - स्वागत समिति का अच्छा प्रचार कार्य, तीर्थ का स्थान, नवपद आराधन उत्सव, आचार्य श्री विजय वल्लभसूरीश्वरजी व योगीराज श्री शान्तिविजयजी महाराज का आना श्रादि । इन सब कारणों के मिलजाने से १७ - १८ हजार मनुष्यों का आना हुआ। सम्मेलन ने वीर नगर के सामने एक बाजार लगवा दिया था जिसको देख कर लोग यह कहा करते थे कि सम्मेलन ने तो जंगल में मंगल कर दिखाया | Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीर श्री पौरवाल सम्मेलन यह पवित्र तीर्थ श्री महावीर भगवान् की उपसर्ग भूमि होने के कारण जैनियों के लिये खास यात्रा करने योग्य है किन्तु इसके चारों ओर जंगल ही जंगल होने से यात्री कम माते जाते हैं। नाने में किसी प्रकार का भय नही है फिर भी प्रख्याति कम होने से बहुत से यात्रियों को तो मालूम ही नहीं है कि हमारा भी यहां कोई तीर्थ है। परन्तु हर्ष है कि अबकी बार चैत्री भोली का उत्सव एवं पौरवाल महासम्मेलन दोनों इसी स्थान पर हुए और इस कारण इस तीर्थ से जो अनभिन्न थे वे भी इसे जान गये । करीब पांच हजार भन्यजनों ने यहां भाकर 'नवपद आराधन उत्सव मनाया । भात्मोन्नति के लिये की गयी तपस्या और उत्सव पूर्णिमा के दिन सानंद पूर्ण होगया। प्राचार्यदेव का आगमन प्राचार्य श्री विजयवल्लभपूरिजी महाराज अपने शिष्य परिवार सहित चैत शुक्ला १२ के दिन वहाँ पधारे । मौजूदा संघ ने आपका खूब जोरदार स्वागत किया । सेठ भभूतमलजी चतराजी ने ३०१) चढ़ावा बोलकर प्राचार्य देव के स्वागत का नेतृत्व ग्रहण किया । चैत्र सुदी १३ के दिन प्राचार्य महाराज की अध्यक्षता में श्री महावीर जयन्ती का उत्सव मनाया गया। जिसमें बाबू गुलाबचंदजी साहब दृट्वा भादि कई एक विद्वानों के माननीय भाषण हुए । योगीराज का आगमन परम योगिराज श्री शांतिविजयजी महाराज चैत्र शुक्ला १५ के दिन पधारे। जिस समय वालंटियरों ने आकर सूचना दी कि योगिराज भा रहे हैं, उस समय जनता में आनन्द उमड़ आया। हजारों भादमी आपके स्वागतार्थ एवं दर्शनार्थ मील भर भागे दौड़े गये । सेठ कपूरचंदजी केशरीमलजी ने ५०१) चढ़ावा बोलकर योगिराज के स्वागत् का नेतृत्व ग्रहण किया । पन्यासजी का प्रागमन दो हजार मनुष्यों का एक संघ पन्यासजी श्री ललित विनयजी महाराज की अध्यक्षता में आया । उसका भी खूब स्वागत किया गया। और सेठ कपूरचन्दजी ऋषभदासजीने ३६५) चढ़ावा बोलकर स्वागत का नेतृत्व ग्रहण किया। Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भी पोरवाल सम्मेलन सभापति का प्रागमन पश्चात् सम्मेलन के योग्य सभापति सूरत निवासी सेठ दलीचंद वीरचंदे भाफ, सेठ रणछोड़ भाई रायचंद जवेरी प्रादि नेताओं का आगमन हुमा। आपका खूब स्वागत किया गया और मोटर में बिठा कर वीरनगर में लाये गये। ...समय पर सभापति महोदय के पधारने पर आपका स्वागत बैण्डबाजे द्वारा किया गया। सात बालकों ने अंग्रेजी में वैलकम का मनोहर गायन किया। श्री. चिम्मनलाल मोजक ने 'ॐ अई भगवंत् नमोरी' कविता द्वारा मंगलाचरण किया। कविरत्न श्री भोगीलाल रतनचंद पाटन वालों ने निम्नलिखित भजन बड़ी अच्छी ध्वनि से गाया । जो उपस्थित मंडली को बहुत पसन्द आया । स्वागत तणा समारंभ थी, हृदय उर्मी ऊछले । भभूतमल ना प्रयास थी, जल हल ज्योति जल हले ।। शोध्या प्रमुख उत्साही ने, सेवा भावी साथे मिल्या । सेठ दलीचन्द शोभता, जेणो नाम तो उज्वल कर्या । पोरवाड़ नी इति तणा, व्यवहार ने सुधार जो। _ 'भोगी' तणी छे बीनती, मरु भूमि ने शोभाव जो ॥ इसके पश्चात् मोजकों के छोटे छोटे दो बालकों ने हारमोनियम पर एक सजन गाया जिसका एक अंतरा इस प्रकार है: मा महावीर तीर्थे मनहर मंडप, देखी दिल ललचाय, मा प्राग्वाट नी परिषद पेखी, हियडूं मुझ हरषाय । ऐ थी ज्ञाति उदय झट थाय ॥ इस समय पंडाल की उपस्थिति करीव १२००० के थी। सभापति के लिये कुर्सी मेज न लगा कर प्राचीन रीत्यानुसार गद्दा तकिया लगाया गया था । उपस्थित सज्जनों में श्री सेठ गुलाबचंदजी दवा, मजिस्ट्रेट साहिब श्री० अमृतलाल मकरसी, पा० जालमचंदजी बापना, श्री० सेठ उदयचंदजी रामपुरिया, श्री० सेठ रखनचंदजी गोलेका श्री० डी० सी० गैमावत, पं० चतुरभुजजी, मोदी रायचंदजी, मोदी इन्द्रनाथजी जोधपुर, सेठ फौजमलजी, बालाजी, संघवीजी डाह्याजी देवीचंदजी, श्री० ठाकुर किसनसिंहजी, श्री लक्ष्मणसिंहजी, श्री० सेठ राजमलजी Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ महावीर .... बल वानी, श्री० सेठ रणछोड़ भाई रायचन्द, बा० सिद्धराजजी डा एम० ए०, चिम्मनलालजी क्लार्फ, सूरत. बा० ताराचन्दजी डोसी, पा० मल्लीनाथजी जैन, सम्पादक अंगरेजी जैन गजट; भीमाशंकरजी शर्मा, अचलमलनी मोदी, ची: पी; सिंघी, प्रेमचंदजी गोमाजी बाली आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। सम्मेलन के सैक्रेटरी श्री० एस०. पार० सिंघी ने आमंत्रण पत्र पढ़ कर सुनाया और पधारे हुए महानुभावों का योग्य शब्दों में सत्कार किया। इसके पश्चात् स्वागताध्यक्ष सेठ भभूतमल चतराजी ने अपना भाषण पढ़ना प्रारम्भ किया। आपके गले में कुछ कष्ट होने के कारण श्री० ठाकुर लक्ष्मणसिंहजी ने शेष भाषण बहुत अच्छी तरह से पढ़ कर सुनाया । पंडाल में ६ लाउड स्पीकर लगे रहने के कारण स्टेज पर बोलने वाले महानुभावों के भाषण श्रोतागण बड़ी सुगमता के साथ सुन रहे थे। शिवगंज निवासी ऋषभदासजी ने सभापति निर्वाचन की आवश्यक्ता बतलाते हुए सूरत निवासी सेठ दलीचंद वीरचंदजी का नाम पेश किया । आपने बतलाया कि यह महाशय कितने योग्य हैं इसका अनुमान आप इसी से लगा लें कि यह सज्जन सूरत के " लेडी विलिंगडन असताश्रम, जैन विद्यार्थी आभम" के प्रमुख और सूरत डिस्ट्रिक्ट कोआपरेटिव बैंक, सूरत जिला सहायक सहकारी मंडल, पीपुल्स कु-आपरेटिव बैंक, श्री धर्मचंद उदयचंद जैन जीर्णोद्धार फण्ड, जैन बनिता विश्राम, जैन महिला विद्यालय, मोहनलाल जी जैन ज्ञान भण्डार, कतारगाँव जैन मन्दिर, आदि अनेक संस्थाओं के सदस्य एवं संचालक तथा प्रमुख हैं। आप बहुत बड़े धनाढ्य होते हुए इतनी समाज एवं देश सेवा में संलग्न रहते हैं। साथ ही साथ यह कहना अनुचित न होगा कि आपका जन्म यहां से दो माइल झाडोली ग्राम में हुआ है। . .. .. श्रीयुत् मूलचंद आशाराम बैराठी ने श्री० जीवनदेवजी नादिया वाले, श्री मवेरचंदजी बीजापुर वाले और भीयुत् एस० आर० सिंघी के समर्थन अनुमोदन के पश्चात् सर्व सम्मति से प्रस्ताव पास हुआ और योग्य सभापतिजी ने अपना आसन ग्रहण किया। आसन ग्रहण करने के पश्चात् सिंघी कुन्दनमलजी सिरोही निवासी की कन्या पंखूबाई ने आकर आपके मस्तक पर तिलक किया। Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ' पोरवाल सम्मेलन मि० एस० आर० सिंघी ने सम्मेलन के नाम आये हुए निम्न लिखित सज्जनों के तार व पत्र पढ़ कर सुनाये । इनमें पाबू पूरनचंदजी नाहर कलकत्ता, सेठ कस्तूरभाई लालभाई अहमदाबाद, सेठ अमरचंदजी कोचर बैंकर और श्रानरेरी मजिष्ट्रेट फलोदी, सेठ मोहनलाल मगनलाल जौहरी अहमदाबाद, जैन श्वेताम्बर कान्फ्रेंस, लल्लू भाई गुलाबचंद जौहरी, मुनिराज श्री जयंतविजयजी, हिमाशुविजयजी, सेठ फूलचंदजी झाबक फलोदी, जैन युवक संघ बम्बई, सिरोही के हिज हाइनेस महाराजा साहब और दीवान साहब, सेक्रेटरी साहब, सेठ मणीलालजी नानावटी सर सूबा बड़ौदा, डाक्टर बालाभाई नानवाटी बड़ौदा आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। - पाटन वाले श्री भोगीलाल रतनचंद कवीश्वर ने 'स्नेह करूं सन्मान" कविता में योगनिष्ट श्री शांतिविजयजी महाराज व आचार्य भी विजयवल्लभसूरिजी महाराज को बंदना करते हुए मंगल गान किया। ___ इसके पश्चात् सम्मेलन के सभापति सेठ दलीचंद वीरचंदजी ने अपना प्रभावशाली भाषण पढ़ कर सुनाया। फिर विषय विचारिणी समिति के सदस्यों का चुनाव होकर पहिली बैठक का कार्य पूर्ण हुआ । रात्रि को इसी पंडाल में विषय विचारिणी समिति की बैठक हुई जो रात के १॥ बजे तक होती रही। दूसरा दिवस - ता. १२-४-३३ के दिन प्रातःकाल योगिराज श्री शांतिविजयजी महाराज और पन्यास श्री ललितविजयजी महाराज छत पर खड़े थे कि उनको देख कर सैकडों आदमी दर्शनार्थ नीचे खड़े हो गये और 'गुरुदेव की जय' 'शांतिविजयजी की जय' के नारे लगाने लगे। योगिराज ने अवसर देख कर उपदेश देना प्रारंभ किया। आपका उपदेश बहुत असरकारक था। आपने फरमाया कि अपना और अपने समाज का उद्धार चाहते हो तो विश्व प्रेम करना सीखो। आपस में संगठन रक्खो जगत् में अहिंसा धर्म का जितना प्रचार कर सकते हो, करो । स्त्रियों को संबोधन करके कहा कि अहिंसा धर्म के अनुयायी होकर हाथी दांत का चूड़ा पहिरती हो यह किसी प्रकार उचित नहीं है। इस पर बहनों ने हाथी दांत का चूडा न पहिरने का बचन दिया। फिर Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८] श्री महावीर पन्यासजी महाराज, श्री० समरथमलजी सिंघी और जवाहरलालजी लोढ़ा से योगिराज ने कुछ बोलने के लिये जोर दिया, आज्ञानुसार उक्त महानुभावों ने योगिराज के वाक्यों के समर्थन में ही भाषण किये । दोपहर के समय सम्मेलन की दूसरी बैठक प्रारम्भ हुई । कवि भोगीलाल भाई ने मंगलाचरण रूप 'नमो नमो मंगलमय महावीर ' भजन गाया । इसके पश्चात् महिदपुर के एक विद्यार्थी का भजन हुआ। श्री० जवेरचंदजी खंडवा वालों ने 'स्वागत आज तुम्हारो भाई' कविता द्वारा स्वागत किया । भोजकों के दो बालकों ने 'बंधुओं बामणवाड़जी तीरथे रे' गायन किया । तत्पश्चात् जो प्रस्ताव पेश हुए वे अलग एक साथ दिये गये हैं । पांच प्रस्ताव हो जाने बाद एक भजन विद्यार्थियोंने गाया । फिर उमेदपुर व राणा के विद्यार्थियों ने मिल कर योगिराज श्री शांतिविजयजी की स्तुति रूप एक भजन गाया, जिसका एक अंतरा यह है : -- मरुधर को तार दिया ब्रह्मचारी योगी ने ॥ टेक ॥ सोते थे हम सब गफलत की नींद में । या जगाय दिया ब्रह्मचारी योगी ने ॥ इस गायन के पश्चात् योगीराज श्री शांतिविजयजी महाराज ने मधुर देशना दी । हाथी दांत का चूड़ा पहिरना नहीं चाहिये इस पर आपने इतना असरकारक उपदेश दिया कि स्त्रियों के कहने पर वालंटियर आकर कहने लगे कि यदि पुरुष मान जांय तो हम हाथी दांत का चूड़ा पहनना छोड़ने को तैयार हैं। पुरुषों को समझाने पर सैकड़ों पुरुषों ने भी त्याग कराने का प्रण लिया । अन्त में सब सभा में यह निश्चय हुआ कि एक दम से चूड़े का त्याग कर देना मारवाड़ के लिये कठिन बात होगी । धीरे २ त्याग हो सकता है । अभी इतनी छूट दे दी जाय कि केवल विवाह के वक्त बींदणी को हाथी दांत का चूड़ा पहिनाया जा सकता है । यह बात सबने स्वीकार करली। बाद में पत्र के लिये प्रस्ताव सभापति की ओर से रक्खा गया जो सर्वानुमति से पास हुआ । कल के प्रस्तावों को जनता ने बड़े उत्साह के साथ पास किये। यदि इसी प्रकार जागृति रही तो हमें पूर्ण आशा है कि यह कई टुकड़ों में विभक्त हुई पौरवाल जाति एक दिन अवश्य संगठित हो जायगी जो गौरव भाज केवल इति Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ‘श्री पोरवाल सम्मेलन १६ हास के पृष्ठों पर रह गया है, उसे यह पुनः प्राप्त करके दूसरी समाजों के लिए आदर्श बन जायगी। इसके पश्चात् शांतमूर्ति योगिराज श्री शांतिविजयजी महाराज ने प्लेटफार्म पर आकर अपना असरकारक उपदेश दिया । आपके प्लेटफार्म पर आने के पहिले पण्डाल में बहुत गुल्ल मच रहा था किन्तु प्लेटफार्म पर श्री शांतिविजयजी महाराज को खड़े देखते ही सारे पंडाल में शान्ति छा गई । योगिराज के भाषण का सार "परमात्मा रूपी आत्म बंधुओ ! मुझे यह देख कर बहुत आनंद है कि विघ्न संतोषियों ने इतना विघ्न किया किन्तु उस बात की परवाह किये बिना पाप महानुभावों ने शान्ति पूर्वक कार्य किया है। कतरनी कपड़ा काटने का काम करती है और सुई कपड़ा सीने का काम करती है । कतरनी को दर्जी पैरों तले पटक लेता है और सुई को अपने सिर की टोपी में स्थान देता है। मैं किसी पक्ष को मानता नहीं हूँ। लोग मुझ पर आक्षेप करें तो मैं कहता हूं कि मैं तो सत्य का पुजारी हूँ। मैं यह जानता हूँ कि मुझे नहीं कहना चाहिए । कानून यह कहता है । परंतु आप समझियेगा कि मैं मापका साथी हूँ। नहीं मैं तो विश्व का साथी हूँ। मैं तो कहता हूँ कि लड़ना छोड़ो, विश्व प्रेम सीखो। जहां प्रेम है वहां परमात्मा है। मैं जो कुछ कह रहा हूं वह आपको उपदेश रूप नहीं। मैं तो आप सबको भव्यात्मा समझ कर कुछ निवेदन कर रहा हूँ कैसे—उसी प्रकार जैसे विद्यार्थी मास्टर को भूल दिखाने के लिये अपनी पट्टी दिखाता है । आत्मा अजब है । अजब हो वह अजब को जाने । भाई दूसरे को नीच मत समझो। अपने आप में जब अपवित्रता आती है तब दूसरे को अपवित्र समझा जाता है। किसी को नीच कहना हो तो पहिले अपने मुख के अन्दर ही जबान पर नीच शब्द आता है तब उच्चारण होकर दूसरे तक पहुंचता है। मुझ को यह अनुमान होता है कि आप सब पोरवाल सम्मेलन की रूप रेखा जानते हो, क्या करना है वह बहुत अंशों में पहिचानते हो । इस लिये मुझे इस विषय में अधिक कहना नहीं है केवल यही कि यह सम्मेलन नहीं, दरवीन है । पौरवाल कितने और कहाँ कहाँ है सबको खोज खोज कर भाई की वरह उदय से लगाओ। 'जब मिटेगी खामी तब मिलेगा अन्तर्यानी Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० महावीर प्रतिक्रमण करते हो तो भाई सच्चा प्रति-क्रमण सीखो । 'दब्बो खेतो कालो भावो' । समय पर समय जाने तो वचन बखाने । उनाले के कपड़े सियाले में काम नहीं भाते । समय को देख कर काम करो। समाज सुधार पर भाषण करते साधु संकोच करते हैं, परंतु मैं कहता हूं कि उपदेश जरूर देना चाहिए । आप विचार करें कि जिसके घर कन्या विक्रय होता है उसके वहाँ का माहार साधु को कल्पता है क्या ? राजा भोज ने एक जगह कहा है कि लड़की के गांव का घास, पानी लोहू के समान है । फिर जहाँ कन्या विक्रय हो और पंच उसके यहाँ लाडू जीम आवे तो क्या कहा जाय ? आप विश्व प्रेम करना भूल गये हो लड्डू प्रेम आपके हृदय में भर गया है। तभी तो किसी भाई के घर मृत्यु हो और आप लड्डू जीमने पहुंच जाते हो । अहिंसा से प्रेम हो तो ६० हजार हाथियों की हिंसा अपने सिर क्यों लेते हो ? हाथी दांत का चूड़ा पहिरना पहिराना छोड़ो। चूड़ा प्रत्यक्ष में हाथ पर ही क्या आत्मा पर भी मैल चढ़ाता है। देखो दिगम्बर भाइयों का एक मन्दिर अजमेर में सोनीजी के मन्दिर के नाम से मशहूर है वहां चूड़ा पहिरने वाली स्त्री मन्दिर में नहीं जाने पाती। स्वर्ग के मन्दिर में चूड़ा पहिर कर तुम कैसे जाने पायोगी ?......"इस विषय को आपने बहुत अच्छी तरह समझाया और कहा कि प्रतिज्ञा करो कि चूड़ा नहीं पहिरेंगे न पहिरावेंगे । सम्मेलन भी इसका प्रस्ताव रक्खे । - योगिराज का उपदेश खाली नहीं गया । त्रियों ने अपने स्थान पर से स्वयं सेवकों द्वारा कहलाया कि हम चूड़ा का त्याग करने को तैयार हैं, यदि हमारे मर्द तय्यार हो जाएँ । इस पर पंडाल में चहल पहल मच गई । एक दूसरे को चूड़ा का त्याग करने पर जोर देने लगे। बहुत से पुरुषों ने खड़े होकर एवं हाथ उठा कर चूड़ा न पहिराने की शपथ ली। योगिराज ने अन्त में कहा कि मेरे को माषण के लिये आपने टाइम की जो मिक्षा दी है उसका मैं धन्यवाद देता हूँ । महानुभावो ! इस मरुभूमि में ऐसा महोत्सव यह एक भाग्य का प्रसंग है। गर्मियों में हवा खाने के लिये ठंडे पहाड़ों पर जाने वाले बहुत से भाई मरुभूमि की हवा खाने आये हैं, यह समाज का सद् भाग्य ही समझिये । बस आप अपनी त्रुटियों के जानकार बनिये और उन्हें मिठा कर आगे बढ़िये, यही मेरी नम्र विनती है।" Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री पोरवाल सम्मेलन महाराज का भाषण पूर्ण होने के पश्चात् दूसरे दिन के अधिवेशन की कार्रवाई स्थगित की गई और 'शांतिविजयजी महाराज की जय' का जय घोष के साथ समा विसर्जन हुई। तृतीय दिवस. ता० १३ अप्रेल १९३३ के दिन प्रातःकाल ८ बजे से सम्मेलन के पण्डाल में श्रीसंघ की एक मीटिंग हुई। इस सभा में आचार्य श्री विजयवल्लभमरिजी महाराज, योगराज श्री शान्तिविजयजी महाराज आदि चतुर्विध संघ उपस्थित था । पण्डाल खूब खचाखच भरा हुआ था, कारण उस समय टिकट और बिना टिकट वाले किसी को आने की रोक टोक नहीं थी। मंगलाचरण के पश्चात् सभा का कार्य प्रारम्भ हुआ। एक दो सज्जनों के भजन होने के बाद सम्पादक श्वेताम्बर जैन ने खड़े होकर श्री केसरियानाथजी तीर्थ के विषय में भाषण करते हुए श्रीसंघ के सन्मुख एक प्रस्ताव रक्खा । प्रस्ताव की नकल अलग दी जायगी। शिवगंज निवासी श्रीयुत् रिषभदासजी और जयपुर के सेठ गुलाबचंदजी दवा के समर्थन अनुमोदन तथा प्राचार्य श्री और योगिराज के प्रकाश डालने पर श्री केसरिया नायजी की जय बोल कर उपस्थित जनता ने प्रस्ताव को स्वीकार किया और सर्व सम्मति से पास हुमा । सम्मेलन के योग्य सभापति सेठ दलीचंद वीरचंदजी श्राफ की ओर से मिस्टर ढवाजी ने खड़े होकर एक अभिनन्दन एवं उपाधि समर्पण पत्र पढ़ा । इसमें पंजाब केशरी प्राचार्य श्री विजयवल्लभमरिजी महाराज के विद्या प्रेम और ज्ञान प्रचार की प्रशंसा करते हुए आपको 'प्रज्ञान तिभिर तरणि कलिकाल कल्प तरका विरुद अर्पण करने की इच्छा प्रकट की गई । उपस्थित संघ की सम्मति मिलने पर सभापति महोदय ने खदर पर छपा हुमा उपरोक्त पत्र प्राचार्य श्री को भेट किया। फोटोग्राफरों ने उस समय के दृश्य का फोटो भी लिया इसके पश्चात् स्वागताध्यक्ष सेठ भभूतमल चतरानी ने खड़े होकर दूसरा 'अभिनन्दन एवं उपाधि समर्पण' पत्र पढ़ा। उसमें योगीराज को 'अनन्त जीव प्रतिपाल योगलब्धि सम्पन्न राज राजेश्वर' का पद अर्पण किया । जनता ने 'प्राचार्यदेव व महाराज शान्तिविजयजी की जय' का जयघोष करके हर्ष एवं सम्मति प्रकट की। स्वागताध्यक्ष ने खदर पर छपे हुए 'अभिनन्दन एवं उपाधि समर्पण' पत्र को योगिराज Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ 1 महावीर की सेवा में अर्पण किया। योगिराज ने कहा "संघ जो कुछ कर रहा है वह ठीक है, किन्तु में तो इन उपाधियों को उपाधि ( व्याधि ) रूप ही मानता हूं। मैं जो चाहता हूँ वह देने में कोई समर्थ नहीं है उसे तो आत्मा देर सबेर स्वयम् प्राप्त कर सकेगा। आप मेरे नाम के पीछे पूंछ लगा कर मुझे क्यों परेशानी में डालते हो। जिन सत्कर्मों के उपलक्ष में उपाधियाँ दी जाती हैं उन कर्मों का प्रायः ये उपाधियां स्वीकार करने से विक्रय सा हो जाता है । अनिच्छा होते हुए भी बलात उपाधि का बोझ लादना उचित नहीं है। यह खदर का कपड़ा जो आपने दिया है इसे आप विद्या की झोली समझिये और गुरुकुल के लिये दस पांच लाख इकट्ठा करके ज्ञान वृद्धि कर समाज में प्रादश युवक पैदा कीजिये। हिंसा को रोकिये। हाथी दांत का चूड़ा छोड़िये। विश्व प्रेम सीखिये।" तीसरा 'अभिनंदन एवं उपाधि समर्पण पत्र' पन्यासजी श्री ललितविजयजी महाराज की सेवा में अर्पण किया गया । इसे श्रीमान् दृढाजी ने पढ़ा और पन्यासजी को भेट किया। संघ ने आपके द्वारा विद्या प्रचार के कार्य से प्रसन्नता दिखलाते हुए आपकी सेवा में अभिनन्दन पत्र दिया और आपको "प्रखर शिक्षा प्रचारक मरुधरोद्धारक" विरुद अर्पण किया। उसके लिये उपस्थित जनता ने 'जय घोष' करके हार्दिक प्रसन्नता प्रकट की। आचार्य श्री ने अभिनन्दन पत्र का उत्तर बड़ी योग्यता के साथ दिया । आपने बहुत लम्बा भाषण किया जिसका सार यही है कि 'आप श्री संघ ने उदारता के साथ जो उपाधि प्रदान की है मैं इसके लिये आप श्री संघ का आभारी हूँ, परन्तु मैं इस वस्तु के लायक अपने को किसी हालत में भी मानने को तैयार नहीं हैं। इतना बड़ा भार मुझ पर लादना श्री संघ को योग्य नहीं है। मैं श्री संघ को अधिक कहूं यह मेरे अधिकार के बाहर है। इसलिये यदि श्री संघ इसी काम में राजी है तो मैं इतना जरूर ही कहूंगा कि यदि आपने अपने समाज में से अविद्या रूप अन्धकार को दूर करके प्रकाश डाल दिया और अशांति को दूर करके शांति का साम्राज्य स्थापन कर दिया तब तो आपकी बनी हुई उपाधि किसी रूप में सफल मानी जायगी अन्यथा आपकी दी हुई उपाधि वाकई मेरे लिये एक कर्म बन्ध की तो उपाधि हो जायगी । इसलिये जैसे मैं आपकी बक्षी हुई उपाधि को आप श्री संघ के मान की खातिर बिना इच्छा के भी स्वीकार कर Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पौरवालों की दानवीरता [२३ रहा हूं। इसी तरह आप श्री संघ अपनी बक्षी हुई उपाधि को सफल बनाने का सतत् उद्यम करेंगे, ऐसी श्री शासन देव से प्रार्थना करताहुआ अपने वक्तव्य को समाप्त करता हूं । साथ में इन महात्माओं की तरफ से भी उनकी प्रेरणा से आप श्री संघ के आगे प्रार्थना करता हूं कि इनको दी हुई उपाधि की बाबत भी यही जवाब समझ लीजिये ।। इसके पश्चात् शिवगंज के महावीर विद्या पीठ के विद्यार्थियों ने योगिराज श्री शांतिविजयजी महाराज की स्तुति रूप 'जगत मां सब सन्तो मां' बड़ा सुन्दर भजन गाया । अंग्रेजी जैन गजट के सम्पादक श्री० मल्लिनाथजी जैन ने कुछ भाषण किया । योगीराज के उपदेश से झोरा मगरा में हाई स्कूल व बोर्डिंग के लिये अच्छा फण्ड करीब डेड लाख का हो गया है और उतना ही अधिक होने की संभावना है । सम्मेलन की तीसरी बैठक दोपहर को १ बजे से प्रारम्भ होने को थी किन्तु मेघमाली ने यात्रियों के स्वागतार्थ पानी वर्षाना प्रारम्भ कर दिया। पंडाल सब भीग गया । वर्षा रुकने पर तीसरे दिन की कार्रवाई प्रारम्भ हुई और शेष ७ से १६ प्रस्ताव सर्व सम्मति से पास किये गये । पौरवाल समाज के रत्न मंडवारिया निवासी सेठ डाहाजी खूमाजी को उनके गुणों से मोहित होकर 'जाति भूषण' की गौरवमयी उपाधि दी गई जो इसी अङ्क में अन्यत्र दी गई है। * पौरवालों की दानवीरता और ज्ञाति का सिंहावलोकन (लेखक-श्री पंडित चतुर्भुजजी शर्मा त्रिवेदी. ज्योतिषाचार्य, सिरोही।) श्रीयुत् समापति महोदय एवं उपस्थित सज्जनो! माज इस भूमि का अझे भाग्य है कि देश देशान्तरों से एकत्रित होकर कलिकाल के प्रभाव से व अनेक प्रकार के दशोपद्रव-धर्मोपद्रव समाज विप्लव आदि कारणों से और कालान्त से __*नोट- यह लेख पौरवाल सम्मेलन में पढ़ने के लिये लिखा गया था परन्तु समयाभाव से न पढ़ सके मतएव यहां पर प्रकाशित किया जाता है। ... . सम्पादक, .... Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ ] महावीर अव्यवस्था को प्राप्त हुए निज पौरवाल ज्ञाति का उद्धार एव सुव्यवस्था करने के निमित्त अखिल भारतवर्ष का पौरवाल समाज यहां पर सम्मिलित हुआ है। सज्जनो ! यद्यपि यह देश इस समय मरु भूमि (मारवाड़) राजस्थान, अन्य देशों की अपेक्षा विद्या बुद्धि एवं संपत्ति से रहित और अन्य देशों की दृष्टि में गिग हुआ और असभ्य कहा जाता है, किन्तु सिंहावलोकन दृष्टि से प्राचीन काल की ओर दृष्टि पात करने पर विदित होता है कि इसी भूमि में अनेक वीर पुरुष दानवीर धर्मात्मा विद्वान् एवं ईश्वर भक्त हुए हैं। यवनों के साम्राज्य काल में इसी देश के वीर पुरुषों ने अपनी मर्यादा को संरक्षित रक्खा था। पृथ्वीराज चौहान जैसे महाराणा प्रताप जैसे इसी भूमि के पास पास के वीर पुरुष थे । वशिष्ठ गौतम आदि ऋषि इसी देश में निवास करते थे इतिहास प्रसिद्ध माघकवि एवं ब्रह्म गुप्त ज्योतिषी इसी भूमि में भीनमाल (श्रीमाल) नगर के निवासी थे । भक्त शिरोमणि मीरां बाई इसी देश की राजकन्या थी। जैन धर्म प्रवर्तक हरिभद्रसूरीश्वर आदि अनेक जैनाचार्यों ने इसी भूमि को पावन किया था। पौरवाल वंश कुलावतंस विमलशाह वस्तुपाल तेजपाल भामाशाह मादि दानवीर इसी भूमि के आसन्न प्रदेशों में उत्पन्न हुए थे। इसी भूमि पर अनेक धर्मप्रवर्तक आचार्य जैन धर्म का अवलम्बन कराने वाले प्रोसवाल आदि के मूल पुरुष इसी भूमि पर हुए थे। इसी अर्बुदाचल पर वशिष्ठजी ने अपने अग्निकुंड से परमार, पडीपार, चौहान और चालुक्य ( सोलंकी ) वंश के क्षत्रियों को भी उत्पन्न किया था । अनेक प्रकार के जातियों की उत्पत्ति एवं धर्म परिवर्तन व उच्चावच इसी भूमि पर हुए हैं। इसी देश के क्षत्रीय वीरों ने यवन साम्राज्य काल में हिन्दुत्व एवं जाति कुलाभिमानों की रक्षा व मर्यादा का रक्षण किया है। काल के प्रभाव से "समय के फेरते सुमेरू होत माटी को" इस समय यह देश कतिपय लोगों की दृष्टि में अपठित, मूर्ख, असभ्य ( मारवाड़ी) आदिशब्दों से उपहास्य किया जाता है, किन्तु भारत के अधिकतर प्रान्तो में राज्य शासन करनेवाले राजाओं के भूल पुरुष एवं अधिकतर प्रान्तों में बसी हुई अनेक जातियों के मूल पुरुष इसी देश के रहने वाले थे । अतएव सारे भारत में इसी देशकी विभूति व्याप्त है यदि ऐसा कहा जाय तो इसमें कोई विशेष अतिशयोक्ति न होगी । गुजरात, काठियावाड़, कच्छ, अहमदाबाद, पाटन आदि नगरों में Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पौरपाली की शानवीरता [२५ रहने वाले प्रोसवाल, पौरवाल, श्रीमाली आदि असंख्यजन जैन धर्मावलम्बी एवं वैष्णव धर्मी क्षत्रिय राजपूत आदि प्रजायें एक सहस्त्र वर्ष पूर्व इसी अदाचल की पवित्र भूमि के आसपास चन्द्रावती, अमरावती, लाखावती आदि नगरियों में निवास करती थीं और वहां के निवासी अत्यन्त धनवान् , बुद्धिमान, धर्मनिष्ठ थे, जिनकी धर्म श्रद्धा एवं भाक्ति भाव की सादी आबू कुम्भारिया आदि के जैन मन्दिर स्पष्ट दे रहे हैं। जिन्होंने कोट्यावधि द्रव्य देव-धर्म के निमित्त व्यय किया है। और ऐसे मन्दिर बनवाए हैं कि सारे संसार में धार्मिक भावना का प्राचीन काल का ज्वलन्त इतिहास प्रकट करने वाले अन्यत्र कहीं भी नहीं है। ऐसे अपूर्व और पाश्चर्यकारक व शिल्प कला के चरम सीमा के नमूने बनवाने वाले और भसंख्य द्रव्य को खर्च करने वाले प्रात:स्मरणीय विमणशाह शेठ गुजरात के राजा भीमदेव के प्रधान मन्त्री वीर के पुत्र थे और वे प्राग्वाट ( पोरवाल ) ज्ञाति में उत्पन्न हुए थे । यदि इस अवसर पर ऐसे महानुभाव पुरुष के चरित्र के विषय में थोड़ा कहा जाय तो वह अयोग्य न होगा। पाटन नगर के प्रतिष्ठापक चावडा वंशीय वनराज से मादि लेकर इस वंश के अन्यान्य राजा तथा अनन्तर सोलंकी वंश के राज्यकर्ता राजा उस समय जैनाचार्यों का अच्छा सन्मान करते थे और जैनधर्म की ओर भी अच्छी सहानुभूति एवं श्रद्धा रखते थे। गुजरात में जैनधर्म उस समय उन्नत दशा में था और अधिक तर राज-कार्य पोरवाल वंश के लोग ही करते थे। उनका क्षत्रिय रानामों के साथ विशेष संबन्ध होने से शक्कि (देवी) के उपासक पोरवाल भी अम्बिका आदि देवियों के परम भक्त होते थे । उक्त मंत्री विमनशाह मी जगदम्बा का परम भक्त था और उसकी सहायता से पवित्र भूमि आबू पर प्रथम अम्बिका के देवालय का निर्माण करा कर तदन्तर जैन मन्दिरों का निर्माण कराया था। विमलशाह बालकाल में अपनी माता के साथ कुछ काल अपने मातुल पक्ष में निवास करते थे और विद्याभ्यास करते थे। उनके अलौकिक गुणों से और रूप लावण्य से प्राकृष्ट होकर पाटण के नगर-शेठ श्रीदत्त ने अपनी कन्या श्रीदेवी का संबन्ध उनके साथ किया था। श्रीदेवी भी अत्यन्त सुन्दरी और देवगुरु भक एवं धर्म में पूर्ण श्रद्धा रखने वाली श्राविका थी और दोनों का परस्पर संबन्ध सोने में सुगन्ध की तरह था। उस मुलक्षणी कन्या के साथ संबन्ध होने के Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महापौर ५४ ]. 1 नम्तर उनको बहुत सी निधिएँ प्राप्त हुई थीं और ये राजा भीम के मन्त्री नियत किये गये थे और वे " विद्यया वपुषा वाचा वस्त्रेण विभवेनवा । वकारे पञ्चभिर्युक्तो नरः प्राप्नोति गौरवम् " इन बातों से सर्वथा उस पद के योग्य थे । कुछ काल के अनन्तर वे सेनानायक भी बनाए गये थे और राजा भीम को सिंघ-मालवा एवं चन्द्रावती के परमार राजा धन्धुक के साथ लड़ाइयों में भी साथ दिया था और क्षत्रिय वीरों की तरह शूरता से लड़कर उनको राजा भीम के सामन्त बनाए थे | बाद इन्होंने वर्धमान सूरिजी से चिरकाल पर्यन्त धर्मोपदेश श्रवण किया था । तदनन्तर उन्होंने उनकी प्रेरणा से और जगदम्बा देवी की परम कृपा से, अपने द्रव्य का सद्व्यय करने के अर्थ एवं युवावस्था व राज्याधिकार में अज्ञानता से किये हुए पापों से उद्धारार्थ एवं सद्गति के हेतु जिन चैत्य ( देवालय ) बनवाए । विमल चरित्र में लिखा है कि श्रीमान् गौर्जर भीमदेव नृपते धन्यः प्रधानार्गणीः । प्राग्वाटान्वय मंडनं सविमलो मंत्री वरो प्यस्पृहः ॥ योऽष्टाशीत्यधिके सहस्रगणिते संवत्सरे वैक्रमे । प्रासादं समचीकरच्छशिरुचि श्री अम्बिकादेशतः ॥ इसी प्रकार दूसरे नंबर में महाराजा सिद्धराज जयसिंह के समय पोरवाल वंश के विभूषण अश्वराज ( आसराज ) मन्त्री थे । उनका विवाह देव प्रेरणा से महाभाग्य शालिनी सुलक्षणा कुमारदेवी से हुआ था । उस देवी के उदर से यवन साम्राज्य के प्रभाव से नष्टभ्रष्ट होते हुए जैन धर्म के उद्धारार्थ वस्तुपाल तेजपाल दोनों भाई जन्मे थे । ज्योतिष शास्त्रवेत्ता, भविष्य ज्ञानी, श्रीनरचन्द्र सूरीश्वर ने उनकी जन्मपत्रिका देखी थी और उनके अपूर्व सौभाग्य और पराक्रम के उदय होने का बतलाया था । तदनुसार वे घोलका के महाराणा वीरधवल के मंत्री नियुक्त हुए थे और रायाजी के साथ उन्होंने सौराष्ट्र, गुजरात आदि अनेक देशों का विजय किया था और साथ साथ अनेक जैन वैष्णव तीर्थों का अटन और उनका उद्धार करवाया था और वेद पाठियों के लिये वेद शालाएं बनवाई थी। अपनी मुस्लिम प्रजा की इबादत के लिये, उनकी प्रार्थना पर मस्जिदें बनवाई थी । गिरनार - शत्रुञ्जय श्रादि अनेक जैन पवित्र स्थलों में अनेक देवालय भी बनवाए थे और विजय यात्रा के साथ तीर्थयात्रा Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पोरवालों की दानवीरता । २७ धर्म स्थापना भी की थी और अगणित द्रव्य और खजाने का भी मंग्रह किया था। उसी अवसर पर एक समय गोधरा के राजा धुंधुल से तेजपाल की लड़ाई हुई थी और उस लड़ाई में उक्त राजा को पराजय करके देव सहाय से विजय प्राप्त की थी। उस समय अगणित सुवर्ण मुद्राएं एवं अनेक रत्न जवाहरात और हस्ती अश्व आदि प्राप्त हुए थे। इस प्रकार बड़े समारोह के साथ दिग्विजय करके जब अपने स्थान में पहुंचे तब वहां श्री नपचंद्रसरिजी से उन्होंने धर्मोपदेश श्रवण किया और जीव दया पालन में अपना मन विशेष लगाया, अपने उपार्जित असंख्य द्रव्य का सद् व्यय करने के निमित्त अनेक धर्मशालाएँ, कूप,वापिकातडाग, देवालय, औषधालय, अन्नक्षेत्र आदि बनवाये और कई एकों का जीर्णोद्धार कराया । वस्तुपाल के ललिता देवी और सौख्यलता और एक तीसरे मोढ़ जाति के ठाकर वैश्य की कन्या सहुडादेवी भी थी। इससे मालूम होता है कि उस समय पोरवालों के विवाह संबन्ध अन्तर मोद वैश्यों के साथ भी होते थे। तेजपाल की स्त्री का नाम अनुपमादेवी था। वह धर्म में बड़ी अनुरक्त एवं सुशील सती थी। उसने अनेक व्रतोपत्रास, अठाई महोत्सव, स्वामी वत्सल आदि किए थे और धर्म में प्रवृत्त रहती थी। भनेक तीर्थाटन एवं संघ निकाल कर अपनी अमर कीर्ति सारे संसार में फैलाई थी । उसके संघ का वर्णन किया जाय तो एक बड़ा भारी ग्रन्ध बन जाय तथापि उनका यथार्थ वर्णन यहाँ पर नहीं हो सकता। वस्तुपाल तेजपाल विक्रम संवत् -१२८७ में आबू पर दंडनायक ( न्यायाधीश ) थे और इन्होंने भी पूर्वोक्त विमलशाह के आदिनाथ मन्दिर के संनिहित में ही पवित्र भूमि पर नेमिनाथ भगवान् का मान्दिर बनवाया। जो तेजपाल के पुत्र लूणसिंह के कल्याणार्थ था। इसी प्रकार इन्होंने भारतवर्ष. के अनेक स्थलों में जैन मन्दिर बनवाए और जीर्णोद्धार कराए । विशेषतः इन्होंने कई शिव मन्दिरों का भी उद्धार कराया था। यह बात प्राव के अचलेश्वर मन्दिर में रक्खी हुई प्रशस्ति से विदित होता है । इस प्रकार इनोंने अपने अगणित द्रव्य का सद् व्यय करके अपने देह का उद्धार किया और संसार में नाम अमर किया है । ये पौरवाल वंश के ही भूषण थे। इस तरह इस भूमि पर ऐसे.. अनेक धर्मात्मा दान एवं दयावीर श्रद्धालु हो गये हैं। Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीर २८] लिखा है किमित्वा मार्नु भोजराजे प्रयाते, श्री मुजेऽपि स्वर्ग साम्राज्यभाजि । एकः सम्प्रत्यर्थिना वस्तुपाल, निष्ट त्यच स्पन्द निष्कन्दनाय ।। पुरा पादेन दैत्पारे भुर्वनोपरि वर्तिना, __अधुना वस्तुपालस्य हस्ते नाधः कृतो बलिः॥ इस प्रकार उन महापुरुषों की महिमा का वर्णन किया है। तदनन्तर भी अनेक महानुमाव भक्त हुए जिन्होंने अनेक जीर्णोद्धार एवं धर्म भावना से अपने तन, मन और धन को फलार्थ किया । यवन साम्राज्य का अधिकाधिक उत्कर्ष और धर्म खण्डन मन्दिरों त्याटन आदि कार्य मध्य काल में होते रहे तथापि महान् दुःखों को सहन करके धर्म प्राण जीवों ने अपने अपने धर्म की रक्षा की और यवनों के प्रबल आक्रमण एवं भय से इधर उधर जाना परस्पर भोजन व्यवहार, कन्या व्यवहार बन्द होगए। एवं कालान्तर से व्यवहार और रुढ़ियों ने अनेक प्रकार के रुपान्तरों को ग्रहण किया । यद्यपि और देशों में विद्या बुद्धि का विशेष प्रचार होने से तथा उन लोगों ने देश काल की गति को समझ लिया है और समयानुसार अपने २ व्यवहारों में सुधार कर लिये हैं जो मध्य काल में यवनों के आक्रमण से छिन्न भिन्न होगये थे। हमारा यह मारवाड़ देश अभी सब बातों में पीछे है और विद्या बुद्धि के किश्चित् प्रभाव से समय की गति को नहीं समझ सकता और अनेक कुरूढियों को ग्रहण करके "तातस्य कूपोऽय मिति जवाणा चारं जलं का पुरुषापिवन्ति" इस उक्ति के अनुसार लकीर का फकीर ही होरहा है। किन्तु हमारे कितने एक पठित एवं व्यवहार चतुर पौरवाल महाजन भाइयों ने समस्त भारत के पौरवालों को इस देश में आमन्त्रण देकर अपने उद्देशों को समस्त जातिजनों के समक्ष रख कर उनकी सहमति एवं भाज्ञा से उनमें परिवर्तन करने का एवं धर्म भावना को जागृत करने का यह एक भगीरथ प्रयत्न उठाया है, जो अत्यन्त ही प्रशंसनीय Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ i -- पोरवालों को दानवीरता कार्य है और परमात्मा इनको इसमें अवश्य सफलता दे ऐमी ईघर से बार बार प्रार्थना है तथा इस देश में विद्या बुद्धि धर्म आदि में अधिक जागृति हो यह आन्तरिक इच्छा है। शुभम् । सन्तः सन्तु प्रसमा निज निज कृतिकर्ष सीमानमाता । वेदाङ्गोपाङ्ग लक्ष्मीर्चेलतु मतिमतामास्थरतान्तरेषु ॥ निर्वैरो भक्तियोगः प्रसरतु भवन्ता मैश्वरे ध्येय काये । जीव्यात् सम्रा पितवे प्रकृति हितरतो मारत मालु भूयः॥ परिषद् के निभाव फंड के लिये चन्दा एकत्र करने का काम शुरू करने में माया जिसमें नीचे माफिक रकमों के बचन सम्मेलन को प्राप्त हए:रुपये दाता ७५१) श्रीमान् सेठ दलीचंदजी बीरचंदजी श्राफ, परत ५०१) ,, 'जातिभूषण' डाहाजी देवीचंद, मडवाड़िया ३०१) , , भभूतमलजी चतराजी, देलदर " , रणछोड़ भाई रायचंदजी, बम्बई विजयराजजी लालचंदजी धनराजनी, सिरोही " , उमाजी आंबाजी, मालवाड़ा ,, रायचंदजी दुर्लभजी, परत ", फोजमलजी वालाजी, शिवगंज " " इलाजी पीथाजी, बापला ", हिन्दुनी प्रागाजी, मालवाड़ा "" चिमनलाल भाई एडवोकेट, सूरत २५) ,, मगनलालजी झवेरचंदजी, सूस्त " , नाथालालजी जवेरचंदजी, " २५) , अचलदासजी चिमनलालजी, सूरत " " विनयचंदनी ताराचंदजी, सिरोही २५) " " समर्थमलजी रतनचंदनी, सिरोही ", कुन्दनमलजी जवानमलजी, , २५) . ", ॐकारमलजी नेमाजी " WRec ० ० ० SSSS - Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११) ३० महावीर २५) श्रीमान् वेठ नाथूलालजी रणछोडदासजी, सूरत :२५) , जीवणलालजी कपूगजी, , २१) ,,, बदनमलजी बेसावत, उदेपुर : १५) ...., मगनलालजी मूलचंदजी, मूरत : १५) , प्रेमचन्दजी केवलचंदजी, पालनपुर १५) , वहिवा पूनमचंदजी सोमलजी, सिरोही , मोतीलालजी जवेरचंदजी, खंडवा .. ११) , , छजलालसाजी फतपाजी, सकरगांव ११ , प्यारेलालनी केसरीचंदनी, पंधाना ११) धनाशाजी मगनलालजी,, ११) , मगनलाल जी नानचंद जी, पालनपुर ११) ,, भाईचंदजी कस्तुरचंदजी, सूरत ,, मोतीलालजी, कोटा वाला ,,, भबूतमलजी देवाजी, अगवारी ५) ,, कृष्णलालजी रत्नावत, चंदवासा ५) श्रीमती भबूबाई रावलावाला ५) श्रीमान् किशनसिंहजी लक्ष्मणसिंहजी , दसरतसाजी गजरसाजी, पंधाना , मोतीलालजी दुलीचंदजी, , , छोगालाल सोमाजी, ,, भीखचंद गंगाराजी, वांकली ३) , जेठाजी पूनमचंदनी, अलीराजपुर २) , नानाजी मोतीचंदजी, ,, २) , म्याचंदनी तेजाजी चौधरी कुल जोड़-२,३२६) उपरोक्त रुपयों में से जिन २ महाशयों ने नहीं भेने हैं कृपा कर शीघ्र भेजें। स्वयं सेवकों की सेवा की कद्र करने के लिये रु. २५१) प्रमुख महाशय श्रीमान् शेठ दलीचंदजी वीरचंदजी श्राफ ने दिये । देलंदर, सिरोही, बरलूठ, कालंद्री, मंडवाडिया, बडगाम, मुडारा, खीवागदी, उम्मेदपुर जैन बालाश्रम,वरकाणा Vee८८८८८८ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पोरवालों की दानवीरता जैन विद्यालय भादि के स्वयं सेवकों ने एवं उनके सेनाधिपति (के टन) चुनीलालजी देवराजजी को उनकी सेवा के लिये अभिनन्दन दिया गया। सम्मेलन की कार्यवाई का उप-संहार करते हुए प्रमुख महाशय ने कहा कि-: "शासनदेव की कृपा से हमारे अखिल भारतवर्षीय पौरवाल महासम्मेलन का कार्य सफलता से समाप्त हुआ है इससे सर्व सहश्य सज्जनों को अवश्य आह्लाद होगा। हमारे गुरुवर्यों ने अपने अमूल्य समय का भोग देकर और बिहार की विडम्बनाएं उठा कर संमेलन को अपने पवित्र चरणों से पावन किया है। इतना ही नहीं बल्कि अपनी अमृतमय देशना से सभी जनों पर और खास कर स्त्री समाज के ऊपर जो प्रेरणात्मक संगीन और सनातन प्रभाव डाला है, वह कभी भी भूला नहीं जा सकता । उसके लिये संमेलन के इस अधिवेशन में पधारे हुए आचार्यगण एवं मुनिराजों का हम जितना आभार मानें वह कम ही है। ___यद्यपि यह पहला ही अधिवेशन है तथापि व्यवहारिक दृष्टि से विचार करते हुए, कार्यकर्ताओं की कार्य दक्षता को देखते हुए और हमारे भाइयों का उत्साह देखते हुए हमारी ज्ञाति ने अद्भुत प्रगति की है, ऐसा कहने में किसी प्रकार की अतिशयोक्ति नहीं है । सम्मेलन में जो २ प्रस्ताव पास करने में आये हैं वे बहुत ही अगत्य के एवं महत्व के हैं। उनमें खास करके विद्यालय, हाईस्कूल बोर्डिङ्ग, गुरुकुल छात्रवृत्ति, महिला विद्यालय, व्यायामशाला आदि के प्रस्ताव बहुत ही जरूरी हैं। उनकी स्थापना के लिये जो कमेटियाँ मुकर्रर की गई हैं उनकी आगामी अधिवेशन के अवसर पर तैयार होने वाली रिपोर्ट हमारी शाति के लिये बहुत ही उपयोगी एवं मार्ग दर्शक होगी। उपरान्त दांत के चूड़े, रेशमी कपड़ा वगैरा उपयोग नहीं करने का, स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग की वाक्त, कन्या विक्रय एवं टाणे मौसर का प्रतिबन्ध, वृद्ध लग्न निषेध, समाज में रोटीबेटी व्यवहार सम्बन्धी निश्चय और अन्त में सम्मेलन का मुख पत्र निकालने, डाईरेक्टरी बनाने, के ठहराव समाज के लिये बहुत ही उपयोगी एवं उन्नति के मार्ग में ले जाने वाले हैं। ये प्रस्ताव ताकीद से कार्य रूप में परिणत किये जाय ऐसी भाशा है। Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीर शिवा फण्ड एवं चूड़ा का बहिष्कार यह सम्मेलन का सुन्दर तात्कालिक शुभ परिणाम है। पूज्यपाद आचार्य श्री विजयवल्लभसरिजी के इस प्रॉन्त की शिक्षा के लिये बनाये हुए अनहद प्रेम का सथा सबूत है। सम्मेलन के साथ २ महिला परिषद् की योजना करने से और अनेक पढ़ी लिखी बहनों ने अपने वक्तृत्व से स्त्रियों के दिल पर-बड़ा सुन्दर प्रसर पैदा किया है। इससे जाति की खिये कुरूढ़ियों को कुरूढ़ियों के रूप में जानने लग गई हैं। इस परिषद् में हमारी स्त्रियों के पहनाव, जेवरों का बोझ, कन्या विक्रय आदि विषयों पर बहुत प्रकाश डाला गया है और अनेक स्त्रियों ने अपार उत्साह दिखा कर समयोचित सुधार करने के लिये अपनी इच्छा जाहिर की है। - यह सब उत्साह और सेवा का जोश चालू रखने के लिये और जाति को सुधार की राह पर धीरे २ ले जाने के लिये स्थानिक कार्यकर्ताओं को कटिबद्ध होने की आवश्यकता है। जिस प्रदेश में विद्या का अभाव है और जहां सामाजिक कुरूदिये उग्र रूप में फैली हुई हैं, वहां सुधार का कार्य बहुत ही कठिन है और वह लम्बे अर्से के बाद फली भूत होता है। इसलिये जाति को आगे ले जाने के लिये सम्मेलन की भोर से प्रचार कार्य सतत चालू रखने की प्रावश्यका है। अतः सम्मेलन के तीन दिन के कार्य के बाद कुम्भकर्ण की निद्रा में रहने से काम नहीं चलेगा। हमको हमेशा जागृत रह कर सम्मेलन के किये हुए प्रस्तावों को कार्य-रूप में परिणत कर आगामी अधिवेशन तक सुन्दर कार्य का इतिहास उपस्थित करना होगा। हम अन्तःकरण से चाहते हैं कि दूसरों के विरोध एवं वैमनस्य के होते हुए भी हमने शान्ति एवं सहनशीलता से सम्मेलन का कार्य समाप्त किया है, इससे भविष्य में हमारी जाति की उन्नति एवं जहोजलाली प्राप्त करने में अवश्य फलीभूत होंगे। शासनदेव सब को सम्मति दो और हमारा कल्याण करो। " Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : उपसंहार उपसंहार सभापति के उपसंहार के बाद महामंत्री ने सभापति एवं सम्मेलन कार्य में सहायता देने वाले सज्जनों का उपकार मानते हुए निम्नलिखित विवेचन किया: प्रथम ही प्रथम सभापति महोदय ने सूरत से यहां तक पधारने में अनेक कष्टों को सहन कर सम्मेलन के कार्य को सफल बनाने में जो कार्य दक्षता बतलाई है उसके लिये वे धन्यवाद के पात्र हैं। नेक नामदार महाराजाधिराज महारावजी श्री सर स्वरूपरामसिंहजी, जी० सी० आई० ई०, के० सी० एस० आई० साहब बहादुरजी को कोटिशः धन्यवाद है कि जिन्होंने हमारे महा-सम्मेलन को सफल बनाने में तम्बू, रावटियाँ, पुलिस, पल्टन के सिपाही, डाक्टर आदि देने में पूर्ण उदारता बतलाई और साथ ही साथ मोटर के किराये और टोल टैक्स आदि में कन्सेशन (रिवायत) दिला कर सम्मेलन के प्रति पूर्ण सहानुभूति प्रदर्शित की जिससे लोगों ने अधिक प्रमाण में सम्मेलन से लाभ उठाया । अतएव महारावजी साहब की जितनी प्रशंसा की जाय थोड़ी है। हमारी सिरोही नरेश से प्रार्थना है कि वे इसी प्रकार प्रजाहित के कार्यों में पूर्ण सहानुभूति रखकर प्रजा को उत्साहित करेंगे। अलावा इसके सिरोही राज्य के चीफ मिनिस्टर साहब व अन्य राज्य कर्मचारियों ने सहायता की अतएव उनका भी आभार मानना परम कर्तव्य है। .......... नेक नामदार हिज हाईनेस नवाब साहब तालिमोहम्मदखाँनजी साहब बहादुर पालनपुर नरेश का भी उपकार मानना हमारा परम कर्तव्य व सराहनीय है यहां तक कि आपने अपने अनुमवी तम्बूओं के काम करने वालों को मय .१.२ तम्बुओं के भेजने में पूर्ण कृपा ही नहीं की थी परन्तु पाप श्री ने अपने स्टेट का पूर्ण बैण्ड (बाजा) जिसमें करीब ७५ आदमी हैं आदि देने का हुक्म फरमाया था लेकिन जरूरत न होने से उनको कष्ट नहीं दिया गया। धन्य है ऐसे प्रजावत्सल नरेशों को जो अपनी प्रजा के अलावा दूसरों का भी उपकार करने में नहीं.