Book Title: Mahavir 1933 04 to 07 Varsh 01 Ank 01 to 04
Author(s): C P Singhi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan

View full book text
Previous | Next

Page 107
________________ ( १५) जाते हैं जिससे वे मर जाते हैं और रेशम का भाग, तार के रूप में, पानी के उपर, तैर आता है । यहां तक मालूम हुआ है कि केवल १ गज रेशम तैयार करने के लिये ४००००) हजार कीड़ों की हिंसा की जाती है । इससे रेशम के वस्त्रों का उपयोग, धार्मिक एवं आर्थिक दृष्टि से, त्याज्य होना चाहिये । ___ हमारा समाज अवनति के कैसे मार्ग की ओर अग्रसर हो रहा है और उसके लिये किन २ बातों की आवश्यकता है, इस बात का दिग्दर्शन मैंने यथाशक्ति आपको कराया है । इस अधः पतन का मुख्य कारण, मेरी अल्पमति के अनुसार, हमारे में सच्चे स्वामीवात्सल्य का लोप होना ही है । इसी एक महान् सद्गुण ( स्वामी वात्सल्य ) के कारण हमारा समाज एवं हमारी ज्ञाति भूत कालमें संपूर्ण सुखी एवं कीर्तिवान थी। ये विभाग ज्ञातियें नहीं हैं बल्कि तड़ें हैं । दशा वीसा वगेरा को एक दूसरे से हीन मानना यह अज्ञानता या भूल है । हमारे जैसी समझदार ज्ञातिने, क्षुद्र कारणों से पैदा हुए तड़ों को श्राज दिन तक निभाये यह स्वयं एक बड़े आश्चर्य की बात है। बुद्धि वाद के वर्तमान युग में ऐसे भेदों को तोड़ देना, अनिष्ट रूढ़ियों को बंद करना और समस्त ज्ञाति की एकता करना इसी में हमारी बुद्धिमत्ता है । आज जमाना पलटा है। हमारी प्राचीन जहोजलाली नष्ट हुई है। हमारी ज्वलन्त कीर्ति अस्त हुई है; ज्ञान और एकता अदृश्य हुए हैं और जिन महान् गुणों के कारण हमारे पूर्वजों ने सारे संसार में अपनी कीर्ति पैदा की, वे तमाम गुण आज हमको छोड़ गये हैं। उसके बदले हमारी कौम में परस्पर वैमनस्य, पैर, इर्ष्या, मद और कुसंपका साम्राज्य फैल रहा है । संक्षेप में, हमारी पोरवाड ज्ञाति का शारीरिक, मानसिक, आर्थिक एवं आध्यात्मिक ह्रास हो रहा है । इस अधः पात से बचाने के लिये तात्कालिक उपाय करने की आवश्यकता थी। ऐसे बारीक समय में इस सम्मेलन की योजना की गई है, जो बहुत ही प्रशंसनीय है । यहां आप सबको एक बात की याद दिलाना आवश्यक है कि हमारी श्री अखिल भारतवर्षीय जैन श्वेताम्बर कॉन्फरन्स, मेरे वक्तव्य में मैंने निर्दिष्ट किये हुए विषयों को लक्ष्य में रखकर खजाति की उन्नति के लिये कार्य कर रही है। उसकी कार्यकारिणी समिति के अनेक सदस्यगण यहां हमारे मध्य में उपस्थित भी है। हमारी इस केन्द्रस्थ संस्था के ध्येय को हम हार्दिक अनुमोदन देखें; उसके प्रभावशालो अधिवेरानों में समय २ पर प्रस्तावित किये प्रस्तावों को पुष्टि देव और उन्हें, जहां तक हो, हम आचरण में उतारें यह अत्यंत आवश्यक है। .. स्वागतसमिति की ओर से आपकी सेवा में पत्रिकाएँ पहुँची होंगी। उनके पढ़ने से आपको मालूम हुआ होगा कि इन सब महान् उद्देश्यों को फलीभत बनाने के लिये एक समस्त पोरवाड़ महासंस्था के स्थापित करने की अनिवार्य आवश्यकता है। वह संस्था

Loading...

Page Navigation
1 ... 105 106 107 108 109 110 111 112