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पोरवाल जाति प्रगति की ओर पंचायतों में पूर्ण मान्दोलन करना चाहिये और जहां तक हो इसको शीघ्रमेव कार्य रूप में परिणित कर देना चाहिये । : प्रस्ताव नं० १०-वैश्यानृत्य, आतिशबाजी और फूलवाड़ी को बंद करने के विषय में है।
प्रस्ताव नं० ११-रेशमी कपड़ा हिंसात्मक होने से बंद किया गया है एक बार रेशम को तैयार करने में ४०००० हजार तक कीड़े मारे जाते हैं। यह हिंसामय प्रवृत्ति है इसलिये अनुरोध है कि समाज का कोई व्यक्ति रेशम को नहीं खरीदे । :: .. प्रस्ताव नं० १२-सम्मेलन के स्थाई फण्ड के विषय में है जो विद्या प्रचार कमिटी की रिपोर्ट आने बाद एकत्रित करने की योजना अमल में आयगी ।
प्रस्ताव नं० १३-प्रबन्धकारिणी समिति नियत करने के विषय में है जो ४१ सदस्यों की होगी जिसके लिये प्रान्तवार पत्र व्यवहार से निश्चय हो रहा है और निश्रय होते ही सदस्यों के नाम इसी पत्र द्वारा प्रकाशित किये जाएंगे।
प्रस्ताव नं० १४-देश की बनी हुई वस्तुओं के उपयोग के विषय में है। इसके लिये हर एक भारतीय का फर्ज है कि अपने देश के व्यापार को तरक्की देने के लिये जहां तक हो सके देश की बनी हुई चीजों का ही उपयोग किया जाय।
प्रस्ताव नं० १५-पौरवाल समाज के इतिहास व डाईरेक्टरी के विषय में है और जिसका लिपिबद्ध होना बहुत जरूरी है । उसको शीघ्रमेव कार्यरूप में रखने की आवश्यक्ता है और इस विषय में बात चीत पर यह मालूम हुआ है कि योजना बहुत शीघ्र अमल में लाने का प्रबन्ध हो रहा है।
प्रस्ताव नं० १६-श्रीमान् सेठ डाहाजी खुमाजी मडवारीया वालों को नातिहित व धार्मिक कार्यों में लक्ष्मी का अच्छा सव्यय करने से 'जाति भूषण' की पदवी देने के विषय में है । पौरवाल समाज ने जो कदर की है वह अक्षर २ करने योग्य है इसके लिये सेठ डाहाजी तो क्या परन्तु समग्र पोरवाल समाज धन्यवाद का पात्र है। . गो एक दफा सम्मेलन का अधिवेशन हो जाने से और प्रस्ताव पास करने से जाति की स्थिति नहीं सुधरने की है परन्तु उस पर अमल करने से ही जाति की उन्नति हो सकेगी।