चूकते। इस वयोवृद्ध अवस्था में मरूभूमि के कष्टों को सहन करते हुए प्राचार्य देव अज्ञानतिमिरतरणि कलिकालकल्पतरु श्री विजयवल्लभसूरीश्वरजी महाराज साहब ने अपने शिष्य समुदाय सहित पधार कर जनता के हृदय में जो जागृति Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीर पैदा की है, उसकी प्रशंसा करना हमारी शक्ति के बाहर है। मगर अन्य मुनिराज भी इस देश के कष्टों के प्रति जरा भी लक्ष न देते आपश्री के समान उपकार वृति में तत्पर रहें तो सम्भव है कि सच्चे धर्म की उन्नति शीघ्र ही होजाय । मगर हमको इस बात का दुःख है कि त्यागी महात्माओं को गुजरात का चरण ही प्रिय है और साथ ही साथ चाय का मोह भी नहीं छूटता । उपकारिक आस्माएं इस क्षेत्र की तरफ अवश्य ध्यान दें। ___ योगनिष्ठ योगीराज अर्बुदाचलवासी अनन्त जीव प्रतिपाल योगलब्धि राजराजेश्वर श्रीमद् शान्तिविजयजी महाराज ने पधार कर शांति का पाठ जो जनता को सिखाया, वह भाग्यशालियों के हृदय से कभी नहीं मिट सकता। मापने भी अर्बुदाचल की मधुर शीतल छाया का त्याग करके अनेक कष्टों को सहन कर यहाँ तक पधारे जिससे हमारे हृदय पर जो प्रकाश पड़ा है उसका कथन करना मेरी शक्ति के बाहर है । अतएव मैं आप श्री का बहुत आभारी हूं। हमारी जैन जाति के जागृत करने का बीजारोपण करने वाले हमारी कॉनफरेन्स देवी के परम पिता वयोवृद्ध श्री गुलाबचन्दजी डड्ढा एम० ए० जयपुर निवासी ने पधार कर हर एक कार्य में हमारी पथ दर्शकता की अतएव हम आपका सहदय उपकार मानते हैं और मापके पुत्र श्रीमान् सिद्धराजजी डड्ढा, एम. ए. एल-एल. बी. ने भी हमारे कार्य में जो सहायता की है उसकी प्रशंसा किये बिना नहीं रह सकते। हमारे स्थानीय महानुभाव श्रीयुत् ताराचन्दजी दोसी, श्री अचलमलजी मोदी, श्रीयुत् बी० पी० सिंधी, श्रीयुत् भीमाशंकरजी शर्मा और पंडित चतुर्भुजजी शर्मा का उपकार भी माने बिना हमसे नहीं रहा जाता। क्योंकि इन महानुभावों ने सम्मेलन के कार्य को अपनाया और सच्ची मित्रता का परिचय दिया, इसके वास्ते मेरा हृदय अन्तःकरण पूर्वक आभार मानता है। शासनदेव ऐसे समाज सेवकों की दीर्घायु करें और साथही साथ मोदी रायचंदजी, बाफना हुकमीचंदजी ने भी सहायता दी इसके लिये उनके नाम का उल्लेख करना योग्य है । मुझे प्रतिनिधि महाशयों से जिन्होंने दर २ से पधार कर अपनी जाति की सहदयता का परिचय दिया है और अनेक प्रकार के कष्टों का किंचित् विचार न कर हमारे कार्य को अपनाया है और साथ ही साथ हर प्रकार के कष्टों को Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपसंहार सहन किया है, उनके हृदय की प्रशंसा जितनी कीजाय थोड़ी है। यहाँ पर इतना कह देना जरूरी समझता हूँ कि यह अव्यवस्थ कष्टों का कारण जनता का धारना से अधिक प्रमाण में आने से पैदा हुआ है। स्थान जंगल में होने की वजह से इतने बड़े समुदाय के वास्ते हरेक के लिये संतोषदायक व्यवस्था करना हमारे सामर्थ्य से बाहर था। अतएव मैं हरेक महानुभाव से इसके लिये क्षमा प्रार्थी हूं। - मुझे जो कार्य पहिले करना था उसको मैं कुछ विलम्ब से कर रहा हूं। भाज कल अकसर हम लोग पतासे बांट कर ही धर्म की प्रभावना समझते हैं मगर सचे स्वामीवत्सल्य का परिचय देने वाले तीन नौकारसी करने वाले महाशयों ने समाज को एक नमूना कर दिखाया है कि खाली अपनी प्रशंसा में टाणे मौसर करने वाले लाखों रुपयों का व्यय कर लक्ष्मी का दुरुपयोग करते हैं उसकी बनिसबत इन उपरोक्त तीनों महाशयों को धन्य है जिन्होंने अपनी लक्ष्मी का सव्यय किया है। अतएव मैं निम्न लिखित तीनों महाशयों का उपकार मानता है और उनकी उदारता के लिये हार्दिक धन्यवाद देता हूँ। (१) श्रीमान् किस्तूरचन्दनी आईदानजी लूणावा (२) श्रीमान् तेजाजी खूमाजी कवराड़ा (३) श्रीमान् तराचन्दजी जैसाजी भैसवाड़ा हमारे समाज के हृदय से सेवाभाव रखने वाले स्वयंसेवकों ने अपने समाज की भक्ति का जो सच्चा परिचय दिया है, उनको मैं कभी भूल नहीं सकता और उनके कार्य से हम लोग बहुत प्रभावित हुए हैं। अतएव में उनका उपकार मानता हूं। इस स्थान पर यह कहना अनुचित नहीं मालूम होगा कि यदि इस सम्मेलन को पूर्ण सफल करने में कोई त्रुटि रह गई है तो उसका भी सहज परिचय देना समय सूचकता से बाहर नहीं है और मुझे पूर्ण विश्वास है कि मेरे स्वर्गीय भ्राता श्रीमान् भभूतमलजी जवानमलजी सिंघी की मृत्यु सम्मेलन के पहिले हो जाना ही है। उनकी दृढ़ इच्छा सम्मेलन मरने के लिये भाज से चार वर्ष पहिले थी और उनके मरने के एक मास पहिले ताराचन्दजी दोसी को इसकी रूप रेखा शीघ्रमेव तैयार करने को जो समय पर न हो सकी और उसी के बीच में एक माह के अन्दर उनका देहान्त हो गया। इसी कारण कार्य आगे चलने से रुक गया उनके मरने के दो वर्ष बाद ये विचार उत्तरोत्तर दृढ़ीभूत होते रहे और वे Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ ] महावीर पहली पत्रिका के रूप में समाज के सामने रक्खे गये जिसके फल स्वरूप यह प्रथम अधिवेशन है। हमारी शासनदेव से प्रार्थना है कि उनकी आत्मा को शान्ति हो । . इस स्थान पर श्रीमान् हजारीमलजी जवानमलजी वांकली निवासी के हृदय की प्रशंसा किये बिना नहीं रह सकते कि जिनका विचार श्री बामणवाड़जी महातीर्थ में अपने खर्चे से पौरवाल सम्मेलन को बुलाने का था जिनका देहान्त भी सम्मेलन के पहिले हो चुका है उनके हृदय में समाजसेवा की लगन अधिक थी। मेरी शासनदेव से प्रार्थना है कि उनकी आत्मा को शान्ति हो । सबका उपकार मानते हुए मेरे हृदय को जितनी प्रशंसा नहीं, उतनी प्रशंसा मुझे मेरे उपकारी महानुभावों के उपकार मानने में होती है। हमारी आत्मा के गुणों का विकास करने में जो सहायता हमको विघ्न संतोषियों के उपद्रवों से मिली और शान्ति का पाठ इन महानुभावों ने सिखाया, उन उपकारियों के उपकार को मानने के लिये कौन सज्जन पीछे रह सकता है। बन्धुओ ! सब शारीरिक गुणों का विकास करने में तो आप सर्व सहायक हैं मगर अात्माओं के गुणों का विकास करने में तो सिवाय उन उपद्रवी महाशयों के और किसको विशेष सहायक माना जा सकता है। केवल दुःख इस बात का है कि हमारी आत्मा ने शान्ति का पाठ सीखा और उनकी आत्मा कषायवश रही। प्रभो ! ऐसे विघ्नसन्तोषी महाशयों को सद्बुद्धि दें। हमारे माननीय देशनायक महात्मा गांधी के समान मारने के पाठ के बदले मरने का पाठ सीखें। केवल कपाल में ही केसर युक्त तिलक लगाने से ही महावीर के सन्नान कहलाने योग्य नहीं हो सकते और न स्वयं सेवक का बैज लगा कर ही समाज के सेवक बन सकते हैं। महावीर के कथनानुसार पथ पर पदार्पण करने से ही हमको महावीर के अनुयायी होने का हक हासिल है। अतएव हमारा फर्ज है कि हम महावीर के चलाये हुए पथ पर चलें। * ॐ शान्तिः * Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निमंत्रण-पत्रिका ॥ ॐ अहम् नमः ॥ श्री अखिल भारतवर्षीय पौरवाल KELKARNA सिरोही ( राजपूताना ) महा सम्मेलन, मुकाम निमंत्रण पत्रिका मिती महा सुद १५ सं. १९८८ श्रीबामणवाड़जी तीर्थ स्टेशन-सजनरोड वैशाख वदी १, २ व ३ तदनुसार ता० ११, १२ व १३ अप्रेल सम् १९३३ ई. स्वस्ति श्री -शुभस्थाने सर्वोपमा लायक श्रीमान्------- Kondave JA DO SADA वीरात् २४५६. की सेवा में, योग्य लिखी सिरोही नगर से श्री अखिल भारत-वर्षीय पोरवाल महा सम्मेलन की स्वागत समिति का जैजिनेन्द्र स्वीकार होवे। यहां सब कुशल हैं, और आपकी कुशलता सदा चाहते हैं। अपरञ्च विदित हो कि अखिल भारत-वर्षीय पोरवाल महासम्मेलन श्री बामणवाड़जी तीर्थ में मिती वैशाख बदि १, २ व ३ सम्वत् १६६ तदनुसार ता० ११, १२ व १३ अप्रेल सन् १९३३ ई० को होना निश्चित हुआ है सो आप सब सज्जन, संरक्षक, सहायक, स्वागत समिति के सदस्य, प्रतिनिधि अथवा दर्शक होकर इस सम्मेलन में सम्मिलित होने को अवश्य पधारें और आपके आसपास के नगर व गांवों के सजनों को भी लेते पधारें। यह अपने सारे समाज का प्रथम सम्मेलन है, और पारस्परिक मेल मिलाप के अतिरिक्त जातीय संगठन व उत्थान का महान् साधन है। इस मौके पर अनेक उपयोगी व्यवसायों पर विशेषज्ञों द्वारा व्याख्यान दिलाने का प्रयत्न किया जारहा है। हमारे समाज के भूषण अग्रगण्य करीब २ सब सज्जनों ने इस कार्य के लिये उत्तेजना दिलाई है। अतएव आपसे सानुरोध प्रार्थना है कि आप इस सुअवसर पर अवश्यः पधारने की कृपा करें। आपके पास निमंत्रणार्थ श्रीयुत् सहक भेजे जाते हैं तो कृपया स्वीकृति- इन साहिबों को देकर समय पर पधारने की कृपा करेंगे। इस परिश्रम से पूर्ण आशा है कि सब साहिब पधार कर सम्मेलन के प्रयोजन व शोभा के बढाने में अवश्य भाग लेंगे। ही इस मौके पर प्रायः करके श्री श्री १००८ श्री श्री श्रीमद् विजयवल्लभसूरीश्वरजी महाराज व उनके शिष्य समुदाय तथा श्री श्री १००८ श्री श्री श्री शान्त मूर्ति योगी. Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ महावीर राज श्री शान्तिविजयजी महाराज के दर्शनों का लाभ होगा। इसके अतिरिक्त इस मौके पर एक संघ गोडवाड़ प्रान्त से भी आवेगा, उस मौके पर कईएक महानुभावों के दर्शनों का लाभ होगा। . चैत्र सुदि ७ से १५ तक चैत्री श्रोलीयों की क्रिया श्री पौरवाल जैन मित्र मंडल बम्बई की तरफ से होगी। उसमें से भी सर्व सज्जन इस सम्मेलन में भाग लेंगे और वहां पर धार्मिक प्रर्दशन होगा। समर्थमल रतनचन्दजी सिंघी, द० भबूतमल चतराजी देलदर निवासी, महामन्त्री, चेयरमैन, स्वागत समिति स्वागत समिति नोट-स्टेशन सज्जन रोड ( पिंडवारा ) से श्री बामणवाड़जी चार माइल है, स्टेशन पर मोटर बैलगाड़ी आदि का इन्तजाम है । बामणवाडजी से दस मील की दूरी पर सिरोही एक जैन नगरी है, जहां पर आधे श्रेत्रुञ्जय के दर्शनों का लाभ भी होगा। सर्व सज्जनें। से सविनय निवेदन है कि हर महाशय अपने २ विस्तर साथ रक्खें । पूज्यपाद शासन-प्रभावक पंजाब-चीर केसरी पंचनद-मरुदेशोद्धारक विद्याप्रेमी प्रातःस्मरणीय बालब्रह्मचारी प्राचार्य महाराज श्री १०८ श्री विजयवल्लभ सूरीश्वरजी की पवित्र सेवा में - अभिनन्दन पत्र एवं उपाधि-समर्पण प्राचार्य श्री ! ___ श्री नवपद चैत्री भोली तथा श्री अखिल भारतवर्षीय पोरवाल महासम्मेलन के अवसर पर भारतवर्ष के भिन्न २ प्रान्तों से श्री बामणवाड़जी तीर्थ में एकत्र हुआ यह समस्त जैन संघ आपके विद्याव्यासंग, धर्म और समाज की प्रगति के लिये आपके भगीरथ प्रयास और अज्ञान दशा में पड़े हुए हमारे अनेक माईयों के उद्धारार्थ आपके द्वारा की हुई महान् सेवाओं का स्मरण करके आपके प्रति अपना हार्दिक पूज्य भाव व्यक्त करता है। Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ न्यायांभो निधि जैनाचार्य श्रीमद् विजयानंद सूरि (श्री आत्मारामजी महाराज) के पट्ट धर CBBBBBBBBBBBBBBBBBBBBEDEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEAS COPEEEPPERt44 FEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEGHAREERAGE FEEDBACORE:444442EEEEEEEEEEEEEE:++44444444444440 OBBPPDPEOPOPPOPPEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEES जैनाचार्य श्री श्री १००८ श्रीमद्विजय बल्लभसूरीश्वरजी Page #46 --------------------------------------------------------------------------  Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निमंत्रण पत्रिका [३t स्वर्गीय भ्यायाम्भोनिधि जैनाचार्य श्रीमद् विजयानन्द सूरीश्वर (प्रसिद्ध नाम श्री प्रास्मारामजी ) महाराज ने अन्तिम अवस्था के समय पंजाब के जैनों के हृदय का दर्द पहचान कर उनको आपके सुपुर्द किया था। तदनुसार आप श्रीगुरुदेव के ध्येय की पूर्ति के लिये अपने जीवन में महान् परिश्रम उठा कर पंजाब में जैनत्व कायम रखने में सफल हुए हो। ___ तदुपरांत श्री महावीर विद्यालय की स्थापना करके तथा श्री आत्मारामजी महाराज के पट्टधर की पदवी को सुशोभित करने की जैन जनता की आग्रहयुक्त विनति को मानकर पंजाब में ज्ञान का झण्डा फहरा कर अपने सद्गत गुरु महाराज की आन्तरिक अभिलाषा को पूर्ण किया। मापने गुजरानवाला, वरकाणा, उम्मेदपुर तथा गुजरात काठियावाड़ वगैरह स्थलों में ज्ञान-प्रचार की महान् संस्थाओं को स्थापित कर और जगह २ पर जैन समाज में फैले हुए वैमनस्य एवं परस्पर मत भिन्नता आदि को मिटा कर जैन-जनता पर बड़ा भारी उपकार किया है । इतना ही नहीं, किन्तु अज्ञानान्धकार में भटकते हुए जैन-बन्धुओं को धर्म का मार्ग बताकर तथा उनमें ज्ञान का संचार करके उनको सच्चे जैन बनाने में जो भगीरथ श्रम उठाया है उसकी हम जितनी कदर करें वह कम है । ___ आपके इन सब महान् उपकारों से तो जैन-जनता किसी भी प्रकार उऋण नहीं हो सकती, फिर भी फूल के स्थान पर पत्ती के रूप में आपको 'प्रज्ञानतिमिरतरणि कलिकालकल्पतरु ' बिरुद अर्पण करने को हम विनयपूर्वक तत्पर हुए हैं और आप इसको स्वीकार करके हमारी हार्दिक श्रमिलाषा अवश्य पूरी करेंगे और हमारे उल्लास की वृद्धि करेंगे ऐसी आशा हैं । श्रीसंघ की प्राज्ञा से, विनीत चरणोपासक सेवकगण - दलीचंद वीरचंद, भबूतमल चतराजी, डाह्याजी देवीचंद, श्री वामणवाड़जी तीर्थ (सिरोही राज्य) ) गुलाबचंद डड्ढा, मिती वैशाख बदी ३ गुरुवार सं० १९६० रणछोड़भाई रायचंद मोतीचंद ता. १३ अप्रैल सन् १६३३ ईसवी रमादि भी संघ के सेवक.... Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीर * ॐ* शान्त, दान्त, गम्भीर, दयालु, परोपकारी, शान्तमूर्ति योगीराज श्री १०८ श्री शान्तिविजयजी पवित्र सेवा में अभिनन्दन पत्र एवं उपाधि-समर्पण मोगीराज ! श्री बामणवाड़जी तीर्थ में श्री नवपदजी की चैत्री ओली पर तथा श्री अखिल भारतवर्षीय पोरवाल महा सम्मेलन के शुमावसर पर, भारतवर्ष के मिन्न-भिन्न प्रान्तों से आकर एकत्रित हुए जैन संघ को यह जानकर अत्यन्त हर्ष हुआ है कि आपने योगाभ्यास द्वारा शुद्ध और परिष्कृत आत्मबल से अनेक राजा महाराजा, सेठ साहूकार, हिन्द, मुसलमान, ईसाई, पारसी इत्यादिकों को आत्मा की उन्नति के लिये मंत्रोपदेश तथा जीवदया पालन का उपदेश देकर लगभग सारे भारतवर्ष में अहिंसा धर्म का सन्देश पहुँचा कर अनेक जीवों की रक्षा कराई है तथा आपने अनेक जीवों को मदिरापान और मांसाहार से बचाकर उनके प्रति महद् उपकार किया है। - आपके इस परोपकार का बदला चुकाना तो हमारी सामर्थ्य के बाहर है किन्तु इसके स्मरण स्वरूप हम आपको 'अनन्तजीवप्रतिपाल योगलब्धि सम्पन्न राजराजेश्वर' पद विनयपूर्वक अर्पण करते हैं और आपकी आत्मा दिन प्रतिदिन अधिकाधिक शुद्ध और पवित्र होकर अनेक जीवात्माओं का आपके द्वारा उपकार हो, यह शासनदेव से प्रार्थना करते हैं। श्री संघ की आज्ञा से, विनीतभभूतमल चतराजी, दलीचन्द वीरचन्द, श्रीबामणवाड़जी तीर्थ, ) डाह्याजी देवीचन्द, मिती वैशाख वदी ३ गुरुवार रणछोड़भाई रायचन्द मोतीचन्द, . संवत् १६१०. गुलाबचन्द डड्ढा, आदि तारीख ।। अप्रेल सन् १९३९. ) श्री संघ सेवक। Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Sado hab dab adb hobb महावीर Siddi आबू के जगत् प्रसिद्ध योगीराज अनन्तजीव प्रतिपाल योगलब्धि सम्पन्न राजराजेश्वर Dim m D. J. Press, Ajmer. मुनिराज श्री शान्तिविजयजी महाराज हाल चातुर्मास श्री बामणवाड़जी महातीर्थ, (सिरोही राज्य). Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीर 菜菜 D. J. Prers, Ajmer. *<><> विमल-वसहि की हस्तिशाला, अश्वारूढ विमल मंत्रीश्वर. 牛牛 <<器 牛牛← Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिनन्दन पत्र एवं उपाधि-समर्पण [४१ शान्त, दान्त, महंत अनन्त गुरूभक्त विद्याप्रेमी सतत उद्यमी श्रीमान् पन्यासजी महाराज . श्री १०८ श्री ललितविजयजी महाराज पवित्र सेवा में अभिनन्दन पत्र एवं उपाधि-समर्पण पन्यासजी महाराज श्री! . आपश्री ने इस समय तक श्री गुरु महाराज की अनन्य भक्ति करके उनके विद्याप्रचार के प्रयत्नों को अमल में लाने की गरज से अपने खाने पीने और विहार वगैरा के संबंध में अथक परिश्रम उठा कर जैन समाज की उमति के लिये जो कार्य किया है, उससे आकर्षित होकर श्रीबामणवाड़जी तीर्थ में श्रीनवपदी की चैत्री ओली पर एवं श्री. अखिल भारतवर्षीय पोरवाल महासम्मेलन के अवसर पर भारतवर्ष के भिन्न भिन्न प्रान्तों से आकर एकत्रित हुआ जैन संघ आपका अन्तःकरणपूर्वक आभार मानता है। ... ... जैन समाज की उन्नति के क्षेत्र में आपने जो कठिन तपश्चर्यायुक्त योग दिया है, उसका बदला चुकाने में हम असमर्थ हैं, फिर भी आपके उपकार के स्मरणार्थ हम भक्तिपूर्वक "प्रखर-शिक्षा-प्रचारक मरुधरोद्धारक" पद अर्पण करते हैं और शासनदेव से प्रार्थना करते हैं कि श्राप भविष्य में भी दीर्घ काल तक इसी प्रकार जैन समाज की सेवा करते रहें। श्री संघ की माज्ञा से विनीतश्री बामणवाड़जी तीर्थ, ) भभूतमल चतराजी, दलीचंद वीरचंद, मिती वैशाख वदी ३ गुरुवार । ड डाह्याजी देवीचंद, रणछोड़भाई रायचंद मोतीचंद सं० १६६०, ता. १३ अप्रेल । सन् १९३३. गुलाबचंद डड्ढा, आदि श्री संघ के सेवक Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . मंहावीर श्री पोरवाल 'जाति-भूषण ' शासन प्रेमी, उदारात्मा, विवेकमूर्ति, ... शान्त सरल स्वभाव श्रेष्ठी। श्रीमान सेठ डाहाजी खूमाजी शुभ निवास मड़वाड़िया ( सिरोही राज्य ) की सेवा में __ अभिनन्दन पत्र एवं 'जाति-भूषण' उपाधि समर्पण माननीय सज्जन महोदय ! आप श्रीमान् ने पोरवाल जाति में जन्म लेकर अपने परोपकारी तथा समाज हितकारी शुभ कर्मों द्वारा, स्वजाति गौरव में अभिवृद्धि करने के साथ, नीतिकार के इस कथन को अक्षरशः चरितार्थ कर दिखाया है किपरिवर्तिनि संसारे मृतः को वा न जायते । स जातो येन जातेन याति वंश समुन्नतिम् ।। - अर्थात् इस नित्य परिवर्तनशील संसार में कौन नहीं मरता और कौन नहीं पैदा होता ? अर्थात् जन्म और मरण यह इस संसार का एक त्रिकालावाध्य नियम अथवा क्रम देखने में आता है। परन्तु जिसके पैदा होने से उसका वंश या जाति उन्नति को प्राप्त हो, वही वास्तव में पैदा हुआ माना जाता है यानी उसी का संसार में जन्म होना सफल माना जाता है। माननीय श्रेष्ठीजी ! मापने अपने सदुपार्जित द्रव्य का, देश काल की प्रावश्यकता को लक्ष्य में रखकर, नीचे दिये हुए जो २ धर्म एवं परोपकार कार्य किये हैं, उनके करने में लक्षावधि रुपयों का व्यय हुमा है, उन कार्यों के करने वाले की अन्तरात्मा में किस प्रकार जाति प्रेम, देश प्रेम एवं धर्म प्रेम का अपार स्रोत बह रहा है, इस बात का भली प्रकार परिचय होता है। ___ यहां आपके पूर्वजों के गौरवशाली जीवन का किंचित् परिचय करना भावश्यक है। भापके पूर्वज श्रेष्ठी रायखेण जी ने, जो कालन्दरी में हुए थे, अपने बाहुबल से उपार्जित द्रव्य का धर्ममार्ग में विनियोग ( व्यय ) करने में ही अपना परम कर्तव्य समझा था। उन्होंने वि० सं० ११६५ में श्री ऋषभदेवजी का महान् मन्दिर कालन्दरी में बनवा कर उसमें प्राणप्रतिष्ठा कराई थी, जो अब तक विद्यमान है। Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अभिनन्दन पत्र एवं 'जाति-भूषण' उपाधि समर्पण ४३ संवत् १३६५ में आपके पूर्वजों ने श्री कुलधरजी का जीर्णोद्धार कराकर उसकी प्रतिष्ठा श्री हरिभद्राचार्यजी के हाथ से कराई थी । आपने खुद संवत् १६५६ के भयानक दुर्भिक्ष में, रुपये २५०००) का व्यय करके गरीबों को अन्न एवं पशुओं को घास दिलाकर अपनी वंश-परंपरागत उदारता एवं जीव-दया का पहले पहल अपने देशवासियों को परिचय कराया था। संवत् १९६० में रुपये १५०००) के व्यय से मड़वारिया में आपने बगीचा बनवाया था। उसके बाद उसी मड़वाडिया में बालकों के विद्याभ्यास के लिये रुपये २००००) खर्च करके एक पाठशाला का भवन बनवाया था । सिरोही रियासत की राजधानी ने सिरोही नगरी में यात्रियों के उतरने व ठहरने के लिये रुपये २००००) के व्यय से धर्मशाला बनवाई, जिससे लोगों को अनहद भाराम पहुँच रहा है । मापने संवत् १६५८ में श्री केसरियानाथजी का संघ निकाला जिसमें रुपये ४००००) खर्च किये । सं वत् १९६२ में रुपये २००००) खर्च करके अहाई महोत्सव किया । बाद में सं० १९६९ में रुपये २०००००) दो लाख का व्यय करके श्री शान्तिनाथजी का नवीन एवं भव्य संगमरमर का मन्दिर मड़वाड़िया में बनवाया, जिसकी आकाश-स्पर्शिनी धर्मध्वजा आपकी उज्वल कीर्ति को दिगन्त में फैला रही है । आप श्रीमान् सेठ प्रानन्दजी कल्याणजी की धार्मिक पेढ़ी के माननीय प्रतिनिधि भी हैं। आपके परोपकार के प्रकट एवं गुप्त सत्कार्यों का पूरा विवरण करने में हम असमर्थ हैं। संक्षेप में हम इतना ही कहेंगे कि, भाप श्रीमान् ने अपने प्रादर्श जीवन से, देश के दूसरे धनवानों को यह प्रत्यक्ष बोधपाठ सिखाया है कि "तुम्हें मंजूर है धनरक्षा, तो धनवानो बनो दानी, कुएं से जल न निकलेगा, तो सड़ जायेगा सब पानी।" अस्तु आपके देश एवं जाति हितकारी सत्कार्यों का विशेष उल्लेख करने की लालसा को रोक कर हम यहां एकत्रित हुए 'श्री अखिल भारतवर्षीय पोरवाल महासम्मेलन' प्रथम अधिवेशन के प्रतिनिधि एवं आपके स्वजाति बन्धुगण, आपके सत्कार्यों की बार २ सराहना करते हुए, आपको "जाति भूषण" की गौरवमयी उपाधि से भूषित करते हैं और श्री शासनदेव से अन्तः Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४] महावीर करणपूर्वक आराधना करते हैं कि वे आपको एवं आपके परिवार को दीर्घ प्रायुष्य प्रदान करें और आपकी भावी सन्तान भी, भापके जीवन को आदर्श रूप मानते हुए, आपकी भांति ही परोपकारमय जीवन व्यतीत करें। शासनदेव हमारी पोरवाल जाति आप जैसे अनेक दानवीर नररत्न पैदा करें, ऐसी कामना करते हुए एवं प्रापको एकबार फिर अभिनन्दन देते हुए, श्रीबामणवाडजी महातीर्थ (सिरोही राज्य) ) हम हैं- " तारीख १३ अप्रेल सन् १९३३ ई. आपके स्वजातीय बान्धवगण, सम्वत् १६६०, वैशाख कृष्णा'३ गुरुवार श्री अ०भा० पो० म० स० के प्रतिनिधिगण. कार्यकारिणी के सदस्यों के नाम स्वागत समिति के सदस्यों के नाम (१) श्रीमान् भबूतमलजी चतराजी, स्वागताध्यक्ष, देलदर (२) , एस. आर. सिंघी, महामंत्री, सिरोही (३) , हिम्मतमलजी पाडीव (४) , सिंघी अचलदासजी, रोहीरा (५) ., कपूरचन्द ऋखबदासजी, देलदर (६ ) , ताराचन्दजी, प्रेमचन्द्रजी बाली (७) , हजारीमलजी ( चन्दाजी खुशालचन्दजी ), बीजापुर भोजन कमिटी के सदस्य (१) श्रीमान् धोनेटिया रूपचन्दजी, सिरोही (२) , सिंघी नथमल रतनचन्दजी, सिरोही (३) , शा० मूलचन्दजी हांसाजी, गोई लीवाला (४) , सिंगी पूनमचन्दजी हंसराजजी, सिरोही . (५) , गुलाबचन्दजी खासाजी, जावाल . Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कार्यकारिणी के सदस्यों के नाम (६) श्रीमान् खुशालचन्दजी उमाजी, जावाल : (७) , अजेराजजी वहित्रा, सिरोही । (८) , साकलचन्दजी मसाजी, 'जावाल .. (६) , शा० हंसराजजी मूलचन्दजी, सिरोही तपास कमिटी के सदस्य ( १ ) श्रीमान् शा. पुनमचन्दजी वहित्रा, मंत्री, सिरोही. (२) , सिंधी विजयराजजी धनराजजी मंत्री, सिरीही (३) , सिंघी कुन्दनमलजी जवानमलजी, सिरोही (४) , ऋखबदासजी जाचाल तम्बू कमिटी के सदस्य (१) श्रीमान् सिंघी धरमचन्दजी जवानमलजी, सिरोही, ... (२) , शा० अजेराजजी जवानमलजी, सिरोही (३) , सिंघी हीराचन्दजी, सिरोही (४) , वोरा मूलचन्दजी, सिरोही (५) , शा० मूलचन्दजी, , . राशन कमिटी के सदस्य ( १ ) श्रीमान् दोसी पूनमचन्दजी, सिरोही (२) , हिना लालचन्दजी , .... (३) , कपूरचन्द गुलाबचन्दजी ,, पानी कमिटी के सदस्य (१) श्रीमान् डाह्माजी देवीचन्दजी, मंडवारिया . (२) , सिंधी वनेचन्दजी, सिरोही ( ३) , नेमचन्दजी केसरीमलजी, सिरोही (४) , खुशालचन्दजी चेनाजी, गोइली .. Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीर कोष कमिटी के सदस्य ( १ ) श्रीमान् सिंघी पूनमचन्दजी हंसराजजी, सिरोही ( २ ) सिंधी रायचंदजी पद्माजी, मंडवारिया ४६ ] 99 ( १ ) श्रीमान् धनराजजी उँकारमलजी, सिरोही २ ) केसरीमलजी कपूरचन्दजी ( ३ ) वचन्दजी हकमाजी बदलुट ( १ ) ( २ ) ( ३ ) 19 99 ( १ ) श्रीमान् कपूरचंदजी बदलुटवाले ( २ ) ( ३ ) कालन्द्री वेलवर मुंडारा वांकली स्त्रीवान्दी नाम जगह बरलुट मडवारिया 39 टिकिट कमिटी के सदस्य ,, शामूलचन्दजी नानावटि, सिरोही हजारीमलजी नेनावत, थाहोर श्रीमान् चुन्नीलालजी देवराजजी, मडवरिया बी० पी० सिंधी, सिरोही जसराजजी कोठारी, सिरोही 59 खास कमिटी के सदस्य " 39 स्वयम् सेवक कमिटी के सदस्य स्वयम् सेवकों की सूची संख्या १६ २२ १६ १६ १२ २० श्रीयुत वीरचंदजी मूलचन्दजी जवान मलजी 99 39 " " " horo ( Captain) 36 हजारीमलजी ताराचन्दजी सेसमलजी रिखबचन्दजी Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 कार्यकारिणी सदस्यों के नाम माम जगह संख्या . केपटेन ( Captain) गुडा बालोता श्रीयुत सोतराजजी पाडीव , रिखबदासजी सिरोही , लालचन्दजी सिंघी शिवगंज डुंगारामजी परिहार बडगांव , अचलदासजी जोधपुर हजारीमलजी सिंधी, गेनमलजी । बाफना, जोधपुर से स्काउट केन्टन परकाणा . २५ स्काउट मय स्काउट टीचर वैतनिक कार्यकर्ता (१) श्रीयुत अबोर गजमलजी धनराजजी, सिरोही ( एकाउन्टेन्ट और कैशियर) (२) , शा. मिलापचंदजी, सिरोही। (३) , सिंघी बाबमलजी कुन्दनमलजी, सिरोही (टिकिट फ्लर्क) (४) , कपूरचन्दजी, गोईली (टिकट क्लर्क) (५) , अमीचन्दजी गांधी, सिरोही ( स्टोर कीपर) १ श्रीमान् चुनीलालजी देवराजजी मडवारिया (सुपरिन्टेन्डेन्ट वालेन्टियर कोर्स ) २ श्रीमान् जसराजजी कोठारी, सिरोही (ॉरगेनाईज़र वालन्टियर कोर्स ) Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४] महावीर आभार निम्न लिखित महाशयों ने सम्मेलन भरने के पहिले व सम्मेलन के समय टिक्टों को खरीद कर सम्मेलन के कार्य को आगे बढ़ाया अतएव वे धन्यवाद के पात्र हैं। इसका हिसाब जमा खर्च का आगे के पृष्ठों में इसी अङ्क में दिया गया है: १०१) श्रीमान केसरीचंदजी भागा भाई बंबई | १२५) श्री० जीवराजजी मियाचंदजी, देलदर चंदाजी खुशालजी १०१) १०१) जीताजी खुमाजी बंबई प्रेमचंदजी गोमाजी, १०१) किशनाजी भगवानजी १०१) खाजी दौलाजी भोजाजी सोभागचंदजी बबई — " 91 १०१) राईचंदजी मोतीचंदजी १००) राईचंदजी मोतीचंदजी. १००) 'रायचंदजी मोतीचंदजी 29 " 59 १०१) प्रकाजी नाथाजी १०१) पुनमचंदजी नगाजी १०१) "" 99 " 95 59 " १०१)," १०१ ) 99 १०१) १०१) कारमलजी नेमाजी, सिरोही 95 ,, 9. १२५) हाजी लक्ष्मीचंदजी मंडवारिया राईचंदजी पदमाजी नाजी जेरूपजी, 19 "9 मेगाजी हंसाजी, बागरा पीथाजी मालाजी, भंटाणा 99 99 .. १२ 39 धुबा १२५) मंशालालजी जगरूपजी कालंद्री १०१) हिन्दुजी देवीचंदजी, कालन्द्री १०१) केसरीमलजी भूताजी, पालडी खुशालचंदजी चेनाजी गोहिली १००) १०१) १००) १०१) १०१) 99 ر. 43 " را " १०१) १०१) १०१) १०) १०१) و १०१). ११ हिन्दुजी मनरूपजी ,, १०१), किशनाजी हुकमीचंदजी, डुंगरी १०१), जेसाजी ताराचंदजी १४१) २०१ ) 39 دو १०१) " 55 १०१). 