Book Title: Mahavir 1933 04 to 07 Varsh 01 Ank 01 to 04 Author(s): C P Singhi and Others Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan View full book textPage 1
________________ - श्रीमान् यह अंक श्रापकी सेवा में नमूने के तौर पर मावश्यक भेजा जाता है आपकी बड़ी कृपा होगी यदि श्राप इसका वार्षिक मूल्य रु० १) व पोस्टज के ।) जुमले रु० १।) के टिकट लिफाफे में बंद कर भेज देंगे इस से कार्यालय वी. पी. की माथाकूट से बच जायगा और श्रापका पैसा जो वी. पी. का लगेगा वह खर्च नहीं होगा इस पत्र को इतना सस्ता देने का साहस आप साहिबों के सहारे पर ही किया गया है। इसको चलाने में कोई खर्चा नहीं रक्खा गया है । इसके सब सम्पादक अवैतनिक हैं फिर भी इसका खर्चा साली. याना एक हजार कापी छपवाने व पोस्ट प्रादि करने में करीब रु. १२००) बारह सौ का है । अतएव हरएक पौरवाल बन्धु व बहिन से प्रार्थना है कि थे पत्र के स्वयम् ग्राहक हो जाय और अपने इष्ट मित्रों को इसके ग्राहक बनावें । यह पत्र पौरवाल महा-सम्मेलन का मुखपत्र है और इससे हर पोरवाल भाई के पास पोरवाल जाति सम्बन्धी हिल चाल के समाचार व जाति को योग्य रास्तों पर लाने की योजनाएं निकला करेंगी और साथ ही साथ पोरवाल जाति के भिन्न २ फिरकों में परस्पर रोटी बेटी व्यवहार पुष्ट करने का आन्दोलन जोरों से किया जायगा। ____प्यारे युवको ! पत्र का चिरायु रहना श्राप पर निर्भर है आप जिस ग्राम नगर और शहर में बसते हैं वहां पर जितने ग्राहक प्रयत्न से हो सकें बनाकर भिजवाने की कृपा करावें । इतनी प्रार्थना पर भी आपने रुपया न भेजा और ग्राहक होने जा न होने की इत्तला न भेजी तो आपका मौन स्वीकृति समझ कर पांचवा अंक १० पी० से भेजा जायगा। --- समर्थमल रतनचन्दजी सिंघी' महामंत्रीश्री अखिल भारतवर्षीय पौरवाल महासम्मेलन, सिरोही, (राजपूताना ) .Page Navigation
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