Book Title: Mahavir 1933 04 to 07 Varsh 01 Ank 01 to 04
Author(s): C P Singhi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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________________ जिस जाति का भूतकाल उज्जवल नहीं होता, उसका भविष्य कभी भी उज्जवल नहीं होसकता। कुछ युवक इस जाति का सुसंगठित इतिहास तैयार करने के लिये बहुत दिनों से बाट देखते थे। परन्तु इसमें अधिक खचों व कठिनाइयों को देख कर अब तक किसी महाशय ने इसको निर्माण करने का कार्य अपने हाथ में नहीं लिया / सम्मेलन के योग्य कार्यकर्ताओं के उत्साह से और बहुत से उत्माही मित्रों के सहयोग से इस कार्य को पूर्ण करने का काम हाथ में लेते हैं। हर अच्छी तरह से जानते हैं कि इस कार्य को पार लगाने में हिमालय के समान ब। बड़ी कठिनाइएं हमारे मार्ग में आयंगी। पर हम जन्म से ही आशावादी हैं। हमारा यह अटल विश्वास है कि प्रबल इच्छा शक्ति के सामने बड़ी से बड़ी कठिनाइयां दूर होकर कार्य सफल हो जाता है / उपरोक्त तीनों ग्रन्थ बहुत खोज और अन्वेषण के साथ तैयार किये जाएंगे। प्राचीन शिलालेख, ताम्रपत्र, पुराने रेकार्ड्स, संस्कृत, फारसी, उर्द, अंग्रेजी हिन्दी तथजराती भाषाओं में उपलब्ध सैकड़ों नये पुराने ग्रन्थों से इसमें सहायता ली जा रही है / अनेक राज्यों के दफ्तरों से भी इसके लिये सामग्री इकठी की जाने का प्रबन्ध हो रहा है / जहाँ 2 पौरवालों की बस्ती है उन छोटे बड़े सब नगर, शहर और ग्रामों में घूम कर इसको सम्पूर्ण बनाने का प्रयत्न किया जा रहा है। प्राचीन और नवीन अनेक पौरवाल महापुरुषों के इसमें हजारों फोटो संग्रह किये जा रहे हैं। तथा बड़े 2 घरानों का विस्तृत इतिहास सङ्कलन करने का भी इसमें पूरा प्रयत्न किया जा रहा है। उपरोक्त तीनों के सङ्कलन में बड़ी हिम्मत और धन की आवश्यक्ता है। इनके प्रकाशन और सङ्कलन में हजारों बल्कि लाखों रुपयों के व्यय और बहुत बड़े आयोजन की जरूरत होगी / यह कार्य तभी सफल हो सकता है कि जब प्रत्येक पोरवाल बन्धु इस कार्य में तन, मन, धन से सहायता करें। हमे पूर्ण भाशा कि हमारे प्रत्येक पोरवाल बन्धु इस कार्य में हम से सहयोग और सहानुभ प्रदर्शित करेंगे। सम्पादकगणपौरवाल हिस्ट्री पब्लिशिंग हाऊस, सिरोही (राजपूताना