2. 99 १२५) १०१) १०१ ) १०१ ) १०१) १०० ) वनाजी ताराचंदजी वराड़ा २५१) कपूरचंदजी रिखभदासजीदेलदर १०१ ),, हंसराजजी चुन्नीलालजी देलदर घमनाज़ी मंसाजी देलदर 23 " 59 59 " " 39 ," " 99 मनरूपजी हक माजी बनेचंदजी गुमनाजी पाडीव पन्नाजी सुरतिंगजी सीयाना नथमलजी चनाजी मंडवारीया " जगाजी रतनचंदजी डायाजी देवीचंदजी 95 घुडाजी खुशालजी कालन्द्री भगवानजी कपुरचंदजी,, खुमाजी कलाजी कालन्द्री गुलाबचंदजी बनाजी सूरत कपुरचंदजी उमाजी दलदर कपूरचंदजी पुनमचंदजी देलदर भबूतमलजी चतराजी देलदर हंसराजजी देवराजजी हिन्दुमलजी देलदर उमाजी लालचंदजी जावाल 99 Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाभार [४६ १००) श्री० साह ताराचंदजी गोमाजी बाली | २५) श्री० गुलाबचंदजी धन्नालालजी पं० २६) ,, भीकाजी चीमनलालजी बंबई २५) ,, गुलाबचंदजी धन्नालालजी ,, ., भीकाजी चीमनलालजी ,, २५) । गुलाबचंदजी धन्नालालजी ,, ,, भीकाजी बीमनलालजी , २५) ,, सिंघी समरथमलजी रतन,, भीकाजी चीमनलालजी बंबई | चंदजी सिरोही , दलीचंदजी गुमानचंदजी , ३१) , सिंघी सोभागमलजी भबुत,, सोकलचंदजी केसरीमलजी मलजी - सिरोही वागरा ५१) ,, सिंघी रूपाजी वीरचंदजी , २५) ,, भगवानजी शिवलालजी, वागरा २५) , सिंघी विजयराजजी धनराजजी २५) , जेठाजी हीराजी, वागरा सिरोही , देवीचंदजी राजाजी, वागरा २५) ,, वहितरा अजेराजजी सरेमलजी ,, उमाजी हिन्दूजी, पाडीव सिरोही ५१) ,, पानचंदजी नवलमलजी, पाडीव २५) ,, सिंघी कुन्दनमलजी जवान ., हटाजी किशनाजी, पाडीव । मलजी सिरोही ५१), भगवानजी रासाजी ,, २५) ,, बनाजी कलाजी मालवाड़ा ,, दानाजी ताराचंदजी , २५), इन्द्रचंदजी बनाजी मालवाड़ा २५) ,, कस्तुरचंदजी भगवानजी पाडीव २५) ,, मुलचंदजी ऊमाजी , ,, नगराजजी खुशालचंदजी ,, ,, देवाजी नरसिंगजी लाश ,, हंसराजजी छगनलालजी , ,, वीराजी पनेचंदजी रोहीडा . ,, चमनाजी जवानमलजी , ,, चुन्नीलालजी देवराजजी मंड० ,, लुबाजी उमाजी, पाडीव ,, भूरमलजी गुल बाजी मंडवा० २५) ,, लखमीचंदजी धनाजी, भटाणा ___३१) ,, कपूरचंदजी फुलचंदजी ,, २५) ,, गुलबाजी अबाजी ,, ,, अचलदासजी पन्नाजी " ,, कपूरचंदजीमगनलालजी पाडीव २५) ,, चीनाजी खुशालचंदजी , ३५) ,, तिलोकचंदजी नोपचंदजीसीयाना ७१) ,, पदमाजी राईचंदजी मंडवारीया , कपुरचंदजी भीकाजी, सीयाना ४१) ,, भूताजी मूलचंदजी. " २५) ,, जीताजी फुयाजी, सावरडा १५) , लुबाजी लोकलचंदजी , २५) ,, खुमाजी हिराचंदजी, सावरड़ा | २५) , लुबाजी मेगाजी , २६) ,, गुलाबचंदजीधन्नालालजी बंबई २५) , उमेदचंदजी लालचंदजी जावाल Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीर २५) श्री० बनाजी जेताजी जावाल | २५) श्री० भगवानजी तेजमलजी पिंडवारा २५). ,, गुलाबचंदजी चुन्नीलालजी., . २५) , हजारीमलजी जवानमलजी ३० २५) ,, साकलचंदजी पुनमचंदजी., . २१) ,, गजाजी देवीचंदजी वागरा ५१) . ., ताराचंदजी शंकरलालजी मंडी १७) ,, वनेचंदजी अमीचंदजी बेंगलोर २५) ,, सेसमल जी जुहारमलजी पादः १५) ,, चीनाजी धनरूपजी सीयाणा २५) , जुहारमलजी श्रमीचंदजी चांद० १५) ,, लुषचंदजी हुकमीचंदजी सिरोही ५१) ,, भगवानजी लुबाजी कालन्द्री १५) , धरमाजी जैताजी जसवंतपुरा ५१) ,, चुन्नीलालजी किस्तूरजी ,, १५) ,, मन्नाजी भीकचंदजी बरलुट .. भगवानजी जवाहरमलजी, १५) ,, सिंघी वनेचंदजी ताराचंदजी सिरोही ४१) ,, चेनाजीकिस्तूरचंदजी कालन्द्री १३) ,, चुन्नीलालजी मियाचंदजी बर० , शंकरलालजी रिखबदासजी,, १३) ,, पुनमचंदजी मसालालजी, बर० ,, किस्तुरचंदजी खुमाजी , १३) ,, सरूपचंदजी साकलचंदजी, ३० ,, वनाजी गोमाजी , ११) , जेठमलजी सरेमलजी वागरा , गलबाजी हिराजी , ११) , पुनमचंदजी ऊमाजी पाडीव २५) , देवराजजी अणदाजी पाथा० ,, नथाजी पदमचंदजी पाठीव , किस्तुरचंदजी मुलाजी , .., कपूरचंदजी परतायचंदी, पां० ,, भगवानजी हाराजी पुरण ११) , कपूरमलजी हजारीमलजी सी० ,, पानाजी खीमाजी ११) ,, जेठमलजी बनाजी सीयाणा २५) ,, अचलदासजी चीमनमलजी ११) , कपूरचदजी धुडाजी , रोहीड़ा ११) ., नथमलजी हजारीमलजी ,, जवेरचंदजी ठाकरसी नवसारी आहोर , जगरूपजी जवेरचंदजी वराड़ा | ११) ,, मे :राजजी दीपाजी आहोर ५१) ,, धनरूपजी केसरीमलजी बरलुट २५) ,, खुमाजी हंसाजी पुरण ., जवेरचंदजी कपुरचंदजी ., . ,, प्रेमचंदजी सबदांनजी पाथ. २५) ,, पुनमचंदजी वनेचंदजी ,, | २२) , हिन्दुमलजी हीराचंदजी रोही. ३१) ,, हिन्दुजी केसरीमल जी देलदर | २५) ,, प्रेमचंदजी केवलभाई पालनपुर ,, कपुरचंदजी चुन्नीलालजी ,, | ५१) , कपूरचंदजी फूलचंदजी बरलूट ,, कपुरचंदजी गुमनाजी कांणदर | २५) ,, अबेचंदजी केसरीमलजी, बरलूट २५) ,, साकलचंदजी जुहारमलजी, वा०। २५) , भगवानजी वनेचंदजी . ॥ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१) श्री० फूलचंदजी बनेचंदजी देलदर हीराचंदजी केसरीमलजी ४१) " ४१ वनेचंदजी भबूतमलजी २५) ३५) २५) ५१) २१) १५) 35 " " 99 " 39 " 22 39 " 93 १५) सिंघी ताराचंदजी रतनचंदजी १५) नथाजी थानमलजी जावाल पंच पोरवाल समस्थां, राणी० केसरीमलजी कपूरचंदजी सि० १५)," १५) १५) खुशालचंदजी वालचंदजी सि० " ܙܕ "" ," 99 १३) सांकलचंदजी नथाजी बरलुट १३) चुन्नीलालजी रतनाजी बरलुट किस्तूरचंदजी चयनाजी चागरा ११) " वीरचंदजी भबूतमलजी ११) " ११) पानाजी समरथमलजी पाडीव ११) हिंदुजी मोतीचंदजी मोतीजी लखमाजी ११) " ११) ११) भलाजी भूरमलजी ११) -,, ११) ११) बछराजजी नरसींघजी ११),” "" 99 ܕܕ ود समर्थमलजी किस्तूर चंदजी, सिरोही, आभार जैरूपजी केसरीमलजी भाद्राजन नानावटी मूलचंदजी सिरोही फोजमलजी वालाजी शिवगंज 33 दोसी किसनाजी वालाजी बरलूट सिंघी नथमलजी रतनचंदजी सिरोही 29 ܙܕ " हुकमीचंदजी तेजराजजी सीया "" छोगमलजी सरेमलजी सीयाणा पुनमचंदजी नेमीचंदजी आहोर ,, खेमचंदजी नेमचंदजी, वहित्रा सि ११) ११) ११) ११ ११) ११) ११) ११) :9 99 " " 93 " ور , " ११), ११) ११) ११) ११) ११) ११), ११) १०) १०) : १ १०)" १०) १०) १०) १० ) " 31 33 "" " 59 "" "" 33 " ह) 19 ६) श्री० ह) ह) ह॥) ह) "" 35 او te हजारीमलजी तोकमचंदजी, लास रूपचन्दजी वनाजी, बेड़ा खासाजी मूलाजी, मंडवारिया पन्नालालजी प्रागचंदजी, जावाल सांकलचंदजी शङ्करलालजी,, सांकलचंदजी चुन्नीलालजी,, भूरमलजी अमीचन्दजी, गुलाबचन्दजी फुलचंदजी चेनाजी जवेरचंदजी बरलुट, हांसाजी खुशालजी, बरलुट " ر ," चुन्नीलालजी हकमाजी, आईदानजी जुवारमलजी भा० नाजी केसाजी, बागरा 29 भगवानजी लुबाजी, सियाणा अखेराजजी पन्नालालजी, बेंग० सांकलचंदजी मंसाजी, जावाल. 35 कपूरचंदजी फुलचंदजी, राईचंदजी देवीचंदजी, नवलमलजी मुलचंदजी जालोर जिवराजजी बनेचंदजी, मुडारा मुता मालाजी जेठाजी, भटांगा दुलभजी हीराजी, डबांणी भबुतमलजी केसरीमलजी, जा० नथाजी हंसराजजी, पाडीव फुलचंदजी देवीचंदजी, जावाल कपूरचंदजी भगवानजी, बर लुट पुनमचंदजी मानकचंदजी, मणो० केसरीमलजी गनेश मलजी, सो० वजींगजी सुरतिंगजी, कालन्द्री 33 Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२] __ महावीर ६) ,, जेठमलजी धुडाजी, आहोर | ६) ,, धुपाजी गुलबाचन्दजी, पाडीवं ८) ,, लक्ष्मीचंदजी अकराजजी, बेंग० ) , छोगमलजी गुलबाजी, बरलुट १५) ,, राईचंदजी चुन्नीलालजी, खी० ६) , बाबुलालजी भगवानजी ,, , पेराजजी मेघराजजी, लास ६) ,, लालचन्दजी हरजीजी , , गुलाबचंदजी गीरधारीलालजी, ६) , नथाजी गुमनाजी , बेड़ा ., खुमाजी लालचन्दजी वागरा ,, कपूरचंदजी हंसाजी, जावाल ,, गुलबाजी वालाजी बरलुट ११) , जगरूपजी किस्तुरचंदजी. ,, ,, पंच पोरवाल निबज १९) , भवुतमलजी हिन्दुजी, , , भुराजी केसरीमलजी बरलुट ,, लखमीचन्दजी पुनमचंदजी, जा ७) ,, चुन्नीलालजी रूपचंदजी, बरलुठ ११) ,, बाबुलालजी हकमाजी जावाल ७) ,, हकमाजी रिखभदासजी, ,, ११) ,, सांकलचंदजी मानकचंदजी,जा० ७) ,, प्रागचंदजी दानमलजी मणोरा १५) ,, केसरीमलजी धुलाजी दीयाल ७) ,, अचलचंदजी मेगाजी, मंडवा० ११) , हांसाजी हिन्दुजी, बरलुट ७) ,, नथमलजी सुदानजी, कालन्द्री ११) , वनेचंदजी जुठाजी, ७) ,, किस्तुरचंदजी पेराजीः कालन्द्री ११) ,, पुनमचंदजी देवीचंदजी , ७) ,, ताराचंदजी नवाजी, वागरा ११) ,, कपूरचंदजी ओटमलजी, देलदर ७) ,, सुरतींगजी जेठाजी, बेंगलोर ,, सोनमलजी जोरजी सिरोही | ७) , राजींगजी भगवानजी, बरलुट ,, भीमाजी जेताजी सियाणा | ७) ,, भगवानजी फुलचंदजी, बरलुट ११) , जसराजजी मुलचंदजी, बेंगलोर ७) ,, हकमाजी रतनाजी, , ,, सरदारमलजी भबुतमलजी, ,, ____७) ,, जेठाजी ताराचंदजी, मोरा ,, पुनमचंदजी रतनाजी, देलदर ७) ,, राईचंदजी गुलाबचंदजी, का० १०) ,, ओटमलजी भूराजी जावाल ७) , लखमीचंदजी हंसराजजी, का० १०) , कपूरचंदजी गुलवाजी मंडवा० ७) ,, हेमराजजी अबाजी, कालन्द्री १०) श्री० मेघराजजी हिमतमलजी, जा० ७) ,, दांनाजी पुनमचंदजी, वागरा १०) ,, मालाजी धरमाजी पाथावाड़ा ७) , रूपचंदजी गुलाबचंदजी, बर० १०) ,, भूराजी जयचन्दजी, मटाणा ६) ,, जुहारमलजी, सोजत १०) ,, प्रतापचंदजी चतराजी उमेदपुर१०) ,, पुनमचंदजी हांसाजी, बरलुट । ६४२८॥) कुल जोड़ रुपया Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आय व्यय १६७५) टिकट पांच रुपये वाले बीके (४०) चार वाले टिकट जो दो के मद्द मे गये बिके १२०) तीन रुपये वाले टिकट जो रुपये दो के मद्द में गये, बिके १९६६) दो रुपये के टिकट बिके १ ॥ ) डोढ रुपये का टिकट जो रुपये एक के मद में गया त्रिके १३ | | ) सवा रुपये के टिकट जो रुपये एक के मद में गये बिके ३४२) रुपये एक के टिकट बिके ८५) टिकट आने के बिके १२६०३ ) कुल जोड़ श्री अखिल भारतवर्षीय पौरवाल महा सम्मेलन के प्रथम अधिवेशन का श्राय - व्यय का हिसाब मिती संवत् १६८६ का ज्येष्ठ वदि ११ तक. नामे जमा १२६०३-४-० टीकट प्रवेश बेचांन ५०२६-०-० रु.१००) तक और उससे अधिक ३०७८-०-० रु. २५) तक और उससे अधिक २६६६-२-० रु. ५) तक और उससे अधिक १३५६-०-० रु० २) तक और उससे अधिक ३५८-४-० रु० १) तक और उससे अधिक ६१६-८-० छपाई १६२-१९-६ तार व पोस्टेज १५-१३-० सामान दफ्तर तालके ३७७-८० वोलनटियर तालके सफर खर्च २०६-८-६ रोशनी २५- ६-६ अखबार ५६ - ६-३ स्टेशनरी १३३३-०-३ पंडाल खर्च ४७५-०-० रेडियो (लाउड स्पीकर ) ६५-१०-६ झंडी व वावटा खर्च ७७-१३-० बोर्ड खर्च Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -- अहमदाबाद महावीर ८५-८-० रु. ० ॥ श्राने वाले १६३-१-० बैजज़ (तकमा ) ७०-०-० आगामी निभाउ फण्ड ५६०-७-० मोटर व मोटर का सामान ५-४-० महावीर अखबार का वार्षिक ५७८-१- पेट्रोल खर्च चंदा तालके . ५६४-३-३ कार्यकर्ताओं व वोलनटियरों ५-३-६ पखा के व विद्यार्थियों का १००-०-० जैन मित्र मंडल, बम्बई. भोजन खर्च २६-१३-० शा. भीमाजी मोतीजी, १६२७-४-३ तंबू व गवटी ६४-१४-० सुपा बनाई तालके खर्च ६७७-१४-६ नोकारसी वालों के सामान १३११०-८-६ वगैरह बंदोबस्त करने में खर्च हुए जिसमें से सामान नोट - रावटी कलतान बांस. व थोडा बेचते जोरुपये १८८०-१४-६ सा फुटकर सामान पड़ा है जो बेचने के रहे उसमें से रु० १२०३) बाद पैदायश में जमा होगा। तीन नोकारसी वालों के साथ उदडे ठेहराये सो बाद बाकी सरे ३२३-११.३ मुतफरकात मटके, डब्बे पर ___ व पानी आदि में खर्च १०३-८-० इनाम तालके खर्च ३४४-०-६ तनखा तालके खर्च ६-७-० मकान किराया तालके खर्च ४१-०-० सम्मेलन के फोटो तालके खर्च ६०१-३-६ सफर खर्च २१०१-०-० शा. रायचंदजो पदमाजी ट्रेजरर मंडवारिया वाला पास ४०१) शा. जीताजी खुमाजी कवराड़ी वाला . ४०१. शा. ताराचंदजी जेसाजी भैसवाड़ावाला Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिंधी पुनमचन्द ट्रेजरर रायचन्द संघवी ट्रेजरर राजमल धनराजजी अकाउन्टेन्ट और केशीयर आयव्यय ४०१) ५१) ३०) २५) १९) UP ५) ५) ५) ५) १) ५१) =) S. R. Singhi महामंत्री वहित्रा पूनमचन्द मंत्री [ w शा किस्तुरचंदजी सायदानजी लुगाबा दोसी समर्थमलजी किस्तूरचंदजी सिरोही V. R. Singhi मंत्री 'ड्रायवर रायचंद सिरोही शा नवलाजी नंगाजी बांकली शा. सोनमलजी जोरजी १३०१२- ) ८) | श्री पोते बाकी १३११०॥ ॥ सिरोही. शा अजयराजजी जबान मलजी सिरोही शा. पुनमचंदजी जगदीशजी वासा शा कपूरचंदजी गुलाबचंदजी सिरोही वहित्रा मिसरीमलजी सिरोही. गुजराती कुम्हारखाना सिरोही धाटिया रूपचंदजी सिरोही गांव बेडा पंच पोरवाल टिकटों के बाकी गांव पाडीव पंच पोरवाल भबूतमल चतराजी स्वागताध्यक्ष धनराज शिवलालजी - ऑडिटर. ताराचंद प्रेमचंदजी ऑडीटर Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीर EMAHARAPA80PYRMIN012 PRAMMAR साहित्य दिग्दर्शन आबू (प्रथम भाग ) लेखक शान्तमृति श्रीमद् जयन्तविजयजी महाराज, प्रकाशक शेठ कल्याणजी परमानन्दजी की पढ़ी, सिरोही, मूल्य रु० २॥) श्राबू देलवाड़ा के जैन मंदिर कारीगरी के लिये संमार भर में अनुपम और सुन्दर हैं । ये मंदिर संसार के शिल्प साहित्य में अद्वितीय हैं। इस तीर्थ की उत्पत्ति का इतिहास भी बड़ा गौरवमय है आबू पर के सब जैन, शैव और वैष्णव तीर्थों का वर्णन मय चित्रों के दिया गया है। साथ ही साथ सुंदर देखने योग्य प्राकृतिक स्थानों के चित्र मय वर्णन के दिये गये हैं । चित्र संख्या ७४ के हैं फिर भी इसका मूल्य रु० २॥) ही रक्खा गया है । सारा ग्रन्थ ऐतिहासिक सामग्री से परिपूर्ण है इसके लिये लेखक व प्रकाशक दोनों धन्यवाद के पात्र हैं। आबू देलवाड़ा के मन्दिरों को देखने यूरोपियन लोग अधिक संख्या में आते हैं और वे सब चित्रकारी को जानना चाहते हैं परन्तु कोई साहित्य उपलब्ध न होने से वे उस विषय में सच्ची हकीकत नहीं जान सकते हैं। हमाग देलवाड़ा जैन मंदिर कमेटी के सदस्यों से निवेदन है कि वे बहुत शीघ्र इसका अंग्रेजी भाषान्तर प्रकाशित करें ताकि इन मंदिरों की प्रसिद्धि अधिक हो । जैन जागृति-नामक नया मासिक पत्र बम्बई से प्रकाशित होने लगा है इसके दो अङ्क मई और जुन के हमारे सामने हैं। दोनों अङ्कों का सम्पादन बड़ी योग्यता से हुआ है । छपाई और कागन सुन्दर हैं और साथ ही साथ पत्र सचित्र भी है। इसके उद्देश्य जैनों के तीनों फिरकों में एकता व शिक्षा प्रचार का है । पहिले अङ्क में स्थानकवासी जैन कॉन्फरन्स के १० भाव मय चित्र तथा लेख हैं। दूसरे अङ्क के लेख भी पहिले अङ्क से कम आकर्षक नहीं है। पत्र हर तरह से अपनाने योग्य है । इसका वार्षिक मूल्य सिर्फ पोष्टेज सहित रु० २॥) है और यह पत्र प्रकाशक "जैन जागृति" ५१ सुतारचाल बम्बई से प्रगट होता है। ऐसे उत्तम मासिक को सम्पादन व प्रगट करने के लिये निःसन्देह श्रीयुत् डाह्यालालजी मणीलालजी महता धन्यवाद के पात्र हैं । Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाज दिग्दर्शन समाज-दिग्दर्शन सिरोही के पौरवाल समाज में सुधार-म० मा० पोरवाल महा-सम्मेलन के प्रथम अधिवेशन की पूर्ण आहुति के पश्चात् सिरोही के पौरवाल समाज मे स्वीकृत प्रस्तावों को कार्य रूप में रखने का विचार कर जाति सुधार किया है जिसका विस्तृत वर्णन इसी अङ्क में दिया गया है। स्वीकृत प्रस्तावों में से जाति सुधार के आठों प्रस्तावों को कार्य रूप में रखने का दृढ़ निश्चय किया है और इसके विमुख बर्ताव करने वाले पर शिक्षा करने का आयोजन किया है जो निःसन्देह प्रशंसनीय है । हमें यह लिखते आनन्द होता है कि सम्मेलन के प्रस्तावों को कार्य रूप में रखने में श्रीगणेश सब से प्रथम सिरोही के पोरवाल समाज में किया है। हमें आशा है कि अन्य गाँवों का पोरवाल समाज इनका अनुकरण अवश्य करेगा। सिरोही के पौरवाल समाज ने सम्मेलन के प्रस्तावों के अतिरिक्त और भी सुधार किये हैं जैसे कि कन्याओं का पढ़ाना अनिवार्य रक्खा है धादि। ___ साह मूलचन्दजी चैनमलजी का स्तुत्य कार्य-ता० १६.४.१६३५ के दिन की मामेरा बोबावत धर्मचन्दजी को साह मूलचन्दजी के यहां से पहिनाया गया। उस वक्त मूलचन्दजी ने रेडिएं व बैन्ड लाने से इन्कार किया तो धर्मचन्दजी वालों ने नीव के नीचे उनके घर के कुछ फासले पर गली के नाके रेडिएं व बैन्ड लाकर खड़ा किया, मामेरा पहुंचाने गली के नाके आये तब सूलचन्दजी ने कहा कि आपको हमें ले जाने से अच्छा दीखता हो तो हमें ले जांय वरना इनको ले जाय । इस पर उन्होंने कुछ जवाब न देकर रंडियों ने बैन्ड के साथ चलना शुरू किया। मामेरा करने वाले सब सज्जन बहुत से जाति के उत्साही सज्जनों ने उसमें भाग नहीं लिया । हम साह मूलचन्दजी चैनमलजी के इस कार्य के लिये हृदय से सराहना करते हैं और उनको इस कार्य के लिये धन्यवाद देते हैं। सिरोही राज्य के झोरा प्रान्त में पौरवाल जैन विद्यालय-पोरवाल सम्मेलन के प्रस्ताव नं० २ के अनुसार झोरा के पोरवाल समाज ने एक विद्या Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीर लय और छात्रालय अपने प्रान्त में योग्य स्थान पर स्थापित करने का दृढ़ निश्चय किया है। जिसके लिय स्थाया फण्ड को एक कमेटी नियुक्त हो चुकी है और जिसने झोरा के हरेक गांव में पर्यटन कर चन्दा लिखाना शुरू किया है जिसमें डेढ लाख रुपया अब तक हो चुका है और अभी चन्दा लिखाना जारी है। कार्य उत्साह पूर्वक जैसा चल रहा है उसी प्रकार चलता रहेगा तो आशा है कि विद्यालय की स्थापना शीघ्र ही हो जायगी । अब शीघ्र ही झोरा प्रान्त के सब गांवों के पंच विद्यालय के लिये एकत्र होने वाले हैं जिसमें कई बातों पर विचार किया जायगा। - इस विद्यालय के फण्ड की शुरुआत योगनिष्ठ शान्त मूर्ति अनन्तजीव प्रतिपाल योगलब्धिसम्पन्न राजराजेश्वर श्री शान्तिविजयजी महाराज के उपदंश से श्रोबामणवाड़जी मुकाम पर ता० १२-४-१९३३ ई० को हुई और उनके उपदेश से श्रीमान् सेठ कपूरचन्दर्जा व मभृतमलजी दलदरनिवासी दोनों भ्राताओं ने रु० ५१०००) एकावन हजार लिखकर फण्ड की शुरूआत कर दी। विद्यालय कमेटी से प्रार्थना है कि वे विद्यालय सम्बन्धी प्रगति से सचित किया करें ताकि माहवार विद्यालय का हाल प्रकाशित कर दिया जायगा। आगे फण्ड करीब रु० १५००००) डेढ लाख लिखाया जा चुका है परन्तु चन्दा देने वाले महाशयों के नाम मालूम न होने से नहीं लिखे गये। आने पर प्रकाशित कर दिये जाएंगे। पोरवाल समाज में सगपण की गम्भीर समस्या यह बात समाज के किसी व्यक्ति से छिपी नहीं है कि समाज के बहुत से नवयुवकों के लिये कन्या और कन्याओं के लिये योग्य वर नहीं मिलते हैं और समाज के कई वाड़ा बन्दी होने से सगपण रुके हैं अतएव सम्मेलन के प्रस्ताव ९ के अनुसार शादी का क्षेत्र विस्तृत करने की परम आवश्यक्ता है और सब की इच्छा है। इस इच्छा को कार्यरूप में लाने के लिये हमारी समाज में कितने पुरुष, स्त्री, ब्याहे, विधुर या विधवा, कुंआरे या कुंभारी हैं इसकी संख्या प्रति गांववार मालूम न हो जब तक हम सगपण शादी का क्षेत्र विशाल नहीं कर सकते हैं अतएव पोरवाल समाज के उत्साही नेता और नवयुवकों से निवेदन है कि वे अपने २ गांव और आस पास के गांव में से निम्न लिखित बातें तपास कर लिखें। Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [# _ समाज दिग्दर्शन - प्रति गांव में पौरवालों के कितने घर हैं ? प्रति घर में कितने पुरुष स्त्री ब्याहे, या विधुर हैं प्रति घर में कितने कुंआरे लड़के लड़किए हैं, किस २ उम्र के हैं भादि बातें लिखकर 'महावीर' कार्यालय-सिरोही को भेजें ताकि वहां पर एक रजिष्टर खोल कर उसका इन्दराज हो जाय और साथ ही साथ मासिक में प्रकट होता हे ताकि सर्व को मालूम हो जाये । - हमने सिरोही में इसकी गणना की है जिसकी संख्या निम्न लिखित हैं । - पोरवाल (बीसा ) घर १३६ हैं कुल संख्या ३८५ पुरुष । ब्याहे ७६ ।. ... ब्याही ७६ । कुंवारे । लड़के ८६ २०४ । विधर २५ प १० विधवा ६८ १३४ । लड़किये ४६ शिवगंज में टांणा मौसर की बात चीत और उसके रोकने का सम्मेलन कार्य कर्ताओं का प्रयास-ता० ५ झोरा मगरा के पंच योगीराज शान्तमूर्ति अनन्तजीव प्रतिपाल योगलब्धि सम्पन्न राजराजेश्वर श्री शान्तिविजयजी महाराज को झोरा मगरा में पधारने के लिये विनति करने को श्रीवामणवाड़जी गये थे। उस समय किसी ने यह सूचित किया कि शिवगंज में टाणे होने वाले हैं और सताईस गांवों के पंच इकट्ठे हो रहे हैं। उस पर योगनिष्ठ ने उपदेशमय पत्र के साथ झोरा मगरा व सिरोही पंचों को शिवगंज भेजे। उन्होंने महाराज श्री के पत्र को पंचों को दिया और टांणे न करने के लिये कहा जिस पर उत्तर मिला कि अभी जो २७ गांव इकट्ठे हो रहे हैं और वे सम्प के लिये इकट्ठे होते हैं। आपकी बात पर अकेला शिवगंज क्या विचार कर सकता है। फिर भी आपकी बात पूर्ण ध्यान में हैं। कहने का सारांश यह है कि शिवगंज के पंचों ने साफ २ उत्तर नहीं दिया परन्तु वहां के युवक इस बात पर दृढ़ है कि टांणे न होने देंगे और अगर किये गये तो सत्याग्रह किया जायगा । अतएव पंचों से प्रार्थना है कि वे कलह को अपने गांव में स्थान न दें। ये टोणे धर्मविरुद्ध है इस लिये संमेलन के प्रस्तावानुसार इनको बन्द कर देना ही बहतर है। रुपाई-परगने में सुधार---इस परगने के सब गांवों के पंच श्रीबामणवादजी में एकत्र हुए और जाति हित के लिये सम्मेलन के बहुत से प्रस्तावों को कार्य रूप में रखने के लिये लिखत हुआ है । इस सुधार की नकल हमारे पास अभी तक नहीं पाई है। आने पर समाज के सन्मुख रखी जायगी। Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीर ___अखिल भारतवर्षीय पौरवाल महा-सम्मेलन के प्रतिनिधियों को सूचना-जो प्रतिनिधि महाशय श्री बामणवाड़जी में पधारे थे और जिनोंने सर्व सम्मति से प्रस्ताव पास कराये हैं, उनसे निवेदन है कि वे इन प्रस्तावों का अमल अब अपने २ नगर व ग्राम में करावें और उसकी इत्तला इस पत्र में छपने को भेज देवें जो सहर्ष प्रकाशित की जायगी। पौरवाल महासम्मेलन के प्रस्तावजो छपकर आगये हैं जिस किसी को जरूरत हो भी अखिल भारतवर्षीय पौरवाल महासम्मेलन ओफिस सिरोही को लिख कर मंगा लेवें । 'महावीर' पत्र में एक मेरेज ब्यूरो (विभाग) रहेगा-जिस किसी पौरवाल महाशय का (जो इसका ग्राहक होगा) लग्न सम्बन्ध सम्बन्धी विज्ञापन बिना मूल्य एक वक्त छापा जायगा । प्राबू गोड़ का पोरवाल समाज-इन्होंने कुछ सुधार के ठहराव श्रीवामणवाड़जी में मौके पर किये हैं परन्तु उनकी लिखित इत्तला नहीं आई है। आने पर प्रकाशित कर दी जायगी । झोरा मगरा का पोरवाल समाज-सम्मेलन के प्रस्तावों को कार्य रूप में लाने के लिये इकट्ठा हो रहे हैं नतीजा आने पर प्रकाशित किया जायगा । . गोडवाड का पौरवाल समाज-सुना है कि सम्मेलन के प्रस्तावों के माफिक सुधार करने सेचली में नजदीक भविष्य में इकट्ठे होने वाले हैं। नतीजा आने पर प्रकाशित किया जायगा । इन्दौर में पौरवाज संघ की स्थापना-श्री अखिल भारतवर्षीय पौरवाल महासम्मेलन श्री बामणवाड़नी महातीर्थ (सिरोही) के सर्वानुमाति पास प्रस्तावों के अनुसार अमल जारी करने के लिये उपरोक्न संघ की स्थापना ३०-४-१९३३ के रोज हुई है । सभापति का आसन श्रीयुत कुन्दनमल नी सिरोही निवासी ने ग्रहण किया था । संघ का नाम श्री मध्य भारत पोरवाल सेवा संघ रखा गया है और उसी समय १८ सभासद हुए। कार्यकर्ताओं का चुनाव नीचे माफिक हुआ है-- प्रेसीडेन्ट-श्रीयुत धनराजजी रतलाम वाले वाईस प्रेसीडेन्ट-फूलचन्दजी वकील मंत्री-शिवनारायणजी यश लतहा उपमंत्री-छगनलालजी गगराडे Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाज दिग्दर्शन * कोषाध्यक्ष-जय चन्दजी (मालिक दुकान बीररीदासजी इन्द्रमलजी इन्दोर सी.) ___ बम्बई में मृत्यु भोजन का बहिष्कार-ता. २६-५-१६३३ बम्बई में पौरवाल जैनों की एक सभा हुई थी जिसमें श्री बामणवाड़जी में श्री अखिल भारतवर्षीय पौरवाल महासम्मेलन के प्रस्तावानुसार मृत्यु भोजन न करने का ठहराव किया गया जो अत्यन्त प्रशंसनीय है। हम इस प्रयास के लिये श्रीयुत् शा० खीमाजी भगाजी को धन्यवाद देते हैं । शिवगंज में मृत्यु भोज-आखिरकार हो ही गया । यद्यपि यह पोरवालमहासम्मेलन के उद्देशों से विपरीत था जिसके लिये श्री बामणवाड़जी महातीर्थ में श्री अखिल भारतवर्षीय पोरवाल महासम्मेलन के अधिवेशन में सर्व सम्मति से प्रस्ताव पास हो चुका है और जब यह प्रस्ताव पास हुआ शिवगंज के पोरवाल पंच मौजूद थे उन्होंने उस समय कोई विरोध नहीं किया। जब यह बात सम्मेलन को विदित हुई कि शिवगंज में गामसारणी हो रही है तब उन्होंने पौरवाल पंचों से प्रार्थना की कि गांमसारणी सम्मेलन के प्रस्तावानुसार बन्द रक्खी जाय परन्तु उसका कोई प्रत्युत्तर न आने से पंचों को तार द्वारा सूचना दी गई जिसमें पूर्ण विरोध दर्शाया गया। तत्पश्चात् अनन्तजीवप्रतिपाल योग लब्धिसम्पन्न राजराजेश्वर योगीराज शान्तिविजयजी महाराज ने भी तार द्वारा संदेश भेजा कि मृत्यु भोज न किया जाय परन्तु इस पर भी कुछ लक्ष न दिया गया। मृत्यु भोजन न करने के लिये बहुत समझाई समीकी गई परन्तु उस पर पंचों ने कोई ध्यान नहीं दिया। इस मृत्यु भोज में दो चार व्यक्ति अग्रगण्य पंच मृत्युभोज के लड्डू उठाने में शामिल नहीं हुए परन्तु दूसरों की मृत्युभोज कराने में पक्के हठाग्री बने । इस मृत्युभोज से कुछ युवकों ने असहकार रक्खा लेकिन इनकी संख्या थोड़ी थी इसलिये वे इसको रोकने में सफल नहीं हुए कारण कि उनके माता पिता उन पर बहुत दबाव डालते थे। युवकों को चाहिये कि वे इससे हताश न हों परन्तु अपने जैसे अधिक युवकों को तैयार कर राक्षसी मृत्युभोज की प्रथा को बन्द कराने का खूब प्रयत्न करें। * नोट--उपरोक्त संघ के कार्यकर्ता उत्साही हैं। आशा है कि उपरोक्त संघ मध्य भारत में प्रस्तावों को कार्य रूप में दूसरे अधिवेशन के पहिले रखेगा जिससे समाज की उन्नति शीघ्र होगी। अन्य प्रान्तों के महानुभावों से प्रार्थना है कि वे भी इसी प्रकार अपने २ प्रान्तों में कोई न कोई संस्था कायम कर प्रस्तावों का जोरों से अमल करावें। और पौरवाल जाति को पुनः अपने असली गौरव पर काने का प्रयत्न करे। और कार्य की सूचना सम्मेलन श्रोफिस सिरोही को देने की कृपा करें। Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीर प्रगति का साधन पत्र लेखकः भीमाशंकर शर्मा, वकील, सिरोही । "Pen is mightier than Sword" . आधुनिक सभ्यता की अनेक प्रगति कारक एवं हितकारक बातों में वर्तमान पत्र या अखबार भी एक मुख्य बात है। वर्तमान युग में किसी भी देश, जाति या राष्ट्र की उन्नति का मुख्य साधन एवं प्रगति प्राप्त किये का मुख्य चिन्ह पत्र यानी अखबार समझा जाता है। वर्तमानपत्र की उत्पत्ति का इतिहास देखने से मालूम होता है कि उसका जन्म पहले पहल चीन में हुआ था। अाज तमाम सभ्य एवं प्रगतिशील देशों में नि:सस्त्र प्रजा का शस्त्र, पराधीन प्रजा का एक मात्र आश्वासन अखबार समझा जाता है। जिस देशमें या जाति में अखबार नहीं निकलते हों वह देश या जाति सभ्य नहीं माने जाते । मुद्रण यंत्रों की खोज होने के बाद यह पत्र सम्पादन-कला भी आधुनिक सभ्यता में एक एक महत्व पूर्ण स्थान रखने लगी है। इस कला के मर्मज्ञ प्राचार्य आज अपने देश में सर्वत्र सम्मान की दृष्टि से देखे जाते हैं। बल्कि वे अपने समाज में एक प्रकार की शक्ति के केन्द्र ( Center of power ) समझे जाते हैं। वे चाहे तो राज्य में या समाज में क्रान्ति पैदा कर सकते हैं। प्राचीन काल के ब्राह्मणों को भारतवर्ष में अन्य वर्णों वाले जिस सम्मान की दृष्टि से देखते थे और भारतीय समाज पर उन विप्र देवताओं का जो प्रभुत्व था, उससे भी अधिक सम्मान की दृष्टि से आधुनिक शिक्षित समाज पत्र-सम्पादकों को देखती है और देश या समाज पर उनका ब्राह्मणों से भी बढ कर प्रभुत्व है। यूरोप, अमरीका के बड़े बड़े देशों में पत्रों की उपयोगिता जितनी समझी गई है, उतनी शायद ही किसी देश में समझी गई हो । अच्छे अच्छे पत्रों के दिन भर में ८-१० संस्करण निकलते हैं और प्रात:काल से लेकर सायंकाल तक ऐसे पत्रों की लाखों नकलें निकल कर घंटों में बिक जाती हैं। वहां करोडपति अमीर से लेकर मील या Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रगति का साधन पत्र [ गोदी में काम करने वाला गरीब से गरीब मजदूर मी अखबार खरीदना और पढ़ना अपना एक नित्य का कर्म समझता है । भारत में भी, दूसरे प्रान्तों में, अच्छे अच्छे अखबार निकलते हैं । सार्वजनिक पत्रों के सिवा शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ी हुई जातियों में अपनी २ जातिके लिये दैनिक, साप्ताहिक एवं मासिक वगैरा निकलते हैं। ऐसे पत्रों से क्या फायदे होते हैं यह बात आज किसी विचारशील व्यक्ति को समझाने की आवश्यक्ता नहीं है । बहुत से लोग कहते हैं कि यह युग स्पर्धा का है और इसका खास सिद्धान्त Survival of the fittest यानि सर्वोत्तम का ही संग्राम में विजय पाने का है। जो व्यक्ति योग्य नहीं है, जिसमें किसी विशेष प्रकारकी शक्ति नहीं है, वह इस युग में विजयशाली नहीं हो सकता । यहां सग्राम से मेरा मतलब शस्त्रास्त्र से परस्पर लड़ने से यानि हिंसात्मक युद्धों से नहीं, किन्तु संसार में जीवित रहने के लिये अन्य जातियों और व्यक्तियों से की जाने वाली स्पर्धा यानी जीवन-संग्राम के मुकाबले से है। उर्दू भाषा के प्रख्यात शायर अकबर इलाहाबादी ने एक स्थान पर लिखा है "खींचो न कमानों को, न तलवार निकालो ; अब तोप मुकाबिल है, अखवार निकालो। " अर्थात धनुष की कमानों को मत खींचो, न म्यान में से तलवारें बाहर निकालो । जबकि तुम्हें तोपों से मुकाबिला करना है, तो तुम्हारे श्रात्मरक्षण के निमित्त, अखबार यानि वर्तमान पत्र निकालो ! इस लेख के शीर्षक के नीचे अंग्रेजी भाषा की जो उक्ति उद्धृत कीगई है, उस का मतलब यह है कि लेखनी तलवार से भी अधिक शक्ति वाली है। यहां लेखिनी से मतलब अखबारों की शक्ति से ही है। अखबार वाले अपनी लेखनी के आन्दोलन के जरिये दुनिया में असंभवित घटना को संभावित और संभवित को असंभवित बना देते हैं । जिन देशों में समाज और राज्य कार्य के करने वाले जनता के अभिप्रायानुसार चुने जाते हैं, वहां बड़े बड़े अग्रेसरों के पक्ष को समर्थन करनेवाले खास अखबार होते हैं या चुनाव के समय जनता में जिसका ज्यादः प्रचार और प्रभाव हो, उसको उतने समय के लिये वे खरीद लेते हैं। जिस अग्रेसर या नेवा के पास Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीर . खोकमत ( Public Opinion ) को अपने अनुकूल बनाने का साधन अखबार न हो, वह चाहे कितनाही बड़ा क्यों न हो, चुनाव में विजयशाली नहीं हो सकता। अर्थात् जिसकी तरफसे अखबार में अान्दोलन न हुआ हो उसको ज्यादह मत ( Votes ) मिलना मुश्किल है। ... ____ सार्वजनिक पत्रों की आवश्यक्ता को समझने के बाद कोई व्यक्ति यह सवाल शंका के तौर पर कर सकता है, कि देशमें जब इतने अनगिनती पत्र निकलते हैं तब फिर ज्ञातियों रूपी संकुचित मर्यादा को उत्तेजना देनेवाले अनुदार पत्रों की क्या आवश्यक्ता है ? इस का जवाब यह है कि ज्ञातियों की चर्चा सार्वजनिक अखबार वाले नहीं लेते हैं यह बहुत ही कम लेते हैं। यहां पर कोई यह भी सवाल कर सकता है कि राष्ट्रीय भाव प्रधान वर्तमान युगमें ज्ञातियों रूपी छोटे छोटे समूहों को टिकाये रखने की भी क्या जरूरत है ? जहां विश्वबन्धुत्व ( Universal brotherhood ) की आदरणीय और उदार भावना संसार में फैल रही है, ऐसे समय में छोटी २ दल बन्दीयों को उत्तेजना देना क्या उचित है ? इसका उत्तर यह है कि जात पांत तोड़क सुधारकों के भगीरथ प्रयत्न करने पर भी जातियां या ज्ञातियां टूटी नहीं है; हां, अलबत्ता उनके बन्धन कमजोर जरूर हुए और होते जारहे हैं ! जब तक भारतवर्ष में छोटे छोटे गिरोह या समूहों के रूप में ज्ञातियों का अस्तित्व है, तब तक उन को सुधारना, उनको देश के उपयोगी बनाने का प्रयास करना यह प्रत्येक देशभक्त का परम कर्तव्य है। भारतका उद्धार या तो ऐसे छोटे छोटे समूहों को प्रगतिशील बनाने से होगा या उनका अस्तित्व ही मिटा देने से अर्थात् उनका सर्वथा नाश कर देने से होगा। इस दृष्टि से जब तक ये ज्ञाति रूपणी सरिताएं भारतवर्ष के भिन्न २ भागों में बह रही हैं ओर जन समाज उनके जलको पीने तथा नहाने धोने के काम में लाते हैं, तब तक उनके जल को हर तरह से शुद्ध बनाये रखना अत्यन्त जरूरी है । उनमें सबसे पहले तो अक्षर ज्ञान का फैलाना परम कर्तव्य है । उसके बाद उनको यह सिखाना कि देश के प्रति भी तुम्हारा कुछ कर्तव्य है । देशमें कहां क्या चल रहा है, नेतागण समय २ पर क्या आन्दोलन किस हेतु उठाते हैं। देशके ऊपर जब संकट आवे तब उनका क्या कर्तव्य है, इत्यादि बातों का उनको समुचित Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रगति का साधन पत्र ज्ञान कराना चाहिये । उनमें जो २ सामाजिक कुरीतियां हो और जो उनकी या राष्ट्र की प्रगति प्राप्त करने में बाधाकारक होती हों, उन कुप्रथाओं के परित्याग के लिये उन समझाना चाहिये । ये सब कार्य बिना ज्ञाति पत्रों के नहीं हो सकते । क्योंकि देश में दुनिया भर की खबर फैलाने वाले एवं राजनैतिक चर्चा करने वाले जो पत्र निकलते हैं, उनके संपादक ज्ञातियों की छोटी २ बातों को अपने पत्रों में स्थान नहीं देते हैं, न वे ज्ञातियों में नित्य प्रति घटनेवाली भली बुरी सामाजिक घटनाओं के संबंध में अपने विचार ही जाहिर करते हैं । कोई सज्जन किसी ज्ञाति की कैसी भी प्रावश्यक चर्चा सार्वजनिक पत्र में प्रकाशित कराने के हेतु से लिख भेजता है, तो उस व्यक्ति को पत्र सम्पादक की ओर से जवाब मिलता है कि हमारे पत्र के कीमती कालम ज्ञातियों की निकम्मी चर्चा के लिये नहीं है । ' ज्ञाति में एक धनवान आदमी ने विद्याप्रचार के लिये कुछ रूपये दिये। उसकी यदि उचित प्रशंसा की जाय तो दूसरे धनवान भी देखा देखी सहायता देने के लिये तत्पर हो सकते हैं । प्रथम दान देनेवाले व्यक्ति की प्रशंसा में यदि कोई लेख लिख कर प्रकाशित करने के लिये भेजा जाय, तो सार्वजनिक पत्र वाले उमे Refused with thanks अर्थात् 'आभार सहित अस्वीकृत' रिमार्क के साथ वापस लौटा देते हैं । अथवा जाति में किसी ने अपनी कन्या के रूपये लेकर उसको बूढे खूसट या रोगी के साथ ब्याह दी या ब्याह ने के लिये वह तत्पर हुआ है, और अगर उसके विरुद्ध यथेष्ट आन्दोलन नहीं किया जायगा तो उस कन्या का भविष्य जीवन अन्धकारमय हो जायगा । उस आन्दोलन के लिये जातीय पत्रों की आवश्यक्ता अनिवार्य है, इसमें किसी प्रकार का सन्देह या मतभेद नहीं है । वर्तमान युग को लोग यंत्रयुग भी कहते हैं । रेल, तार, मोटर, स्टीमर, बेतारके तार ( Wireless messages ), टेलीफोन, रेडीयो और वायुयान अर्थात् हवाई जहाजों के जरिये लोग पूर्व कालकी अपेक्षा बहुत ही कम समय में एक देशसे दूसरे देशमें सफर कर सकते हैं । महीनों का प्रवास आज वे घंटों में पूरा कर सकते हैं । इसी प्रकार मुद्रण यंत्र यानी छापखानों की खोज के बाद एक व्यक्ति के विचार हजारों लाखों बल्कि करोड़ो व्यक्तियों तक पहुंच सकते हैं । जैसे तालाब या समुद्र के स्थिर और शान्त जलमें एक छोटा सा भी कंकर Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीर डालने से उस में तरंगें उठ कर के धीरे २ सारे जलराशि में फैल जाती हैं। उसी प्रकार एक विद्वान् अपनी लेखनी द्वारा अपने घरके शान्त एकान्त कोनेमें बैठ कर जो कुछ भी लिखता है, उसको पढ़ कर हजारों नरनारी प्रभावित होते हैं । यह बात केवल अखबार या पुस्तकों के साधन से ही संभवित हो सकती है । पुस्तकें निर्दिष्ट विषयोंपर लिखी जाती हैं जबकि एक अखबार या पत्रमें देश, जाति या समाज की अनेकों बातों का ऊहापोह किया जा सकता है । पत्र मासिक हो तो मास भर की, पाक्षिक हो तो पन्द्रह दिन तककी और साप्ताहिक हो तो हफ्ते भर की भली बुरी घटनाओं का अवलोकन या समालोचना उस जाति के खास पत्र में की जासकती है। बिना जातीय पत्र के ये सब बातें नहीं हो सकती । इस लिये आज कल जाति सम्बन्धी पत्रपत्रिकाओं की आवश्यक्ता को हरेक छोटी बड़ी ज्ञाति वाले समझने लगे हैं। ____ हमारे सिरोही राज्य में जातीय पत्र पत्रिकाएं पहले किस जाति में निकली और वे कैसे बन्द हो गई उसका उल्लेख करने से इस लेख का कलेवर बहुत बढ़ जाने का संभव है। इस लिये अखिल भारतवर्षीय पोरवाल महासम्मेलन के विवेकी कार्यकर्ताओं को धन्यवाद देकर ही सन्तोष मानता हूँ कि जिन्होंने इस " महावीर" मासिक को प्रकाशित करने के समयोचित प्रस्ताव को कार्यरूप में परिणित किया है । मैं आशा करता हूं कि पोरवाल समाज के विवेकी भाई बहन " महावीर" को अन्तःकरण से अपना कर स्वयं महा-वीर बनेंगे और पोरवाल समाज के पुनरुत्थान के इतिहास में अपना नाम सुवर्णाक्षरों से लिखवायेंगे । ॐ शान्तिः। Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वीकृत नियम सिरोही की पौरवाल ज्ञाति के स्वीकृत नियम इस वक्त नियात के जो प्रबन्ध हैं उसमें कई प्रबन्ध ऐसे हैं कि जिनमें जमाने की हालत को देखते फेरफार किया जाना मुनासिब है। इसलिये सर्व सज्जनों की सम्मति से नीचे मुजब ठहराव पास किये जाते हैं सो इन ठहरावों के माफिक हर एक भाई बहिन को अमल करना लाजमी होगा । जन्म से सम्बन्ध रखने वाले १-सात माही के राखड़ी के बांधने का जो रिवाज है वह कायम रहेगा मगर वरले देना बन्द किया जाता है सो आइन्दा वरले नहीं दिये जायगे। २-होलियां की ढूंढ गांवसर डाली जाती है वह बन्द की जाती है बाहर गांव की ढूंढ आवे तो ली जाय । ३-सुवावड़ होने बाद मक्को के टोटे दिये जाते हैं वे कतई बन्द किये जाते हैं। सगपण से सम्बन्ध रखने वाले १-सगपण के वक्त गौल ऽ१, गौला १, दही ऽ१ दस्तूर माफिक भेजा जाय लेकिन सीरा बन्द किया जाता है । २-लाडवेरा भेजने का दस्तूर कायम रक्खा जाता है मगर घाघरे पर किनारी नहीं लगाई जाय । ३–शादी होने तक कन्या को जेवर नीचे माफिक तोल का चढ़ाया जाय । सोने का जेवर तोला २५ तक, चांदी का जेवर तोला २०० तक । विवाह से सम्बन्ध रखने वाले १-गोत्री व औरतें जिमाना बिलकुल बन्द किया जाता है । २-लग्न का काम शुरू होवे तब तक कन्या को जेवर वर की तरफ से . . . .रु. ७००) सात सौ तक और चढ़ाया जाय । Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावार ३-महूरस का जीमन कायम रक्खा जाता है । ४-शाक व मधूकना बंदाना व माटला बेड़ा लाना बंद किया जाता है। ५-पडले के वेष चार होंगे जिसमें घाघरा २१ पल्ले का होगा । ६-कलेवा नालेर का कायम रक्खा जाता है। ७-संगरीवांनेले में ३५ मनुष्यों से ज्यादा नहीं भेजे जाय और वे सब छोटे बड़े मिलाकर होंगे। ८-वोवार हमेशा के दस्तूर माफिक कायम रहेगा । --जीमन लग्न के दिन दस्तूर माफिक कायम रहेगा । १०-शादी जहां तक मुमकिन हो जैन विधि से की जाय । ११-गोटी व खूप कतई बन्द किया जाता है । १२–नियात की गूगरी बदस्तूर कायम रक्खी जाती है। १३-पापड की लोई देने का दस्तूर है वह बन्द किया जाता है । १४-शादी होने के वक्त व ओतरों के वक्त विन्द बिन्दनी के बाप या भाई को ‘रु. १) व नालेर दिया जाता है वह कायम रक्खा जाता है और सगे गिनायत जो हाजिर हो उनको नालेर व पैसे दस्तूर माफिक दिये जाय । १५–ोतरों के वक्त बादाम का थाल भराया जाता है उसके बजाय दस सेर पक्की बादाम दी जाय । बाकी सामान दस्तुर माफिक रहेगा । १६ -श्रोतर होने तक जमाई सासरे सोने जाय । दिवाली तक सोने जाने का रिवाज बन्द किया जाता है । १७ --देवांगणा व वरलारोटी का रिवाज बन्द किया जाता है । १८-लड़की वाला आइन्दा से दो गौरव देगा जिसमें एक नियात का व एक सगों का होगा और जिसको जियादा करियावर करना हो तो नियात के एक से ज्यादा गौरव कर सकता है । १६-शिरामणी बदस्तूर कायम रक्खी जाती है । २०-हर एक जीमन में जहां खिचड़ी होती है उसके बजाय चावल किये जाय । Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वीकृत नियम [ २१ -- नियात के गौरव के दिन लड़की वाले की तरफ से लापसी मण पांच कच्ची तोल यानि सिरोही के तोल की बिन्द ( वर वाले ) के यहां भेजी जाती है वह बदस्तूर कायम रहेगी। सगों के खाने के पुरसियों की लापसी इसमें शामिल है । २२ -- ओतरों के वक्त मिठाई व बादाम के रुपये दिये जाते हैं वे बदस्तूर कायम रहें । २३ – बिन्दनी को लग्न चूड़ा का पहिनाना कायम रक्खा जाता है । २४ - - बाजे गाजे रंडी आतशबाजी बन्द की जाती है । ढोल, थाली, नकारा व ढोलन लाने की इजाजत है । २५ – बाहिर परपट्टी में लड़के का सगपण करे उसमें जेवर व करीयावर घर धनी अपनी मंशा माफिक करे मगर बेन्ड, रंडी व आतशबाजी नहीं ले जाय व रेशमी कपड़ा नहीं वापरे । २६ - आडवांनोलिया बंद किया जाता है । २७ -- शादि होने बाद व ओतर होने बाद बिंद बिंदणी गाडी में बैठकर घर आते हैं उसके बजाय पैदल वें । २८ -- बिंदनी का भांजा हो तब मरवन जीमने को बदस्तूर जावें । २६ -- पेहरावणी का सीरा अगले सरस्ते मुजब कायम रहेगा । ३० - जीमन में जीमने को कहे उसी के घर वाले जाये उसके घर से सगे भाई बहिन बेटी व भांगेज के खानदान में से जा सकते हैं । दूमरे नहीं । ३१ - बाहर गांव में छोकरी दी जाय तो सामी खीचड़ी से ब्याव करे | ३२ -- दीवाली का मगज ( दौर ) डाला जाता है वह बंद किया जाता मांमेरा सम्बन्धी १ - - मामेरा का पारा २५ सेर तोल सिरोही का कायम रहेगा और गोरव के दिन परीया मणा आधा तोल सिरोही का मांमेरावालों को दिया जायगा जिसके मांमेरा आयगा वह देवेगा । २ -- मांमेरा नहीं होत्रे और सिर्फ नाणा देवे तो नाये का पारा १० सरे तोल सिरोही का होगा । Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महावीर ३-मामेरा करते वक्त ढोल थाली बाजंत्र का ४) २० दिया जायगा । ४-मामेरा करते वक्त नारेल टक्का जो हाजिर होवेगें उनको दिया जयगा । मृत्यु सम्बन्धी १-हाथजोड बदस्तूर कायम रहेगी। २-दुणा व कोरला बन्द किया जाता है मगर मन्दिर में जो देने का दस्तूर है वह कायम रक्खा जाता है । आगोरी थाली बन्द की जाती है । ३-मांडी करना बन्द किया जाता है । ४-गैर नियात का जलाने जाय उसके यहाँ की आदमी जीमन एक सेर तोल सिरोही का भेजा जाय । ५-टाणे बन्द किये जाते हैं। ६-विधवा होने बाद लुगाई ११ महा से १३ महा के अन्दर देवदर्शन करके बाहिर फिरे इससे अधिक खूणे नहीं बैठे । . ७-बेटा बेटी के मा बाप १४ महा से ज्यादा गमी नहीं रक्खे । दसरे रिश्तेदार ६ महा से जियादा गमी नहीं रक्खे और रंग बदला देवे । ८-गमी का काला रंग बांधना व ओढ़ना बन्द किया जाता है। हब्बासी मुंगया व आसमानी रंग रक्खा जाय । ह-बेटा बेटी की मा खूणे बैठती है वह दो महा से जियादा नहीं बैठे । १०-आदमी मरे उसके सासरे में छेडो डालने का रिवाज है वह कायम रहे मगर कपड़ा बदलाने बाद छेडा लेना बन्द किया जाता है। ११-छः तिथि दीवाली के पांच रोज, पयूषण, ओली, आखातीज व अहाई के दिनों में छेडा लेना बंद किया जाता है। मगर इन्ही दिनों में कोई फोत होजाय तो डाढ़ी तक या बाहिर गांवों से काणी आयें तो उसके लिये छूट है । रोजाना शाम को छेडा लेते हैं वह बन्द किया जाता है। १२-खणे वाली औरत १५ महीने व उसके मा बाप सासु ससुर १६ महा के खतम होने पर पुर पुरसिया लेवे । Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [n स्वीकृत नियम १३-लोकाचार कवारा जा सकता है। १४~ पापड खिचियाँ का जो सोग रक्खा जाता है वह बन्द किया जाता है । १५-दो साल तक उमर के बच्चे का सोग २ मास तक, व दो साल से ७ साल की उमर के बच्चे का सोग ३ मास तक व सात से जियादा उमर का कुंवारे का ६ मास तक सोग रक्खा जाय इससे जियादा न रक्खा जाय । १६-परणा हुआ आदमी मरे तो उस से व बेवा से बडी उमर वाले 8 मास तक व छोटी उमर वाले ६ मास तक सोग रक्खे ज्यादा नहीं । मुख्य नियम सम्बन्धी १-सात साल से लगाय बारह साल तक लड़की को पढ़ाने भेजना फर्जी होगा। २-छोणे लाना कतई बन्द किया जाता है घरके धराव की माफी है। ३-दांत का चूड़ा पहिनाना बंद किया जाता है । ४-रेशमी कपड़ा वापरना बंद किया जाता है मगर जिस किसी के घर में जो मौजूद है वह पहिन सकता है नया न खरीद करे । ५-सम्मेलन में वृद्ध विवाह रोकने का निश्चय हुआ है वह कायम रक्खा जाता है सो आइन्दा ४० वर्ष की उमर से जियादा उमरवाला शादी न करे । ६-बाललग्न को रोकने के लिये १८ वर्ष से कम उमर का लड़का व १४ वर्ष से कम उमर की कन्या का लग्न न किया जाय । ७-सम्मेलन में जिसके साथ रोटी बेटी का व्यवहार से हुआ है वह कायम रक्खा जाता है। ८-जीमन करने की रजा चार रोज पहिले ली जाय और रजा होने के बाद उस जीमन में किसी किसम की तकरार न डाली जाय गोरव व शीरांमणी -के दिन नेतरा देना हो तो पंच इकडे करे वरना पंच इकडे करने की जरू रत नहीं है। ६-शादी के मुताल्लिक सम्मेलन के रूल की पाबंदी करते हुए अपने नियात में जो लड़कियाँ ५ साल से ऊपर की हो उनके सगपण २ साल के अंदर Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ve j महावीर कर देवें और आइन्दा भी लड़की ७ साल की होवे उसके पहिले सगपण कर लेवें । १० - पंचों का लेहगा होवे तो जिसके घर पंच मांगते हो उसके ही घर तकशर ली जाय दूसरे किसी के घर तकरार नहीं ली जाय । ११ – सम्मेलन में जो बातें तें हुई हैं वे सब मंजूर की जाती हैं उसका अमल दरामद सम्मेलन की तारीख से होगा । १२ - बाकी कलमों की तामील ता० १ मई सन् १६३३ मिती वैषाख सुद६ सम्वत् १६८६ से होगी । १३ - इसके अलावा कोई बात रह गई होगी तो उसका अमल दरामद पहिले के मुताबिक होगा । १४ --- कन्या का पैसा नहीं लिया जाय । पंचों के नियम के विरुद्ध जो लोग काम करेंगे, उनको नीचे माफिक रकम बतौर शिक्षा के पंचों को देना होगा । जन्म सम्बन्धी कलम १ के रु० १1), कलम २ के रु० १1 ), कलम ३ रु० १1), सगपण सम्बन्धी कलम १ के रु० १1 ), कलम २ रु०५), कलम ३ रु०५१) लग्न सम्बन्धी कलम १ रु० ११), कलम २ रु०५१) कलम ४ रु० १) कलम ५ रु०२१) कलम ७ रु० ११), कलम ११ रु०२१), कलम १३ रु०५), कलम १४ रु० १ | ) कलम १५ रु० १1), कलम १६ रु० १1), कलम १७ रु० १ ), कलम १८ रु० १०१) कलम २०रु०५), कलम २१ रु० १ ), कलम २४ रु० २१) कलम २५ रु० २१, कलम २६ रु० ११), कलम २७ रु०५) कलम ३० रु० १1) ′′ फलम ३१ रु० ५०१), कलम ३२ रु० ५ ) । Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वीकृत नियम [७१ मामेरा सम्धन्धी कलम ३ रु. ११) कलम ४ रु. ११) मृत्यु सम्बन्धी कलम २ २०२१) कलम ३ रु. ११) कलम ५ टाँणे बिना पंचों की रजा के नहीं किये जा सकते इस वास्ते इसकी सजा की जरुरत नहीं है। कलम ६ रु० ५१), कलम ७ रु० २५), कलम ८ रु० ५), कलम 8 रु० ११), कलम १० रु० ११) कलम ११ रु० १०) कलम १२ रु० ११) कलम १५ रु० ११) कलम १६ रु० ११) मुख्य नियम सम्बन्धी कलम १ रु०॥) माहवार, कलम २ रु० ११) फी वक्त, कलम ३ रु. १०१) कलम ४ रु० २१), कलम ५ रु. १००१) एक हजार एक व पांच वर्ष तक चिलम पानी बंद। कलम ६ रु० ५०१) पांच सौ एक, कलम ६ रु. २५) सालाना, कलम १४ रु० ५०००) पांच हजार तक लेवे तो फी हजार दो वर्ष तक व उपरान्त लेवे तो फी हजार दो वर्ष तक व उपरान्त लेवे तो ऊपर की रकम पर फी हजार एक साल तक नियात बाहिर व हुका पानी बंद रहे। फक्त १६८६ रा वैशाख सुद १३ ता० ७ मई १९३३ ई० Game Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४] महावीर निम्न लिखित महाशय महावीर के पहिले ग्राहक हुए हैं उनके रजिस्टर नम्बर नीचे के माफिक हैं अतएव पत्र व्यवहार करते समय ग्राहक नंबर नीचे माफिक ही लिखा करें। ग्राहक न० १ श्रीमान् मोतीलालजी कोटा प्राहक नं. २ , बोहरा मुलचंदजी तीलोक चंदजी सिरोही ग्राहक नं०३ , अंबोर ताराचंदजी नवलमल जी , ग्राहक न०४ , सिंघी पुनमचंदजी हीराचंदजी , ग्राहक नं०५ , अंबोर राजमलजी धनराजजी , ग्राहक नं०६ , शाह प्रेमचंदजी देवीचंदजी बम्बई ग्राहक नं०७ , शाह नानाजी मोतीचंदजी अलीराजपुर ग्राहक नं०८ , शाह चुन्नीलालजी बेचरदासजी ,, ग्राहक नं०६ , शाह ऊंकारमळजी नेमाजी सिरोही ग्राहक नं० १० ,, शाह ऊंकारमलजी नेमाजी इन्दोर ग्राहक नं० ११ , मेसर्स सिंघी बधर्स अण्ड कु० इन्दोर प्राहक नं० १२ , साजी विजेराजजी सिरोही ग्राहक नं० १३ , सिंघी समर्थमलजी रतनचंद जी सिरोही ग्राहक नं० १४ , सिंघी कुन्दनमल जी जवानमलजी ग्राहक नं० १५ , वहित्रा पूनमचंदजी सरेमलजी .. ग्राहक न० १६ सिंघी विजयराजजी धनराजजी , ग्राहक नं० १७ , शाह केसरीमलजी कपूरचंदजी ,, ग्राहक नं० १८ , शाह कुन्दनमलजी रतनचंदजी , ग्राहक नं० १९ , वहिता लालचंदजी विजयराज जी ,, ग्राहक नं० २० , सिंघी ताराचंदजी सागरमलजी , ग्राहक नं० २१ ,, शाह अजेराजजी जवानमलजी , ग्राहक नं० २२ ,, पन्नालालजी डग ग्राहक नं० २३ , शाह कपूरचंदबी चीमनलालजी गोईली वाला ग्राहक नं० २४ , शाह ओगाजी चंपालाल जी उदयपुर ग्राहक नं० २५ , शाह देवीचंदजी जैन करनोल ग्राहक नं० २६ , सिंघी बाबूमलजी पूनमचंदजी सिरोही Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्राहकों की सूची ग्राहक न० २७ , के. आर. पोसीतरा सिरोही ग्राहक न० २८ , शंकरलालजी कपूरचंदजी मंडवारिया ग्राहक न० २६ ,, धांणेटीया बिजयराजजी ताराचंदजी सिरोही ग्राहक नं. ३० ,, सेठ खेताजी बरदाजी कडोद ग्राहक नं० ३१ ,, गुलाबचंदजी चुनीलालजी जावाल ग्राहक नं० ३२ ,, शाह नवलमल जी वनाजी , ग्राहक नं० ३३ ,, शाह जेठमल जी रतनचंदजी ,, प्राहक नं० ३४ , शाह भूरमल जी अमीचंदजी ,, ग्राहक नं० ३५ ,, पेराजजी मुलचंदजी ग्राहक न. ३६ ,, फुलचंदजी किस्तुरचंदजी , ग्राहक न०३७ , भगवानजी जवेरचंदजी कालन्द्री ग्राहक न० ३८ , श्री शान्ति जिन सेवा मंडल कालन्द्री ग्राहक नं० ३६ ,, पुनमचंदजी सांकलचंदजी ग्राहक नं० ४० ,, केसरीमलजी शंकरलालजी , ग्राहक न० ४१ , शंकरलालजी रिखबदासजी , ग्राहक नं० ४२ , एम. एस. जैन। ग्राहक नं० ४३ , हंसराजजी अमरचंदजी देलदर प्राहक नं. ४४ , कपूरचंदजी केसरीमल जी जावाल ग्राहक नं० ४५ , श्री जैन मित्र मंडल बरलूट ग्राहक नं० ४६ , चुन्नीलालजी जे. शाह बरलूट ग्राहक नं० ४७ , चुन्नीलालजी रतनचंदजी बरलूट ग्राहक न. ४८ , भबूतमलजी वन्नाजी जावाल ग्राहक नं० ४६ , शाह हजारीमल जी दानमल जी रोहेड़ा जैन शिक्षण संस्थाओं को सूचित किया जाता है कि अहमदाबाद से निकलने वाले "जैन ज्योति" का आसोज मास कः अंक खास शिक्षणांक होगा और उसमें हरेक संस्था का परिचय दिया जायगा। इसके लिये उन्होंने खास फार्म निकाले हैं जो दो पैसे का पोस्टेज टिकट भेज कर मंगा लिये जाय । Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महवार बुलेटिन न०१ एकता ही जीवन है प्रिय पोरवाल बन्धुओ! ___ संसार इस वक्त उन्नति की ओर अग्रसर हो चुका है, क्या हम अब भी सोते ही रहेंगे ? बन्धुनो। एक समय वह था जब अपनी ज्ञाति का नाम भारतवर्ष के कोने कोने में प्रसिद्ध था, और हमारी ज्ञाति धन जन से परिपूर्ण थी, परन्तु अफसोस ! अब हमारा वह सौभाग्य न रहा, हम कई भागों में विभाजित होकर छिन्नभिन्न होगये। प्रिय बन्धुश्रो! क्या आपने कभी अपनी ज्ञाति की अवनति का कारण का विचार किया है ? यदि किया है, तो फिर किस लिये देर करते हो, हमारी ज्ञाति की अवनति का कारण एक मात्र हमारी ज्ञाति में शाखा भेद का होना है। ज्ञाति बन्धुओ! ___एक ज्ञाति ८ या १० भागों में विभक्त रहकर क्या उन्नति कर सकी है ? क्यों कि हरेक व्यक्ति अपने को ऊंचा रखने, और दूसरे को नीचा दिखाने को उद्यमशील पाया जाता है। भाइयो! हाल ही में श्री अखिल भारतवर्षीय पौरवाल महासम्मेलन श्री बामणवाड़नी महातीर्थ (सिरोही ) में जो प्रस्ताव पास हुवे हैं वे इस शाखा भेद को बिलकुल मिटा चुके हैं, एवं वहां सर्वानुमत से पौरवाल ज्ञाति की शाखाभेद का विच्छेद हो चुका है। पौरवाल ज्ञाति के वीरो! - यदि हम सब एक साथ मिलकर कुछ कार्य करेंगे तो शीघ्रातिशीघ्र ज्ञाति को उन्नति के शिखर पर पहुंचा सकेंगे, संसार में एकता ही सबसे बड़ी व महत्व की वस्तु है। Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक्यता ही जीवन है ७ नीतिकारक का वाक्य है अल्पानामपि वस्तूनां, संहतिः कार्यसाधिका । तृणैर्गुणत्वमापन्नैषध्यन्ते मत्त दन्तिनः ॥ अर्थात्-छोटी छोटी वस्तुओं के समूह से भी कार्य सिद्ध होते हैं जैसे घास की बटी हुई रस्सियों से मतवाले हाथी बांधे जा सके हैं। संहतिः श्रेयसी पुंसा, स्वकुलै रल्पकैरपि । तुषेणापि परित्यक्ता, न प्ररोहन्ति तण्डुलाः॥ अर्थात्-अपने कुल के थोडे मनुष्यों का समूह भी कल्याण करनेवाला होता है । छिलके से अलग हुवा चावल फिर नहीं उग सका । प्यारे भाइयो! हमें भी अपनी ज्ञाति की उन्नति करने के लिये इस ही मार्ग का अनुसरण करना चाहिये । संसार में प्रशंसा के योग्य वही व्यक्ति है जो अपनी ज्ञाति व वंश की उन्नति करता है। जन्म मरण जग चक्र में, ये दो बात महान् । करेजु उन्नति ज्ञाति की, जन्म्यों सो ही जान ॥ बन्धनो! चेतो, चेतो और ज्ञाति की उन्नति करके समाज का काया पलट करदो, और निद्रा देवी के उपासकों को दिखा दो कि हम क्या कर सक्ने हैं। भवदीय शिवनारायण यशलहा, फक्त तारीख १९-६-३३ ई. मन्त्रीश्री मध्य-भारत पौरवाल संघ, न्यू क्लाथ मार्केट इन्दौर। नोट:-श्री मध्य भारत पौरवाल संघ इन्दौर यह श्री अखिल भारतवर्षीय पौरवाल महासम्मेलन (सिरोही) की एक शाखा है । इसलिये ज्ञाति उन्नति सम्बन्धी जो कुछ लिखना या पूछना हो उपरोक्त पते से पत्र व्यवहार करें । Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'महावीर' के नियम (१) यह पत्र प्रति मास प्रकाशित होगा । (२) इसका वार्षिक मूल्य सर्व साधारण के लिये रु० ११) रक्खा गया है। (३) रु. १०) दश प्रति वर्ष चंदा देने वाले सद्गृहस्थ इस पत्र के सहायक समझे जायेंगे और उनके नाम पत्र के हर अंक में सहायक-नामावली में प्रकाशित होते रहेंगे। (४) रु. १००) एक सौ की सहायता देने वाले उदार सज्जन पत्र के ग्राश्रयदाता समझ जायेंगे और उनको यह पत्र बिना मूल्य भेजा जायगा। उनके नाम भी आश्रयदाताओं की नामावली में हर मास प्रकाशित होते रहेंगे। (५) रु० २५०) की सहायता देने वाले महानुभाव इस पत्र के संरक्षक समझे जायेंगे और उनका जीवन चरित्र, मय फोटू के, प्रकाशित किया ज यगा । उनको भी पत्र बिना मूल्य भेजा जायगा। (६) महा सम्मेलन के उद्देश्यों के अतिरिक्त विवाद-पूर्ण धर्म चर्चा, व्यक्तिगत आक्षेपात्मक एवं राजनीति संबंधी लेखों को इस पत्र में स्थान नहीं दिया जायगा। (७) इसी प्रकार सारहीन लेखों को भी प्रकाशित नहीं किये जायेंगे जो सजन अपने लेख वापिस मंगाना चाहें, या कार्यालय से किसी प्रकार का उत्तर प्रत्यु. त्तर चाहें, तो उनको डाकखर्च के लिय टिकट भेजना जरूरी होगा । बेरंग चिहियां नहीं स्वीकारी जायेंगी। (८) प्रबन्ध संबंधी पत्र, रुपये आदि का पत्र व्यवहार महामंत्री, अखिल भारतवर्षीय पोरवाल महासम्मेलन, सिरोही से किया जाय । सम्पादन संबंधी लेख, पत्र, परिवर्तन ( Exchange ) के पत्रादि और पुस्तके वगैरा सम्पादक "महावीर" सिरोही (राजपूताना) के नाम भेजे जायं । पत्र व्यवहार का पता:--- "महावीर" कार्यालय सिरोही ( राजपूताना) Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अखिल भारतवर्षीय पौरवाल महा सम्मेलन :: :: :: :: :: : मुख पत्र महावीर के ग्राहकों को हिन्दी साहित्य कार्यालय से मिलने वाली पुस्तकें श्राधी कीमत में मिलेगी आबू तीर्थ स्तवनावली ... :) | मारवाडियों की दशा प्रारोग्यता प्राप्त करने का नवीन मार्ग =) मेन्ट ल टेलेपेथी एक विधवा की आत्म कथा ... | राजिमती कयवन्ना ... ... वशीकरणमंत्र ... कुसुमित कुसुम वस्तुपाल तेजपाल ... घनश्याम संदेशवा ... सती देवकी और सुभद्रा चम्पकमाला समाधि शतक जैन तत्वसार साक्षात् मोक्ष ... दुग्धोपचार श्राविका सुबोध भाग १ ... नई रोशनी की कुलदेवी श्राविका सुबोध भाग २ नित्यदर्शन श्रीपाल और मैनासुंदरी निकम्मी का ब्याह ... श्रीमन्दिरस्वामीजी का संदेशपत्र पौषध विधि हिपनोटिजम ... प्लेग सम्बन्धी उपचार ... ... ) हिन्दी वर्णमाला .... फैशन का फितूर ... होलिका बेगम समरू कन्या विक्रय ड्राफ्ट स्कीम 'दि जैन म्युच्युअल बेनिफिट वृद्धविवाह एन्ड एज्युकेशन चैरिटी फण्ड... बाल विवाह बाल शिक्षा ... फिजूल खर्ची मरने के पीछे रोना... सचित्र आबू ... ... २॥ मृत्यु पीछे जीमना स्त्री शिक्षा ... - नोट- पोरडर देते समय महावीर का ग्राहक बिगडे का सुधार ... नम्बर लिखे। पुस्तक मिलने का पता(१) श्री अखिल भारतवर्षीय पोरवाल महा सम्मेलन, सिरोही, ( राजपूताना ) (२) हिन्दी साहित्य कार्यालय, सिरोही. .. : :: :: :: Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विज्ञापन छपाई के नियम प्रतिमास छमासिक ५५) ३२) १६) पेज १ ० ॥ ५०) 이 २५) पत्र के किसी श्रंक के साथ हेन्डबिल्स वगेरा वितरण कराने के लिये एक वक्त के रु० १०) दस लिये जायेंगे । रु० १०) रु०६) वार्षिक १००) रु०३) जो विज्ञापन लेखों के बीच में छापा जायगा उसके लिये एवं टाईटल के २- ३-४ पेज पर के विज्ञापन के लिये विशेष चार्ज लिया जायगा । उसके लिये इस पत्र के व्यवस्थापक से पत्र व्यवहार करने से उचित जवाब दिया जायगा । विज्ञापन संबंधी तमाम पत्र व्यवहार व्यवस्थापक 'महावीर' सिरोही के पते से करना चाहिये । जैन - ज्योति मासिक पत्रिका गजब कर रही है । सिर्फ ढाई रुपये के वार्षिक मूल्य में - श्रीमान सुशील कृत आदर्श रामायण की बढिया किताब भेट देती है और शिक्षणका विशेषांक भी ग्राहक को मुफ्त देती है । इसमें अग्रगण्य जैन विद्वानों के लेख और जैन तीर्थों के चित्र भी प्रगट होते हैं । क्या आपने नाम लिखवाया ? मंत्री - धीरजलाल टोकरशी शाह हिन्दी -- बाल ग्रन्थावली प्रथम श्रेणी की २० पुस्तकें तैयार है। लेखक - धीरजलाल टो० शाह, अनु० भजामिशंकर दीक्षित | यह वही ग्रन्थावली है जिसकी केवल चार ही वर्ष में गुजराती भाषा में १७५००० प्रतियें हाथों हाथ बिक गई ! पुस्तकें - श्री ऋषभदेव, श्री नेमिनाथ, श्री पार्श्वनाथ, प्रभु महावीर, वीरधन्ना, महात्मा दृढ़ प्रहारी, अभय कुमार, रानी चेल्लणा, चन्दन बाला, इलाची कुमार, जम्बू स्वामी, अभयकुमार, श्रीपाला, महाराजा कुमार पाल, पेथड कुमार, विमलशाह, वस्तुपाल- तेजपाल, खमो देदराणी, जगद्शाह, धर्म के लिये प्राण देने वाले महात्मा गए । इन २० पुस्तकों का मूल्य केवल रु० १ ) पौने दो रुपये । डाक व्यय 11 ) सात आने मनीआर्डर से २) रु० भेजने वालों को वी. पी. खर्च बचेगा । गुजराती भाषा में ऐसी ६ श्रेणीय प्रगट हो गई हैं। मूल्य रु०८) डाक व्यय १ ॥ ) ज्योति कार्यालय, हवेली का पोल, रायपुर, अहमदाबाद. Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AAAAABlog o stoyoyalso * ॐ * श्री अखिल भारतवर्षीय पोरवाड महा-सम्मेलन का YYYY VVY 9Roolcoloni neymoyoyyyyest प्रथम अधिवेशन श्री कामणकाजी महातीर्थ [सिरोही सम्वत् १६६० वि० सभापतिश्रीमान् दलीचन्द कीरचन्द श्राफ . का yoy060606/ oo00*66060 DOGoluGolgalcolmoove भाषण मुद्रकजीतमल लुणिया, सस्ता-साहित्य प्रेस, अजमेर । वैशाख कृष्णा १ संवत् १९६० । वीर सं० २४५६, १ ११ अप्रेल सन् १९३३ । YEOCO05yool AVON COYOY HomoemgeocoROCHOPDoogenergrocyones १०११११ १११११११११19098450 Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकः--- समर्थमल रतनचंदजी सिंघी, महामंत्री, श्री अखिल भारतवर्षीय पोरवाड़ महा सम्मेलन | सिरोही ( राजपूताना ) Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अखिल भारतीय पोरवाड़ महा-सम्मेलन श्री बामण वाड़जी तीर्थ (सिरोही) . सभापति का भाषण अरिहन्ते सरणं पवज्जामि, सिद्धे सरणं पवज्जामि । . साहु सरणं पवज्जाभि, केवलिपणत्तं धम्म सरणं पवज्जामि ॥ पूज्यपाद् गुरु महाराजाओं, स्वागतकारिणी सभा के सभापति महोदय, प्रविनिधि बन्धुओं, बहनें और अन्य सजनवृन्द । 5 मारवाड़ की अति प्राचीन और पवित्र भूमि पर मिलने वाले 'श्री अखिलभौशीवर्षीय पौरवाल महासम्मेलन' के प्रथम अधिवेशन के अध्यक्ष स्थान के लिए मुझे नित कर आपने मुझे जो मान और गौरव दिया, है उसके लिए मैं आप सबका हृदय से उपकार मानता हूँ। इस पद को शोभावे ऐसे, अपनी ज्ञाति में अनेक विद्वान पुरुष, मुझसे भी अधिक योग्यता रखने वाले, मौजूद होते हुए भी, आपने मेरी ही नियुक्ति करके इस पद को ग्रहण करने की मुझे आज्ञा की और आपकी उस प्रेमपूर्ण आज्ञा को मुझे शिरोधार्य ही करनी पड़ी। मैं यह पद बड़ी नम्रता के साथ प्रहण करता हूँ और साथ ही साथ आपसे यह भी निवेदन करना उचित समझता हूँ: कि मेरे में जो असंख्य त्रुटियाँ मौजूद हैं उनका मुझे पूरा ज्ञान है । परन्तु मुझे माशा हैक उनत्रुटियों को समाज सेवा के पवित्र कार्य के निमित्त एकत्रित हुए भाप सब ' . . . Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २ ) लोग, निभा लेंगे और आप अपने अन्तःकरण से सहयोग देकर ऐसे भगीरथ कार्य के उत्तरदा यत्व को पूरा करने के मेरे प्रयास को प्रोत्साहन देंगे। ___ जिस स्थान में अपन सब लोग एकत्रित हुए हैं उसके चुनने में आपने अतिशय बुद्धिमत्ता का परिचय दिया है; क्योंकि बानणबाड़जी तीर्थ ऐसी जगह पर स्थित है, जिसकी चारों ओर पौरवालों की आबादी देखने में आती है। सिर्फ इतना ही नहीं लेकिन यह स्थान ऐसा महातीर्थ है जहां भगवान महावीर को कठिन उपसर्ग हुए थे और इसलिए जैनों के लिए यह अतिशय महान् पवित्र स्थान है । तदुपरान्त प्राग्वाट् जाति की उत्पत्ति भी इसी भूमि पर हुई है, ऐसे स्थान पर अपने सम्मेलन के प्रथम अधिवेशन का होना परम सौभाग्य की बात है। सब जातियों के पूर्व इतिहास की तरह, प्राग्वाट् जाति का इतिहास भी, बड़ा रसिक और बोधप्रद है। अपने पास के पालनपुर और आबूरोड स्टेशन से पश्चिम में ४० मील पर, गुजरात और मारवाड़ के सीमाप्रदेश पर, श्रीमाल नगर के प्राचीन खंडहर पड़े हैं और इस प्राचीन जाति का वह महास्थान आज नष्ट होगया है उस । नगर में श्रीमाली ज्ञाति की स्थापना होने बाद कितनेक समूह ( जत्थे ) क्रमशः अलग होकर अपने २ समूह का स्वतंत्र नाम धारण करने लगे और वे समूह आज श्रीमाली ज्ञाति के नाम से नहीं किन्तु अलग २ जातियों के नाम से पहिचाने जाते हैं । ऐसे समूहों में प्रतिष्ठावान् समूह ओसवाल जाति का है परन्तु श्रीमाली ज्ञाति के साथ ओसवालों का जिस प्रकार का संबंध है उस पे बिल्कुल ही उल्टे प्रकार का संबन्ध पौरवाल ज्ञाति के साथ है । ओसवालों की उत्पत्ति श्रीमालियों में से हैं जब कि पोरवालों की शाखाएँ श्रीमालियों से गूंथी हुई है । उत्पलदेव परमार नामक राजकुँवर और ऊहड़ नाम का श्रीमाली वणिक ये दोनों, अपने २ कुटुम्बियों से नाराज होकर, श्रीनगर छोड़कर चले गए और राजपूताने के मध्य भाग में रेतीले रण के बीच उष (ऊह ) वाली एक जगह में उप अथवा ओसनगर नामका नया नगर बसाया। उसके बाद श्रीमाल नगर की स्थिति दिन दिन खराब होने लगी, लूटेरों के जत्थे आक्रमण करने लगे और नगर लूटा जाने लगा। इस संकट से मुक्ति पाने के लिए महाजनोंने मिल कर चक्रवर्ती पुरुरवा राजा की सहायता लेने का निश्चय किया। राजा ने उनकी हकीकत सुनकर अपने खास चुने हुए दश हजार सुभटों ( वीरों) को श्रीनगर की रक्षा के लिये भेजे । - इन वीर योद्धाओं के आते ही नगर का दुःख मिट गया। इन योद्धाओं के ठहरने के लिये नगर से बाहर पूर्व दिशा में एक स्थान नियत किया था वहाँ अम्बिका देवी का मन्दिर था। योद्धागण देवी की पूजा करने लगे जिससे सर्व स्थल में वे विजय पाते गये । अपनी विजय-यात्रा से खुश होकर दिवाली के अवसर पर उन्होंने अम्बिका देवी की महापूजा की । देवी उनपर प्रसन्न हुई और एक रात्रि में सातदुर्ग (किले ) खड़े कर Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उन योद्धाओं से कहा कि "तुम लोग इन दुर्गों में रहो। मेरी पूजा करते रहना जिससे सर्वत्र तुम्हारा विजय होता रहेगा।" इस प्रकार अंबिका देवी ने जिन्हें बसाये वे पोरवाड़ या पोरवाल कहलाये । दूसरी कथा इस प्रकार है कि विष्णु ने श्रीमाल नगर में ४५ हजार ब्राह्मणों और ८० हजार व्यवहारियों को बसाये । फिर दो २ व्यवहारियों के बीच एक २ ब्राह्मण को सुपुर्द करते दश हजार व्यवहारिये कम हुए । इस पर कृष्ण पुरुरवा राजा के पास गये और उससे कहा कि मुझे चौरासी ज्ञातियों की स्थापना करनी है, जिसमें १० हजार व्यवहारिये कम होते हैं । इस लिये तू अपनी प्रजा में से मुझे दश हजार पुरुष सौंप । राजा ने कहा कि मैं मेरे पुत्रों को वहाँ आबाद होने के लिये भेजता हूँ । विष्णु ने इस प्रकार दश हजार पुरुषों को लाकर श्रीमाल नगर में बसाये और वे श्रीमाल नगर की पूर्व दिशा में रहे। . ऊपर की दोनों कथाओं का तात्पर्य एकसा ही है । मल में पूर्व दिशा से आये हुए हैं यह बात 'प्राग्वाट,' 'पूर्वाट' या 'पोरवाड़' (पोरवाल ) आदि शब्दों से स्पष्ट मालूम होती है। प्रारंभ में पोरवाल दशहजार थे लेकिन थोड़े ही समय में उनमें से दूसरी दो ज्ञातियों की उत्पत्ति हुई और उनमें फिर श्रीमाली शामिल हुए जिससे उनकी संख्या बहुत अधिक बनी रही । पाटण के राज दरबार में श्रीमालियों के साथ पोरवाड़ भी अपना कारोबार चलाते हैं, इससे मालूम होता है कि श्रीमाली और पोरवाड़ गुजरात में साथ २ ही गये होंगे । पोरवाड़ों को सात- दुर्ग मिलने से उनमें १ प्रतिज्ञानिर्वाह (लिये हुए प्रण का पालन करने वाले ), २ स्थिरप्रकृति, ३ प्रौढ़ वचन ( भारदस्तवाणी ), ४ बुद्धिमत्ता, ५ सबका भेद समझने की शक्ति ६ दृढ़ मनोबल और ७ महत्त्वाकांक्षा-ये सात सद्गुणों का आगमन (निवास) हुआ। ओसवाल जिस प्रकार असल राजपूत हैं, वैसे पोरवाड़ मूल योद्धा हैं । ओसवालों का विरुद "अरडक मल्ल" है वैसे पोरवालों का बिरुद "प्रगट मल्ल" है। 'प्रगट मल्ल' का अर्थ जाहिर योद्धा होता है । यह बिरुद उन्होंने दीर्घ काल तक निभाया है । पाटण के महाराजा भीमदेव प्रथम के सेनापति विमलशा पोरवाड़ थे। उन्होंने मालवा और सिन्ध के उपर आक्रमण कर विजय प्राप्त किया था। आबू पर विमलवस ही में, आसपास बारह सुलतान और बीच में अश्वारूढ विमलशा की प्रतिमा, करीब ७००-८०० वर्ष पहले का प्राचीनदृश्य है । उस पोरवाड़ वीर योद्धा ने 'बारह सुलतानों के छत्र हरने वाले' की पदवी प्राप्त की थी। वस्तुपाल तेजपाल ने विशल देव के मंत्री की हैसियत से समस्त गुजरात, काठियावाड़, वाकल और लाट की सीमाओं की उस पार अपनी धाक जमाई थी। Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४ ) रणि राउली शूरा सदा, देवी अंबाली प्रमाण पोरवाड़ परगट्टमल्ल, भरणी न मुकई माण । -- - देवालयों के निर्माता के नाम से पोरवाड़ों ने जैसी कीर्ति संपादन की है, वैसी कीर्ति आज तक दूसरी किसी जाति ने नहीं की। जिन देवमन्दिरों के कारण से जैनों का नाम दुनिया भर में मशहूर हुआ है, उन सब देवालयों के निर्माता पोरवाड़ ही हैं। श्रावू ऊपर का विमल शाह का मन्दिर उसकी अद्भुत शिल्प कला के लिये जगविख्यात है। उसी प्रकार वस्तुपाल तेजपाल के आबू एवं गिरनार पर के देवालय भी उनकी अपूर्व कला के लिये मुल्कमशहूर हैं । प्रख्यात राणकपुर का दहेरासर जो अपनी बनाबट के लिये समस्त विश्व में अद्वितीय है, उसका निर्माता धनाशा नामक नांदिया (सिरोही राज्य) निवासी पोरवाड़ ही है। उसके रवं भे और मुंबजों की समता कर सके ऐसा प्राचीन शिल्प कहीं भी नहीं है । अंबाजी के पास के कुभारिया ग्राम के दहेरासरों के बनाने वाले भी चंद्रावती नगरी के पोर वाड़ ही हैं । संवत् १०८ में शत्रुजय पर के जिनालयों का जीर्णोद्धार हुआ था जो जावडशाह पोरवाड ने कराया था । वल्लभीपुर ( काठियावाड) के पोरवाड़ वणिक काकू की पुत्री अनंगभद्रा ने शीलादित्य के सैन्य में दाखिल होकर और अप्रतिम पराक्रम दिखाकर अमरू वीन जमाल के लश्कर को हरा कर बिखेर दिया था । दानशूरता में पोरवाड़ अन्य किसी जाति के दानवीरों से कम नहीं हैं। विमलशाह एवं उसकी पत्नी श्रीदेवी दान के लिये इतने विख्यात हो चुके थे कि पाटण के भाटों ने उनका नाम “विमल श्री सुप्रभातम्,” "पुण्य श्लोक नल" की तरह, प्रातःस्मरणीय नाम के तौर पर चालू रखने का ठहराव किया था। सं० १७२१ में, मेरु विजय कवि ने रचे हुए वस्तुपाल तेजपाल के रासों पर से मालूम होता है कि, वस्तुपाल तेजपाल ने केवल जैन धर्म और समाज के लिये ही नहीं बल्कि सार्वजनिक कार्यों के लिये भी उदारता से अपार द्रव्य का व्यय किया था। वस्तुपाल, धनवान् एवं सत्तावान् होने पर भी, महान् कवि, विद्वान् , त्यागी और जितेन्द्रिय पुरुष था । पोरवालों की वसति गुजरात, काठियावाड़ और कच्छ में सर्वत्र प्रसरी हुई है । उसी प्रकार मालवा, आबू के आस-पास के प्रदेश (सिरोही राज्य ), मारवाड़ और उनकी छोटी !बस्ती संयुक्त प्रान्तों में और दक्षिण बराड़, हैदराबाद एवं औरंगाबाद वगैरा विभागों में फैली हुई है । पोरवाड़ों की शाखा सोरठीया पोरयाड एवं कपोल ये ज्ञातियें वैष्णव धर्म को मानती हैं। उसी प्रकार शुद्ध पोरवाडों में भी वैष्णव एवं जैन ये दोनों ही धर्म प्रचलित हैं । पोरवाड़ों की एक शाखा जांगडा नामक है वह मुख्यतया जैन है और उसके २४ गोत्र हैं। पोरवाड़ जाति का आदिम स्थान, सिरोही राज्य में आई हुई, पद्मावती नामक नगरी थी। - अन्य ज्ञातियों की तरह पोरवाडों में भी दशा बीसा के भेद हैं। ये भेद गुजरात में ही पैदा हुए हैं और वे सं० १७०० के करीब पड़े हों ऐसा मानने के लिये वास्तविक Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कारण है । दशा, वीसा, पाँचा, अढ़ीया, एका तथा नीमा बगेरा तड़ भी हैं और वे भी गुजरात में ही हैं। उपरान्त सुरती, अहमदाबादी, भावनगरी वगेरा शहरों के नामों पर से भी पोरवाड़ों में ज्ञाति-भेद अस्तित्व में आये हैं। ..... . . ऐसी महान् पोरवाड़ ज्ञाति जो पूर्व काल में द्रव्यवान और समृद्धिशालिनी थी; जिस ज्ञाति में महान् मुत्सद्दी (राजनीतिज्ञ), विख्यात विद्वान्, मशहूर राजकारण के ज्ञातागण, अनुपम देशसंरक्षकगण और समाजहितचिन्तक नर हुए हैं, उसकी वर्तमान में क्या स्थिति है इस बात का गंभीर विचार करने की परम आवश्यक्ता है ।। ___ आज के जैसे सम्मेलन यानी परिषद की इस समय अनिवार्य आवश्यक्ता है, यह निर्विवाद बात है। संसार के प्रति दृष्टिपात करने पर अपने को यही प्रत्युत्तर मिलता है। संसार के अनादि काल से हरेक युग में परिवर्तन हुआ ही करता है। आधुनिक युग के वातावरण को देखने से मालूम होता है कि हरेक देश में अजीब फेरफार अलौकिक जागृति और अद्भुत प्रगति के आन्दोलन उठ रहे हैं । हरेक समाज अपने सड़े हुए अंगों का पुनरु द्वार करने में लगा हुआ है । प्राचीन प्रणालिकाएं, उनकी सत्त्वहीनता के कारण, अपने आप हो नष्ट होती हैं। जड़वाद की जगह बुद्विवाद - के दर्शन हो रहे हैं और जनता, गतानुगतिकता का परित्याग कर, सच्चो स्वाधीनता की उपासिका बनती जा रही है । इस युग का प्रभाव प्रजा के राजनैतिक, आर्थिक, धार्मिक एवं सामाजिक जीवन पर पूर्णतया पड़ चुका जिसके परिणाम स्वरूप प्रजा के विचारों में, रहन सहन में और मन्तव्यों में बड़ा भारी परिवर्तन देखने में आता है। प्रत्येक राष्ट्र या समाज को इच्छा या अनिच्छा से, इस विराट परिवर्तन को मानना पड़ता है। क्योंकि उसमें प्रजा के जीवनमरण का संबंध लगा हुआ है । जागृति के इस प्रबल प्रवाह से प्रफुल्लित होकर अनेक समाजें अपना संगठन साधने और नवजीवन प्राप्त करने के लिए भगीरथ प्रयास कर ऐसे अमूल्य समय में, जैन समाज को भी, अपने प्रमाद को त्यागकर, जाप्रत होने की आवश्यकता है। जैनों का गौरव यह आजकल का विषय नहीं है। इसका प्रतिभाशाली एवं ज्वलंत इतिहास जगत् के साथ ही शुरू होता है। इस धर्म के अचल, अबाधित एवं अद्वितीय सिद्धान्त जगत् के लिये दिव्य उत्तराधिकार रूप हैं। पाश्चात्य प्रजाएँ, घोर रण संग्रामों से उकता कर, इसका आश्रय ग्रहण करने के लिये तत्पर बनी हैं । महात्मा गान्धीजी ने, उन्हीं सिद्धान्तों को जगत् के सामने रख कर और अहिंसा का दिग्विजय कर दिखला कर जैन धर्म के अनुयायी समूह पर बड़ा भारी उपकार किया है । इस परसे मालूम होता है कि एक समय में जैन धर्म विश्वधर्म था और फिर भी वह विश्वधर्म होने की योग्यता रखता है । जैन-समाज को इस अमूल्य अवसर से पूरा २ लाभ उठाना चाहिये । Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - भारतवर्ष, प्राचीन काल में, अत्यन्त सत्यनिष्ठावान्, सदाचारसंपन्न एवं सुधारणा या संस्कृति की परिसीमा पर पहुँचा हुआ देश था । जब कि आज वही भारत अनेक प्रकार की खरावियों में डूबा हुआ, अनेक वर्षों में विभक्त हुआ और अनिष्ट प्रथाओं की दासता से जकड़ा हुआ दृष्टिगोचर होता है। देश-काल के बदलने पर मनुष्य के आचार विचार भी बदलते हैं । केवल कुदरत के कानून ( नियम ) अचल एवं अबाधित रहते हैं। अनेक व्यक्तिएं परस्पर के सहयोग से सुखमय जीवन व्यतीत करने के लिये एकत्र होती हैं, उसी का दूसरा नाम समाज है । और उस समाज को व्यवस्थित रूप से चलाने के लिये नियम बनाये जाते हैं। उन नियमों में से, कुप्रथा के रूप में परिणत हुए, अनिष्ट तत्वों को समाज समय २ पर दूर करता है। क्योंकि कायदे, नियम और रूढियें मनुष्यकृत हैं और मनुष्य के लिये फायदेमंद है। इसलिये जब वे कायदे, रूढियें नियमें मनुष्य जाति का हित करने की बनिस्पत अहित करने की वृत्ति दीखाया हैं, तब उन्हें तत्क्षण रद्द करने का मनुष्य मात्र की फर्ज हो जाता है । कुदरत का नियम है कि वहने वाला पानी निर्मल यानी स्वच्छ रहता है । छोटे से खड्ड में भरा हुआ पानी झट से सड़ जाता है। वह गन्दा, बदबू मारने वाला और वर्ण्य होता है। जैसे राजनैतिक परिस्थिति के बारे में प्रथम राजसत्ता, पीछे नियंत्रित राजसत्ता और अंत में प्रजासत्ताके परिवर्तन हुए ही करते हैं उसी प्रकार देश की आर्थिक, सामाजिक एवं धार्मिक बाबतों में अनेक परिवर्तन और क्रान्तिएं हुई हैं और होती जाती हैं। इस नियम को लक्ष में रखकर हम को अपने जैनसमाज का विचार करना चहिये । श्री महावीर देव के जीवन काल में अपन करोंड़ों की संख्या में थे । सम्राट अकबर शाह के समय में चालीस लाख संख्या में थे । देश भर में हमारे नकारे बजवा सकते थे । हम अपनी मर्जी माफिक करा सकते थे । अपने में श्रीमद् हीरविजयसूरि और और हरिभद्रसूरि जैसे अनेक प्रतिभाशाली शासनस्तम्भ और बादशाहों को प्रतिबोध कर सकें ऐसे आचार्य एवं मुनिपुंगव गण थे । भामाशाह के जैसे अडग देश भक्त थे; जावड शाह के जैसे तीर्थ के उद्धारक थे; विमलशा, वस्तुपाल, तेजपाल और मुंजाल जैसे महान् मुत्सद्दी थे । अपने तीर्थस्थान जाज्वल्यमान एवं सुरक्षित थे। उस समय अपने में एकता, संगठन, हृदय की निष्कपटता, सच्ची धर्म भावना और समाज के लिये सच्ची सहानुभूति थी। अपन सच्चा स्वामीवात्सल्य करना जानते थे । अाज अपन कैसी परिस्थिति में पड़े हुए हैं ? अनेक फिरके, ज्ञातियें और तडों के कारण अपन आज छिन्न-भिन्न हो रहे हैं । द्रव्यहीन एवं विद्याहीन होते हुए अपन पामर दशा को प्राप्त हो रहे हैं । अपने समाज को प्राणघातक दर्द लागू पड़ा है । अपनी जनसंख्या दिन ब दिन घटती जा रही है। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि अपन मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक अवनति की गहन गों में डूबते जा रहे हैं। इस व्याधि के निदान की आवश्यक्ता है । उसकी तात्कालिक Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिकित्सा कर बड़े से बड़े उपाय काम में लेने की परम आवश्यकता है। धर्म प्रेमी एवं समाज-हित-चिन्तक का यह परम कर्तव्य है । आधुनिक युग यह संक्रान्ति काल है इस लिए यदि इस उपाय को इसी समय में काम में नहीं लिया जायगा तो भविष्य में ऐसा अनुपम अवसर मिलना दुर्लभ है। अत्यन्त खेद की बात है कि अपन अपरिमित निरक्षरता एवं अज्ञानावस्था के कारण संकुचित विचारों की श्रृंखलाओं से जकड़े हुए हैं और सब प्रकार की दीर्घदृष्टि गुमा बैठे हैं। सिर्फ यही नहीं, हम सामाजिक एवं धार्मिक मन्तव्यों का शंभुमेलाही कर रहे हैं । जब २ सामाजिक सुधारणा एवं प्रगति की बातें होती हैं, तब २ धर्म के बहाने से उसके मार्ग में विघ्न उपस्थित किये जाते हैं और उसका विरोध करने में आता है। इन कार्यों से धर्म में हस्तक्षेप होता है' यों कह कर पोकार किये जाते हैं। इसलिये धर्म और समाज के क्षेत्र किस जगह अलग पड़ते हैं, उसके ज्ञान का प्रचार करने की बड़ी भारी आवश्यक्ता है। __ हमारे पोरवाड़-समाज में जो २ कुरूढियें फैली हुई हैं और जो समाज के अन्तस्तल को काट रही हैं, उनमें बालविवाह की प्रथा मुख्य है। प्राचीन भारत में ब्रह्मचर्य का पूरा पालन किये जाने के बाद ही गृहस्थाश्रम का स्वीकार किया जाता था । पुरातन युग में धी ( बुद्धि या शिक्षा ), श्री ( लक्ष्मी ) और स्त्री (विवाह ) का जो उत्तम क्रम बंधा हुआ था, वह आज बिल्कुल उल्टे रूप में ही प्रतीत होता है । बालविवाह की प्रथा मुसलमानों के शासन काल से ही प्रचलित हुई है । आज उस काल की सी देश की परिस्थिति नहीं है । आधुनिक युग शान्ति का युग है इसलिए अब उस प्रथा को सर्वथा मिटा देना ही आवश्यक है । भावि प्रजा के सत्त्व का शोषण करने वाली उस कुप्रथा को कानून का स्वरूप दिलाने के लिये श्रीमान् हरबिलास शारदा को धन्यवाद देना चाहिये । और हम दृढ़ भासा रखते हैं कि श्रीमंत महाराजा गायकवाड़ की तरह भारत की अन्य तमाम देशी रियासतों में बालविवाह निषेधक कानून जारी किया जायगा । हमारे समाज की दूसरी कुप्रथा वृद्ध विवाह की है। हमारे धर्म एवं नीति के सिद्धान्त पश्चिम से बिल्कुल ही भिन्न प्रकार के हैं । अमुक अवस्था के बाद समाज के व्यक्ति, पारमार्थिक जीवन बिताने के लिए तत्पर हों और देश, धर्म एवं समाज के लिये अपने सर्वस्व का बलिदान दें, यह अतीव आवश्यक है । इससे ऐसी अवस्था मुकर्रर होनी चाहिये जब कि विवाह करने का विचार भी लज्जा-जनक एवं अधर्म माना जाय । कन्याविक्रय की राक्षसी प्रथा अब समय के प्रवाह के साथ सर्वथा बंद होनी चाहिये । उसी प्रकार उसका वर विक्रय के सुधरे हुए रूप में परिवर्तन न हो, इस बात का भी खयाल रखने की पूरी आवश्यक्ता है। विवाह के अवसर पर,हमारे धनवान सज्जन, फिजूल खर्ची कर अपने वैभव, महत्ता एवं प्रतिष्ठा का प्रदर्शन कर दिखाते हैं। समाज के मध्यम और गरीब वर्ग को भो, झूठी प्रतिष्ठा Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८ ) के मोह में पड़ कर, उनके पीछे २ बर्बाद होना पड़ता है। बरसों तक बड़े परिश्रम से उपार्जित किये हुए द्रव्य की, खोटी वाह वाही के लिये, बर्बादी की जाती है । धनवानों को चाहिये कि जन-समाज के हित के खातिर वे अपने कार्य सादगी के साथ करें; आडम्बर को बन्द कर देवें । उन्हें अपनी लक्ष्मी का व्यय सत्कार्यों में करना चाहिये । मृत देह के पीछे रोने-पीटने एवं मिष्टान्न भोजन करने की प्रथा भी उतनी ही अनिष्ट है । ऐसी सव कुरूढियों के मिटाने के लिये हमको शक्ति-भर प्रयास करने की आवश्यकता है। - ये तमाम कुप्रथाएँ जैन सिद्धान्त से बिलकुल विपरीत हैं। लेकिन खेद के साथ कहना पड़ता है कि, इस विषय पर अनेक बार विवेचन हो चुकने पर भी हमारे समाज में अनेक जगह वे मौजूद हैं । समाज इन कुरूढियों से मुक्त नहीं होने की वजह से वह सभ्य संसार में सर्वत्र हास्यास्पद बन रहा है । जिसके घर में किसी की मृत्यु हो या किसी संबंधी का चिरवियोग हो, उसके यहाँ जाकर संवेदना प्रकट करना और उसको सर्व प्रकार से सहायता पहुँचाना यह तो सगे संबंधियों का कर्तब्य है; परन्तु शोकातुर परिवार में जाकर मिष्टान्नादिक बनवा कर और उनके पाससे जाति भोज वगेरा कग कर मौज उड़ानी यह तो मानवता नही है बल्कि केवल राक्षसीवृत्ति ही है । ऐसी रूढ़ि किसी सभ्य समाज में देखने में नहीं आती। यहाँ विचार करने की आवश्यकता है कि एक तो घर में पति,पिता या पुत्र के अकाल मृत्यु से घर के लोग शोकसागर में डूबे हों और उसपर उनके मस्तक पर जातिवालों को मिष्टान्न भोजन जिमाने का बड़ा भारी बोझ आपड़े, तब उनकी क्या हालत हों ? जब किसी निर्धन परिवार में मृत्यु होती है तब तो उनके अपार शोक की सीमा ही नहीं रहती। ___ मैं पहले कह ही चुका हूँ कि हमारा समाज संख्या बल में हीन होने उपरान्त अनेक तड़ों या विभागों से छिन्नभिन्न हो रहा है। कुछ छोटी ज्ञातियों की व्यक्तियें तो अतिशय अल्पसंख्या में ही विद्यमान हैं। जो जैन धर्म जाति-भेद को पहचानता भी नहीं हैं, उसी धर्म के अनुयायियों को अतिशय उग्र एवं गुलामी जाति बन्धनों से जकड़ा हुआ देखकर किस सहृदय आत्मा को दुःख एवं कम्प न होगा ? इस संबंध में हमारे समाज में कितनी निर्बलता फैली हुई है उसके प्रति मैं आपका लक्ष खींचना चाहता हूँ । संभव है, कुछ लोग मेरे विचारों से सहमत न हों। किन्तु इस प्रकार के सभा-सम्मेलनों का उद्देश्य यह होता है कि विचार विनियम के द्वारा मत-भेदों को दूर कर सर्व सामान्य प्रणालिकाएँ कायम कर उसके द्वारा समाज का हित-साधन करना। अब मैं ऐसे विषय की चर्चा करना चाहता हूँ जिसकी समाज में अतीव आवश्यकता है । आज जैन-धर्म के अनुयायियों में महान् अन्तर पड़ गया है । बेटी-व्यवहार तो न सही लेकिन एक दूसरे के साथ बैठकर प्रेम से भोजन करने में भी हीनता मानी जाती है। इसका कारण धार्मिक एवं सामाजिक विचारों का अद्भुत मिश्रण ही है। जिन Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९) भगवान के सर्व पुत्र परस्पर प्रेम पूर्वक रोटी एवं बेटी व्यवहार में विशेष और विशेष । निकट संबंध में आवे यह बहुत वांच्छनोय है । सामाजिक जीवन का सबसे ज्यादा संबंध रोटी-व्यवहार एवं बेटी-व्यवहार से होता है। प्राचीन काल से पोरवाड़ों का रोटीव्यवहार बारह ज्ञातियों के साथ था जो आज पर्यन्त मौजूद है । परन्तु बेटी-व्यवहार यहाँ के वीशा पोरवाड़ों के साथ ही है । दूसरी जाति के पोरवाड़ों में उसी जाति के पोरवाड़ों के साथ ही संबंध है । जब कि सब की उत्पत्ति एक ही है । वीशा पोरवाड़ पद्मावती पोरवाड़, नेता पोरवाड़, अठावीसा पोरवाड़, दशा पोरवाड़, कपोल पोरवाड़,,जाँगड़ और गाँगरेड पोरवाड़ इन सब में समान गुणधर्म है । लेकिन किसी कारण से अलग २ प्रान्तों में जाकर रहने की वजह से किसी स्थान में रोटी-बेटी व्यवहार है और किसी स्थान में नहीं है। __ यह युग क्रान्ति युग है । हरेक समाज प्रगति की ओर अग्रसर हो रहा है। इस प्रवाह का हमको पूरा २ लाभ उठाना चाहिये और वह यह है कि जो व्यक्तियें समान गुणधर्म रखती हों, उनके साथ रोटी एवं बेटी व्यवहार जारी करना चाहिये । यह बात स्वयं बड़ी उत्तम है । इसके साथ जैन-शास्त्र सर्वथा संमत एवं अनुकूल है। अमुक समय में किसी कारणवशात् वैमनस्य उत्पन्न होने से अथवा दूर देश में निवास करने से बेटीव्यवहार बंद हो गया होगा, लेकिन अब उन कारणों का अस्तित्व नहीं रहा होने से उनके साथ सब प्रकार का संबंध एवं व्यवहार पुनः शुरू करना चाहिये । विवाह-क्षेत्र को विस्तृत बनाने से संतान नीरोगी एवं शक्तिवान् होंगे और इसके विशाल हो जाने से कुटुम्बियों का आपसका वैमनस्य भी घट जायगा। ऐसा प्रस्ताव 'अखिल भारत वर्षीय ओसवाल सम्नेलन' (अजमेर) एवं 'दिगंबर जैन परिषद' ने किये हैं जो प्रशंसनीय हैं। हाल ही में ओसवालों ने, जिनके साथ अपना कभी संबंध नहीं था ऐसे श्रीमालियों के २५०० घर भरतपुर वगैरा में अपने में मिला लिये हैं। पंजाव में भी, करीब दो वर्ष से, ओसवालों का संबंध, सारी जाति की मंजूरी से, खंडेलवाल ज्ञाति के साथ शुरू हो गया है । आधुनिक समय में, हमारे में, कुछ सामाजिक प्रथाएँ ऐसी चल रही हैं जिनके कारण हमारे निधन भाइयों को अधिकतर कष्ट सहन करना पड़ता है। विवाह के संबंध में हमारा प्रधान कर्त्तव्य यह होना चाहिये कि हम सामाजिक नियम बनाकर फिजूल खर्ची को बंद करें जिससे सामाजिक प्रतिष्ठा की चेदो पर हमारे निरक्षर एवं निर्धन भाइयों का बलिदान न होने पाये । सब ज्ञाति भाइयों की संमति से विवाह-संबंधी नियम ऐसे बना लिये जाँय, जिनको सर्वा स्थल में सरलता से कार्यरूप में परिणत करने में सुभीता हो । . अस्पृष्यों की अवगणना और उनके प्रति किया जानेवाला अधर्म आचरण भी एक महान् सामाजिक कलंक है। किस जमाने में और किस प्रकार यह अनिष्ट रूढ़ि समाज में दाखिल हुई, इसके प्रमाण देना निरर्थक है। हिन्दू एवं अन्य शास्त्रों में से Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) क्षेपक श्लोक चुन २ कर इस रूढ़ि के समर्थन या विरोध के लिये आपके सामने रखना अनावश्यक है। ऐसे प्रश्नों का निराकरण सामान्य बुद्धि से करना उचित है। 'आत्मवत् सर्व भूतेए' यह सब धर्मों का मुख्य सिद्धान्त है। जैनशास्त्र 'मिति में सव्व भूयेषु' के सिद्धान्त के परिपालन की आज्ञा देता है । बल्कि सर्ग प्राणियों के प्रति बन्धुत्व दर्शाने का आदेश करता है । उसी प्रकार के मूल नीच वर्णों के जैन मुनियों के दृष्टान्त देकर अछूतों को अपनाने की आज्ञा करता है। क्योंकि जैनों में जाति यानी जाति-भेद नहीं है । जैनधर्म समानता का उपदेश करता है । सामाजिक एवं धार्मिक उपरान्त, राजनैतिक दृष्टि से भी, विचार करते हुये उनका उद्धार करने की आधुनिक युग में परम आवश्यकता है। भारत वर्ष में छह करोड़ अछूत हैं और उनको पर-धर्म में जाते हुये रोकने के लिये स्वधर्म में मिलाने की खास जरूरत है। सच्चा अछूत वही है जो मनसे मैला यानी कपटी है, दूषित है और कर्म से भ्रष्ट है। मन, वचन एवं शरीर की पवित्रता रखने वाला किसी भी 'लेबिल' ( Lebel ) वाला मनुष्य परमात्मा के दरबार में, नीडरता एवं निखालसता से प्रवेश कर सकता है । इस दृष्टि से कोई भी कहलाने वाली अस्पृश्य जाति जैनों के आचारविचार ग्रहण करके जैन-सम्प्रदाय में दाखिल हों, तो उन्हें मंदिर-प्रवेश का भी अधिकार मिल जाय यह किसी प्रकार अनिष्ट नहीं है । - हाल में, कुछ अर्से से, तीर्थों के झगड़े ने हमारे समाज में भयङ्कर स्वरूप धारण किया है । श्वेताम्बरों और दिगम्बरों के बीच गैमनस्य उत्पन्न हो, वैर कलह हो, कलेशानि से राज दरबार का आश्रय लिया जाय और उसके पीछे लाखों रुपये बर्बाद करने पड़े, यह बात किसी भी पक्ष के लिये हरगिज शोभास्पद नहीं है। इस प्रकार के आन्तरिक मत भेदों को, दोनों पक्षों के समझदार पंचों ने एकत्र मिला कर शान्ति से निबटारा करना चाहिये और धर्म को जाहिर में बदनामी से बचा लेना चाहिये। जैन धर्म का स्याद्वाद का सिद्धान्त सब धर्मों में उत्तम प्रकार का माना जाता है। उसका साहित्य उच्च कोटिका है और हरेक क्षेत्र में अच्छी तरह प्रगति पाया हुआ है। तथापि आज अर्धदग्ध परधर्मी उसके तत्त्व को बिना समझे अपूर्ण अनुभव से जैन साहित्य को जनता के समक्ष विकृत स्वरूप में उपस्थित करते हैं। इस प्रकार वे जैन धर्म के अद्वितीय, अमूल्य एवं अनुपम सिद्धान्तों की हँसी उड़ाते हैं । इसका प्रतीकार करने की सत्वर आवश्यकता है बल्कि रचनात्मक दृष्टि से, जैनेतरों के सामने धर्म और समाज को उनके सच्चे स्वरूप में समझाने के लिये सरल भाषा में पुस्तकें प्रकट करने की खास जरूरत है। इन सब बातों का खयाल करने से हमारे सर्व-स्वधर्मी बन्धुओं की मानसिक परिस्थिति किस प्रकार की है,इसका चित्र दृष्टि के समक्ष खड़ा होता है । मुख्यतः दीक्षा प्रकरण की गैर समझ के परिणाम स्वरूप हमारे स्वजाति बन्धु दो विभागों में बँट जायँ, यह Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) अत्यन्त दुर्भाग्य की बात है । ऐसी बातों में ममत्व या दुराग्रह को स्थान हरगिज नहीं देना चाहिये । यह हमारा गुप्त प्रश्न है और उसका निपटारा आपस में ही होना चाहिये । शुद्ध हृदय से और पारमार्थिक दृष्टि से एकत्र हो, उसको हल करना चाहिये । जिससे भागवती दीक्षा को जगत् के समक्ष उज्ज्वल स्वरूप में दिखाने में विलम्ब न हो। ऐसो २ अनेक सामाजिक एवं धार्मिक विडम्बनाएं सत्वर नायूद हों और भविष्य में उनका पुनर्जन्म न होने पाय, इस दृष्टि से सुधारणा के संबंध में सर्व धर्म-प्रेमी और समाज-हितचिन्तकों को खयाल करना चाहिये । हमारे समाज को जो प्राणघातक व्याधि लागू हुए हैं उनको नाबूद करने के लिये एकता एवं शिक्षा की खास आवश्यकता है। आधुनिक समय में, समाज के भिन्न २ अंगों में, जिस प्रकार की ईर्षाग्नि, वैमनस्य एवं क्लेश का दावानल सुलग रहा है, उसको बुझाने के लिये संगठन और एकता के सिवा दूसरा कोई राजमार्ग नहीं है । और वह मार्ग सच्ची शिक्षा के द्वारा ही प्राप्त हो सकेगा। 'ज्ञान क्रियाभ्यां मोक्षः' 'ज्ञान विहीनः पशुः', 'नहिं ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते' ऐसे २ अनेक सूत्रों से हम को क्या उपदेश मिलता है ? श्रीमहावीर ने बताये हुये ज्ञानमार्ग और उसकी महत्ता की अवगणना करने से हमारे में जिस प्रकार की अधोगति और जड़ता ने जड़ जमा ली है, उसको उखाड़ने के लिए और ज्ञान की उसके असल स्थान पर प्रतिष्ठा करने के लिये भगीरथ परिश्रम की आवश्यकता है हमारा समाज शिक्षा में कितना आगे बढ़ा हुआ है, कितने विद्यार्थी गण प्राथमिक, माध्यमिक शालाएँ एवं कालिजों में शिक्षा पा रहे हैं, उनके आँकड़े मैं आपके सामने नहीं रखना चाहता; क्योंकि यह बात आपको भली प्रकार विदित है। विद्या के अभाव से हमारा विकास किस प्रकार अटक रहा है, हम कितनी शोचनीय अवदशा की ओर घसीटे जा रहे हैं और उसके परिणाम स्वरूप समाज को कैसी दुःखद परिस्थिति उपस्थित हुई है, उसकी आपको याद दिला रहा हूँ। भारत आज अकेला नहीं है । उसको दुनिया की अन्य प्रजाओं के साथ खड़ा रहना है । उसे अपना प्राचीन गौरव मय स्थान पुनः प्राप्त करना है उद्योग धंदे के विकास के लिये सुधरे हुए देशों के साथ उसको संबंध रखना है । उनके ऊपर अपना प्रभाव कायम करना है उसके लिये और उन २ देशों में धर्म के प्रचार के लिये शिक्षा की बड़ी भारी आवश्यकता है । आधुनिक शिक्षण-पद्धति दोषपूर्ण है यह सब कोई कबूल करेंगे, उसमें सुधार की बड़ी आवश्यकता है। इतना होते हुए भी शिक्षा स्वयं आवश्यक एवं उपयोगी है इसमें किसी भी व्यक्ति के लिये शंका का स्थान नहीं है । शिक्षा दो प्रकार की होनी चाहिये। व्यावहारिक और धार्मिक ।