Book Title: Mahavir 1933 04 to 07 Varsh 01 Ank 01 to 04
Author(s): C P Singhi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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.. “महावीर
जिस पूर्व की शुभ लालिमा पर कालिमा थी छागई। . ..
. . . . विषधुल रहा अब फिर उसीपर लालिमासी आगई ॥ केवल कमी है शक्ति की वह ऐक्य से ही आएगी। ,
विषमय फुटेली फट जब जड़से उखाड़ी जाएगी ॥१८॥ इस भव्य भारत की सभी ज्ञाती लगी उत्थान में ।
प्राग्वाट फिर कैसे रहें अपने सुषुप्तिस्थान में ॥ निजदेश के कार्यार्थ मिलकर एक होवेंगे सभी ।
. उन पूर्वजों की कीर्ति में बट्टा न लावेंगे कभी ॥१६॥ भतएव जागो बन्धुभो ! सुनलो समयकी मांगको ।
कर संगठन आगे बढ़ी तज रूढियों के स्वांग को ॥ यह क्षेत्र सन्मुख कार्य का कर्तव्य से पूरा भरा। . . .. करना है सेवा देशकी इसमें नहो त्रुटी जरा ॥२०॥ अबतो प्रभो ! आनंदवर्धक श्रात्मबल को दीजिये ।
निज जाति गौरव स्रोत उरसे शीघ्र प्रसृत कीजिये ।। कर जोड़कर विनयान्विता प्रभु आपसे है प्रार्थना ।
अानंद मंगल देशमें हो है यही अभ्यर्थना ॥२१॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
प्रकाशक का वक्तव्य.. इस 'महावीर' पत्र को निकालने के लिये ड्राफ्ट रिजोल्युशन में जिक्र किया गया था और उसी अनुसार पोरवाल समाज से प्रार्थना नामक ट्रेक्ट भी श्री अखिल भारतवर्षीय पोरवाल महासम्मेलन के प्रथम अधिवेशन की अखीर ता० १३ को बांटे गये थे। परन्तु उस रोज अधिक वर्षा होने से इस विषय में अधिक प्रगति न कर सके और न उस समय इसके ग्राहक बना सके ।
महा सम्मेलन के छठे प्रस्ताव के अनुसार इसके उद्देशों का प्रचार करने के लिये पोरवाल समाज से प्रार्थना नामक निबन्ध में विस्तार से उल्लेख कर दिया
नोट-उपरोक गायन ठाकुर बमणसिंहजी देवास निवासी ने प्रथम अधिवेशन के समय पर भी:बामणवादजी में पड़ा था।