Book Title: Mahavir 1933 04 to 07 Varsh 01 Ank 01 to 04
Author(s): C P Singhi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan

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Page 25
________________ ‘श्री पोरवाल सम्मेलन १६ हास के पृष्ठों पर रह गया है, उसे यह पुनः प्राप्त करके दूसरी समाजों के लिए आदर्श बन जायगी। इसके पश्चात् शांतमूर्ति योगिराज श्री शांतिविजयजी महाराज ने प्लेटफार्म पर आकर अपना असरकारक उपदेश दिया । आपके प्लेटफार्म पर आने के पहिले पण्डाल में बहुत गुल्ल मच रहा था किन्तु प्लेटफार्म पर श्री शांतिविजयजी महाराज को खड़े देखते ही सारे पंडाल में शान्ति छा गई । योगिराज के भाषण का सार "परमात्मा रूपी आत्म बंधुओ ! मुझे यह देख कर बहुत आनंद है कि विघ्न संतोषियों ने इतना विघ्न किया किन्तु उस बात की परवाह किये बिना पाप महानुभावों ने शान्ति पूर्वक कार्य किया है। कतरनी कपड़ा काटने का काम करती है और सुई कपड़ा सीने का काम करती है । कतरनी को दर्जी पैरों तले पटक लेता है और सुई को अपने सिर की टोपी में स्थान देता है। मैं किसी पक्ष को मानता नहीं हूँ। लोग मुझ पर आक्षेप करें तो मैं कहता हूं कि मैं तो सत्य का पुजारी हूँ। मैं यह जानता हूँ कि मुझे नहीं कहना चाहिए । कानून यह कहता है । परंतु आप समझियेगा कि मैं मापका साथी हूँ। नहीं मैं तो विश्व का साथी हूँ। मैं तो कहता हूँ कि लड़ना छोड़ो, विश्व प्रेम सीखो। जहां प्रेम है वहां परमात्मा है। मैं जो कुछ कह रहा हूं वह आपको उपदेश रूप नहीं। मैं तो आप सबको भव्यात्मा समझ कर कुछ निवेदन कर रहा हूँ कैसे—उसी प्रकार जैसे विद्यार्थी मास्टर को भूल दिखाने के लिये अपनी पट्टी दिखाता है । आत्मा अजब है । अजब हो वह अजब को जाने । भाई दूसरे को नीच मत समझो। अपने आप में जब अपवित्रता आती है तब दूसरे को अपवित्र समझा जाता है। किसी को नीच कहना हो तो पहिले अपने मुख के अन्दर ही जबान पर नीच शब्द आता है तब उच्चारण होकर दूसरे तक पहुंचता है। मुझ को यह अनुमान होता है कि आप सब पोरवाल सम्मेलन की रूप रेखा जानते हो, क्या करना है वह बहुत अंशों में पहिचानते हो । इस लिये मुझे इस विषय में अधिक कहना नहीं है केवल यही कि यह सम्मेलन नहीं, दरवीन है । पौरवाल कितने और कहाँ कहाँ है सबको खोज खोज कर भाई की वरह उदय से लगाओ। 'जब मिटेगी खामी तब मिलेगा अन्तर्यानी

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