व्यावहारिक शिक्षा में शारीरिक एवं मानसिक विकास का समावेश होता है । आजकल के जैन बालकों के फीके, निस्तेज चेहरे और कमजोर शरीर देखकर हमको लज्जा का अनुभव होना चाहिये । 'नायमात्मा बलहीनेन लभ्यः” और “शरीरमाां खलु धर्मसाधनम्" इत्यादि सूत्र हमको उपदेश देते हैं कि Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) निर्जल शरीर वालों के लिये इस लोक में या परलोक में उच्च स्थान नहीं हैं। शरीर के आरोग्य के लिये, दीर्घ आयुष्य के लिये, आत्म रक्षण के लिये और वीर्यवान जैन प्रजा बनाने के लिये शारीरिक विकास की परम आवश्यकता है और इस हेतु के लिये स्थान २ पर व्यायामशालाओं की स्थापना की परम आवश्यकता है। मानसिक शिक्षा ऐसी होनी चाहिये जिससे बुद्धि का विकास हो, मन उदार हो और सार्गजिक ज्ञान का संचार हो जिससे हम देश और समाज की शुद्ध सेवा करने योग्य बनें। आजकल जिस ढंग से धार्मिक शिक्षा दी जाती और पाठशालाएँ चलाई जाती हैं, वह बिलकुल वाञ्छनीय नहीं है। केवल धार्मिक सूत्रों का रटन हमारे बालकों को धर्म के गहन तत्त्व या रहस्य का ज्ञान नहीं दे सकेंगे । सूत्रों के अभ्यास उपरान्त जैनों के सर्व अंगों का प्राचीन एवं अर्वाचीन इतिहास और क्रियाकाण्ड के रहस्य का सम्पूर्ण और रसमय ज्ञान अपने बालकों को देने की आवश्यकता है। शिक्षक गण केवल कल्दार के उपासक नहीं परन्तु ज्ञानवान एवं उदार दृष्टि वाले योजना चाहिये की जिससे धार्मिक शिक्षा का आदर्श फलीभूत हो और अपने आज के बालक भविष्य के सच्चे जैनी बनें । समय और परिस्थिति प्रतिकूल होने पर भी जैन दानवीर हैं; वे सखावतें कर सकते हैं । परंतु खेद की बात है कि हमारे में, सर्जकत्व के अभाव में, सच्ची दिशाओं में धन का व्यय नहीं होगहा है। सच्चे नेतृत्व की कमी के कारण हम हमारे दान के प्रवाह को नहीं बदल सकते हैं । इससे बनारस हिन्दू युनिवर्सिटी जैसा विश्वविद्यालय स्थापित करने की साधन संपन्नता हमारे में होते हुए भी हम नहीं जैन यूनिवर्सिटी स्थापित कर सकते हैं न कालिजें । कहीं २ जैन हाईस्कूलें देखने से आती हैं लेकिन वे नाम मात्र की ही हैं। वहाँ सच्चे जैन नागरिक बनाने की शिक्षा दी ही नहीं जाती अपन आशा करते हैं कि निकट भविष्य में अपने जैन नाम को सार्थक करनेवाली हाईस्कूलें एवं कालिजें कायम हों। . जैन बालकों को आवश्यक शिक्षा प्रदान को जाय । इस संबंध में पारसी जाति एवं आर्य समाज द्वारा देश भर में स्थापित की हुई संस्थाएँ कैसा सुंदर और ठोस कार्य कर रहीं हैं उसका अनुकरण करने की मैं आपसे सूचना करता हूँ। जैन बालकें आज ज्ञान के लिये तरसते हैं; ज्ञान प्राप्ति के साधनों के अभाव में उनके जीवन का मूल्य फूटी कौड़ी के जैसा हो रहा है; उनको घर २ टुकड़े माँगने की; आजीविकाके लिए कनिष्ट नौकरियें करने की और अधम प्रकार के जीवन को व्यतीत करने की विवशता होती है । इतने पर भी, यह करुण दृश्य अपने नेत्रों से देखते हुए भी, जाति के नेतागण अपनी प्रमाद निद्रा का परित्याग नहीं करते । आज हमारे समाज में आदर्श छात्रालयों की बड़ी आवश्यकता है । जहाँ उन्हें शिक्षा के सर्व साधन सरलता से उपलब्ध हों; जहाँ उनपर, वचपन से ही, अच्छे संस्कार पड़ें और भविष्य में, वे, अपना जीवनमार्ग निडरता सरलता एवं बुद्धिमत्ता से काट सकें। ऐसे छात्रालय हर Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) प्रान्त में स्थापित करने की आवश्यकता है। .. आज पश्चिम के देश, विज्ञान की खोज एवं उसकी प्राप्ति में बड़ी प्रगति कर रहे हैं। यदि अपने देश और समाज को प्रगतिमान बनाना हो तो, अपने युवकों को छात्रवृत्तिये ( Scholarships ) देकर परदेश में भेजने की आवश्यकता है । समाज, देश और धर्म का, विविध दृष्टि से, अभ्यास करने के लिये, इतर समाज और देशों या राष्ट्रों का सर्व देशीय एवं तुलनात्मक अनुभव प्राप्त करने के लिये अच्छे २ पुस्तकालयों की कम आवश्यकता नहीं है । इस संबंध में भी समाज को अपना लक्ष्य दौड़ाना आवश्यक है। ___ आधुनिक काल में देश का व्यापार उद्योग नष्ट हो गया है; देश की उत्पादिका शक्ति कम या बंद होती जा रही है। हमारी शराफी सड़ती जा रही है; अॉट टूटती जा रही है। सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि मध्यम वर्ग को जीवन निर्वाह की भी मुसीबत मालूम हो रही है। ऐसे बारीक समय में, जैन युवकों को, हुनर उद्योग एवं कला कौशल की शिक्षा देने की अनिवार्य आवश्यकता है । जिससे भविष्य में, वे बेकारी से अपना पिंड छुड़ा कर, अपने पैरों पर खड़े हो सकें । इस. दशा में भी विचार करने का समय, समाज के हितचिन्तकों के लिये, निकट आ चुका है। .. उपर के विषय में जितना ही महत्त्व पूर्ण विषय कन्याओं की शिक्षा का है । एक सुशिक्षित माता सौ शिक्षकों की बराबरी कर सकती है । जिसके हाथ में. हिंडोले की डोर है, वही इस संसार पर शासन करती है । भावी प्रजा के ऊपर अच्छे संस्कार डालने हों, और आदर्श गृह जीवन उपरान्त देश धर्म और समाज की-सच्ची उन्नति के दर्शन की आकांक्षा हो, तो समाज के हृदय के दूसरे फेफड़े को, एक के जितना ही प्राणवाय की आवश्यकता है। इससे स्थान २ पर लियोपयोगी संस्थाएँ खोलने की आवश्यकता है। बालकों एवं बालिकाओं की योग्यता का आधार मुख्यतः माता के ऊपर निर्भर होता है । जो शिक्षा बचपन में माता के द्वारा प्राप्त हो सकती है, वह बड़ी उमर में, अनेक वर्षों तक, परिश्रम करने पर भी नहीं प्राप्त होती । इससे बालकों की शिक्षा से भी, बालिकाओं की शिक्षा विशेष महत्व का कार्य है, ऐसा कहने में किसी प्रकार की अतिशयोक्ति होने का संभव नहीं है । कन्याओं की उच्च शिक्षा के लिये हमको जालन्धर महाविद्यालय के जैसी आदर्श संस्था के स्थापित करने की परम आवश्यकता है। .... जैन समाज में विधवाओं की स्थिति भी कम दयाजनक एवं शोचनीय नहीं है । उन की संख्या, समाज की कुल व्यक्तियों की संख्या से, चौथाई हिस्से की है। उसमें भी बाल विधवाएँ एवं युवती विधवाएँ जो कष्टमय जीवन व्यतीत .. करती हैं, वह घटना हमारे समाज के लिये बेशक लज्जाजनक है। ऐसी विधवाओं के . प्रलोभन एवं अपहरण के किस्से सुनकर हमको कम्प का अनुभव होता है । उनको विप Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४ ) रीत या अष्टमार्ग की ओर जाती हुई रोकने के लिये विधवाश्रम जैसी संस्थाएँ स्थापित करना बहुत जरूरी है। ऐसे आश्रमों में रह कर वे सुंदर नीतिमय जीवन व्यतीत कर सकें; स्त्रियोपयोगी विषयों में पारंगत हो कर स्वतंत्रता से आजीविका प्राप्त करने की शक्ति ग्रहण करें और समाज की अन्य बहनों की आत्मोन्नति के लिये वे काम पड़ने पर प्राणार्पण कर सकें यह बात निर्विवाद है । पर्दे का रिवाज भी, वर्तमान समय में, अनावश्यक है । वह स्त्रियों की शारीरिक एवं मानसिक प्रगति का अवरोध करने वाला होने से तात्कालिक बंद करने योग्य है । हमारे पूर्वजों के समय में, मुस्लिम शासकों के अत्याचारों के सबब से, उत्तर भारत में 'वह दाखिल हुआ था और इस समय वह अनावश्यक होने से उसका निभाना बुद्धिमत्ता नहीं है । पश्चिम के सुधरे हुए देशों में एवं दक्षिण भारत में यह रिवाज बिल्कुल ही देखने में नहीं आता । इससे मालूम होता है कि समाज के हित के लिये इस प्रथा की बिल्कुल ही आवश्यकता नहीं है। इसके उपरान्त स्त्री समाज बहुत से कपड़े एवं आभूषण पहनने की विचित्र और निन्दनीय प्रथा चल पड़ी है । उसके प्रति लक्ष्य दौड़ाने की भी आवश्यकता है । शरीर की लज्जा का रक्षण के लिये एवं सर्दी व गर्मी से बचने के लिये कपड़ों की आव'श्यकता है । उसके बदले देखा देखी से या गतानुगतिकता से पुरानी कुरूढ़ियों का पालन करना इसमें विचार शक्ति की कमी मालूम होती है । शरीर के उपर जेवरों का बोझ लादने में भी हमारी स्त्रियें अपना गौरव मानती हैं । परंतु उससे शरीर की सफाई नहीं की जा सकती न बराबर हलनचलन ही हो सकता है । उपरान्त प्रवास और यात्रा के अवसरों पर चोर डाकूओं का भी भय बना रहता है । 1 देश की वर्तमान परतन्त्र एवं निर्धन स्थिति का खयाल करने पर मालूम होता है कि पुरुषवर्ग, और विशेषतः स्त्री वर्ग को अब बारीक विदेशी वस्त्रों का मोह छोड़कर उन्हें अपने देश में ही बने हुए वस्त्र परिधान करने चाहिये । इसी में हमारी महत्ता है, देश का गौरव है और समाज की स्वस्थता है । अधिक चूडियों का पहनना यानी चूड़े से तमाम हाथ भर देना यह भी 1. स्त्रियों की स्वतन्त्रता के लिये बाधा करने वाला है इससे स्त्रियों के स्वास्थ्य के ऊपर खराब असर होता है । ऐसा बन्धन उनके ऊपर भार रूप है । इससे उनको अनेक प्रकार की हानियां उठानी पड़ती हैं। इस कार्य के लिये प्रतिवर्ष ६००००) हजार हाथियों का वध होता है । यह बात जैन शास्त्र से सर्गया विपरीत है। इससे हरेक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह इस हिंसक प्रवृत्ति को बन्द करे । रेशम का उपयोग भी हमारे समाज में विशेष रूप से होता है। एक गज रेशन के बनाने में हजारों कीड़ों का नाश होता है । उनको गर्म पानी की कढाइयों में डाले Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५) जाते हैं जिससे वे मर जाते हैं और रेशम का भाग, तार के रूप में, पानी के उपर, तैर आता है । यहां तक मालूम हुआ है कि केवल १ गज रेशम तैयार करने के लिये ४००००) हजार कीड़ों की हिंसा की जाती है । इससे रेशम के वस्त्रों का उपयोग, धार्मिक एवं आर्थिक दृष्टि से, त्याज्य होना चाहिये । ___ हमारा समाज अवनति के कैसे मार्ग की ओर अग्रसर हो रहा है और उसके लिये किन २ बातों की आवश्यकता है, इस बात का दिग्दर्शन मैंने यथाशक्ति आपको कराया है । इस अधः पतन का मुख्य कारण, मेरी अल्पमति के अनुसार, हमारे में सच्चे स्वामीवात्सल्य का लोप होना ही है । इसी एक महान् सद्गुण ( स्वामी वात्सल्य ) के कारण हमारा समाज एवं हमारी ज्ञाति भूत कालमें संपूर्ण सुखी एवं कीर्तिवान थी। ये विभाग ज्ञातियें नहीं हैं बल्कि तड़ें हैं । दशा वीसा वगेरा को एक दूसरे से हीन मानना यह अज्ञानता या भूल है । हमारे जैसी समझदार ज्ञातिने, क्षुद्र कारणों से पैदा हुए तड़ों को श्राज दिन तक निभाये यह स्वयं एक बड़े आश्चर्य की बात है। बुद्धि वाद के वर्तमान युग में ऐसे भेदों को तोड़ देना, अनिष्ट रूढ़ियों को बंद करना और समस्त ज्ञाति की एकता करना इसी में हमारी बुद्धिमत्ता है । आज जमाना पलटा है। हमारी प्राचीन जहोजलाली नष्ट हुई है। हमारी ज्वलन्त कीर्ति अस्त हुई है; ज्ञान और एकता अदृश्य हुए हैं और जिन महान् गुणों के कारण हमारे पूर्वजों ने सारे संसार में अपनी कीर्ति पैदा की, वे तमाम गुण आज हमको छोड़ गये हैं। उसके बदले हमारी कौम में परस्पर वैमनस्य, पैर, इर्ष्या, मद और कुसंपका साम्राज्य फैल रहा है । संक्षेप में, हमारी पोरवाड ज्ञाति का शारीरिक, मानसिक, आर्थिक एवं आध्यात्मिक ह्रास हो रहा है । इस अधः पात से बचाने के लिये तात्कालिक उपाय करने की आवश्यकता थी। ऐसे बारीक समय में इस सम्मेलन की योजना की गई है, जो बहुत ही प्रशंसनीय है । यहां आप सबको एक बात की याद दिलाना आवश्यक है कि हमारी श्री अखिल भारतवर्षीय जैन श्वेताम्बर कॉन्फरन्स, मेरे वक्तव्य में मैंने निर्दिष्ट किये हुए विषयों को लक्ष्य में रखकर खजाति की उन्नति के लिये कार्य कर रही है। उसकी कार्यकारिणी समिति के अनेक सदस्यगण यहां हमारे मध्य में उपस्थित भी है। हमारी इस केन्द्रस्थ संस्था के ध्येय को हम हार्दिक अनुमोदन देखें; उसके प्रभावशालो अधिवेरानों में समय २ पर प्रस्तावित किये प्रस्तावों को पुष्टि देव और उन्हें, जहां तक हो, हम आचरण में उतारें यह अत्यंत आवश्यक है। .. स्वागतसमिति की ओर से आपकी सेवा में पत्रिकाएँ पहुँची होंगी। उनके पढ़ने से आपको मालूम हुआ होगा कि इन सब महान् उद्देश्यों को फलीभत बनाने के लिये एक समस्त पोरवाड़ महासंस्था के स्थापित करने की अनिवार्य आवश्यकता है। वह संस्था Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६ ) सारे समाज में संगठन की भावना पैदा करेगी और हिन्दुओं के वानप्रस्थ आश्रम की तरह, हमारी जाति के सब सुशिक्षित एवं साधन संपन्न बन्धुओं ने ४० से ५० वर्ष की आयु में, अपने स्वार्थ कार्यों को छोड़ कर और निवृत्ति प्राप्त कर ऐसी महान संस्था के साथ मिल जाना चाहिये । और उसके आश्रय के नीचे चलाने वाली प्रवृत्तियों में हाथ बँटाना चाहिये । अतएव यह आवश्यक है कि ऐसी महान संस्था के आश्रय के नीचे एक पोरवाड़ समाज की डायरेक्टरी तैयार करना और उसमें स्वजाति की उत्पत्ति से लेकर आज दिन तक के प्रमाण बंध सच्चे इतिहास का आलेखन करना उससे समाज की प्राचीन एवं अर्वाचीन स्थिति की सच्ची कल्पना आ सकेगी । उसमें प्रकाशित होने वाले पोरवाड़ ज्ञाति के महान् राजनीतिज्ञों, कर्म वीरों एवं महात्माओं के जीवन चरित्रों पर से आधुनिक प्रजा को बहुत कुछ उपदेश मिलेगा । उसी प्रकार हमारे समाज में प्रचलित कुप्रथाओं के निवारण के लिये, शिक्षा प्रचार के लिए, प्रजा में नवीन उत्साह एवं चेतन फैलाने के लिए, एकता और संगठन साधने के लिये, विदेशों में रहने वाली स्वज्ञाति की व्यक्तियों को संस्था के कार्य से परिचित करने के लिये, और समाज की सब व्यक्तियों में परस्पर सहयोग की भावना फैलाने के लिये उक्त संस्था की ओर से एक प्रभावशाली पत्र निकालने की भी अनिवार्य आवश्यकता है । यहाँ उपस्थित हुए आप सब भाई बहनें, ज्ञात्युन्नति के इस महान कार्य में संपूर्ण सहयोग देते रहेंगे, तो मुझे आशा है कि संस्था को हरेक प्रकार की सहायता मिलती रहेगी । ऊपर कही हुई अनेक बातों का हमको विचार करने की आवश्यकता है । ऐसे सम्मेलन की कई वर्षों से आवश्यकता थी जो श्राज हो सका है यह अतिशय हर्ष की बात है। ऐसे संमेलन प्रति वर्ष होते रहेंगे तो समाज का उत्साह चालू रहेगा और हम सब एकत्र मिलकर जाति, समाज, देश और धर्म के अभ्युदय के विचारों का विनिमय करते रहेंगे और यथासाध्य उन विचारों को कार्य के रूप में परिणत करते रहेंगे ऐसी आशा करना अधिक नहीं होगा । लेकिन इसके कार्य-वाहकों का चुनाव योग्य रीति से होना चाहिये । इन उद्देश्यों को सफल बनाने के लिये समितियों और उपसमितियों का चुनाव आप सावधानी से करेंगे ऐसी आशा है । हमारा उद्देश्य यह नहीं है कि समाज में जो पंचायतें, सभाएं समितियाँ आदि मौजूद हों, उनका विरोध किया जाय या उनको हटा दी जायें। बल्कि हमारा यह लक्ष्य होना चाहिये कि ऐसी चालू समितियों को सम्मेलन द्वारा अधिक पुष्ट एवं उन्नतिशील बनावें; उनकी त्रुटियों को दूर कर अर्थात् उनमें समयानुकूल सुधारणा. कर उनको सतत जागृत रखें और उनके साथ सहयोग करके और अनावश्यक रूढ़ियों नाबूद करके समाज को उन्नत बनावें । को मेरे विचारानुसार हमारे समाज के लिये एक ऐसे फण्ड (चन्दा) की आवश्यकता. श्री. Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७ ) है जो को-आपरेटीव स्कीम यानी सहकारी योजना के सिद्धान्त पर रचा गया हो और जिस फण्ड की मदनियों से अनाथ एवं विधवाओं की रक्षा, विद्यार्थियों को छात्रवृत्तियें, ग्राम्य पाठशालाएँ, पुस्तकालयों और उत्तीर्ण छात्रों को पारितोषिकों की व्यवस्था हो सके । उसको कार्य के रूप में परिणत करने के लिये कार्यकर्ताओं की आवश्यकता है। ऐसे फंड पारसी, यहूदी, हिन्दू आदि जातियों में स्थापित हैं और उनसे उन ज्ञातियों की बड़ी सुंदर सेवा हो रही है । ऐसे फंडों में से उनके ज्ञातिजनों के लिये औषधालय, अनाथालय वगैरह खोले हैं | उनसे अनाथ वर्ग को सहाय, आर्थिक संकोच वाले विद्यार्थियों को विद्याभ्यास का खर्च, तीव्र बुद्धिवाले विद्यार्थियों को प्रोत्साहन मिलता है । इतना ही नहीं बल्कि अनाथ विधवाओं को आश्रय मिलता है और जाति के कई आवश्यक और उपयोगी कार्यों में उस दृव्य का सव्यय होता है । बन्धु और बहनो! हमारे महान संमेलन के उद्देश्यों को लक्ष्य में रखकर मैंने मेरे नम्र विचार आपके समक्ष उपस्थित किये हैं । आप उनपर पूरा लक्ष देंगे और सम्मेलन में ऐसे प्रस्ताव रखेंगे जिनको शीघ्र ही कार्य के रूप में समाज परिणत कर सके और संचालक गण उन कार्यों में सफलता प्राप्त कर सके । एक हाथ से ताली नहीं बजती । आपके हार्दिक सहकार से चाहे जैसा भी कठिन कार्य पार पड़ सकता है । उसमें धैर्य, अध्यवसाय, एकता और बन्धु-भाव की आवश्यकता है । यहाँ एकत्र हुये भाई-बहन चाहें वे साक्षर हों या निरक्षर, युवक हो या वृद्ध, साधन संपन्न हों या साधन रहित, उन तमाम से मेरी नम्रता से विनय है कि ऐसा अमूल्य अवसर फिर बारबार प्राप्त होनेवाला नहीं है । इससे आप पूरा २ लाभ उठावें और शान्ति, प्रेम, एकता और औदार्य से ठोस एवं रचनात्मक कार्य कर दिखावें । अन्त में मैं युवकों से दो शब्द कहना चाहता हूँ । आप जाति और समाज की आशा है, दिव्य भावनाओं की ज्वलन्त मूर्ति हैं, चेतन और प्रगति के आदर्श दृष्टान्त तुल्य हैं | आप समाज को प्रेरण । पहुँचाने वाले और उसको वेगवान बनाने वाले शक्ति स्वरूप हैं | और आपके ऊपर ज्ञानिजनों की समग्र आशा का अवलम्बन हो तो उससे आप न चौंके । वृद्धों का सन्मान कर, उनके परिक्व एवं प्रखर अनुभव से फायदा उठा कर, उनकी आदर्श दृष्टि आपके हृदय में उतार कर जाति सुधारण के महत्त्व पूर्ण कार्य में अग्रसर हों । भूत काल के इतिहास को देख कर, वर्तमान में स्थित रह कर उज्ज्वल भविष्य काल के स्वप्नों को सिद्ध करने के लिए कटिबद्ध हों । अन्य देशों, समाजों और सम्प्रदायों में से ' अच्छा सो मेरा' समझ कर हमारे समाजरूपी दुर्ग में पड़े हुए की मरस्मत कर उसको उन्नन कीर्तिवन्त एवं आदर्श बनाने के लिये आत्म समर्पण कीजिये ; विजय आपकी ही है । परमेश्वर सब को सद् बुद्धि दो और ऐसा सुवर्ण युग सत्वर आओ ! तथास्तु | 1 ॐ शांतिः शांतिः शांतिः । Page #110 --------------------------------------------------------------------------  Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुभ सन्देश ! विशाल प्रायोजन !! पौरवाल जाति का विशाल इतिहास सचित्र मन्दिरावली और डायरेक्टरी भारतवर्ष में पौरवाल जाति बहुत ही गौरवशाली जातियों में से एक है जिसने आज से हनार पांच सौ वर्ष पूर्व अनेक महान् कार्य किये हैं और मुख्यतः मंदिरों के निर्माण करने में जो यश प्राप्त किया है वह निःसंदेह प्रशंसनीय है जिनकी जोड़ के मंदिर इस संसार की सपाटी पर नहीं है । इस जाति ने अपनी अपूर्व वीरता-अलौकिक राजनीतिज्ञता व्यापारिक दूरदर्शिता आदि महान् गुणों से इतिहास के पृष्ठों को उज्जवल किया है। जिन सज्जनों ने राजस्थान के इतिहास के साथ गुजरात के इतिहास को ध्यान पूर्वक मनन किया है, वे मानते है कि इस जाति के महान् पुरुषों ने जहां युद्ध-क्षेत्र में अपनी अपूर्व रण चातुरी का परिचय दिया है, वहां राजनीति के मंच पर भी इन्होंने बड़े बड़े खेल खेले हैं। इसी प्रकार व्यापारिक जगत् में भी इन्होंने अपनी अपूर्व प्रतिभा का परिचय दिया है। एक मुंजाल जो गुजरात का प्रधान मंत्री था जिसकी हुंडी यूनान तक में सिकारी जाती थी। ____ इस जाति में अनेक अलौकिक विभूतियां होगई हैं जिन्होंने भारत के इतिहास को बनाने में बहुत बड़ा हिस्सा लिया है । महामत्री मुंजाल, विमलशा, वस्तुपाल, तेजपाल, पेथड़कुमार, धनाशाह इत्यादि महापुरुषों ने समय-समय पर अपनी रणनीतिज्ञता एवं राजनैतिक और व्यापारिक प्रतिभा का अपूर्व दिग्दर्शन कराया है। पर इस बात का बड़ा खेद है कि इस गौरवशाली जाति का अब तक कोई प्रमाणबद्ध सुसंगठित इतिहास निर्माण नहीं हुआ है। यह कहने की आवश्यक्ता नहीं कि जिस जाति का इतिहास नहीं है वह एक न एक दिन गहरे पर में लीन हो जाती है। उसके सदस्य अपने गत गौरव को भूल जाते है क्योंकि Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिस जाति का भूतकाल उज्जवल नहीं होता, उसका भविष्य कभी भी उज्जवल नहीं होसकता। कुछ युवक इस जाति का सुसंगठित इतिहास तैयार करने के लिये बहुत दिनों से बाट देखते थे। परन्तु इसमें अधिक खचों व कठिनाइयों को देख कर अब तक किसी महाशय ने इसको निर्माण करने का कार्य अपने हाथ में नहीं लिया / सम्मेलन के योग्य कार्यकर्ताओं के उत्साह से और बहुत से उत्माही मित्रों के सहयोग से इस कार्य को पूर्ण करने का काम हाथ में लेते हैं। हर अच्छी तरह से जानते हैं कि इस कार्य को पार लगाने में हिमालय के समान ब। बड़ी कठिनाइएं हमारे मार्ग में आयंगी। पर हम जन्म से ही आशावादी हैं। हमारा यह अटल विश्वास है कि प्रबल इच्छा शक्ति के सामने बड़ी से बड़ी कठिनाइयां दूर होकर कार्य सफल हो जाता है / उपरोक्त तीनों ग्रन्थ बहुत खोज और अन्वेषण के साथ तैयार किये जाएंगे। प्राचीन शिलालेख, ताम्रपत्र, पुराने रेकार्ड्स, संस्कृत, फारसी, उर्द, अंग्रेजी हिन्दी तथजराती भाषाओं में उपलब्ध सैकड़ों नये पुराने ग्रन्थों से इसमें सहायता ली जा रही है / अनेक राज्यों के दफ्तरों से भी इसके लिये सामग्री इकठी की जाने का प्रबन्ध हो रहा है / जहाँ 2 पौरवालों की बस्ती है उन छोटे बड़े सब नगर, शहर और ग्रामों में घूम कर इसको सम्पूर्ण बनाने का प्रयत्न किया जा रहा है। प्राचीन और नवीन अनेक पौरवाल महापुरुषों के इसमें हजारों फोटो संग्रह किये जा रहे हैं। तथा बड़े 2 घरानों का विस्तृत इतिहास सङ्कलन करने का भी इसमें पूरा प्रयत्न किया जा रहा है। उपरोक्त तीनों के सङ्कलन में बड़ी हिम्मत और धन की आवश्यक्ता है। इनके प्रकाशन और सङ्कलन में हजारों बल्कि लाखों रुपयों के व्यय और बहुत बड़े आयोजन की जरूरत होगी / यह कार्य तभी सफल हो सकता है कि जब प्रत्येक पोरवाल बन्धु इस कार्य में तन, मन, धन से सहायता करें। हमे पूर्ण भाशा कि हमारे प्रत्येक पोरवाल बन्धु इस कार्य में हम से सहयोग और सहानुभ प्रदर्शित करेंगे। सम्पादकगणपौरवाल हिस्ट्री पब्लिशिंग हाऊस, सिरोही (राजपूताना