Book Title: Mahavir 1933 04 to 07 Varsh 01 Ank 01 to 04
Author(s): C P Singhi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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( १४ )
रीत या अष्टमार्ग की ओर जाती हुई रोकने के लिये विधवाश्रम जैसी संस्थाएँ स्थापित करना बहुत जरूरी है। ऐसे आश्रमों में रह कर वे सुंदर नीतिमय जीवन व्यतीत कर सकें; स्त्रियोपयोगी विषयों में पारंगत हो कर स्वतंत्रता से आजीविका प्राप्त करने की शक्ति ग्रहण करें और समाज की अन्य बहनों की आत्मोन्नति के लिये वे काम पड़ने पर प्राणार्पण कर सकें यह बात निर्विवाद है ।
पर्दे का रिवाज भी, वर्तमान समय में, अनावश्यक है । वह स्त्रियों की शारीरिक एवं मानसिक प्रगति का अवरोध करने वाला होने से तात्कालिक बंद करने योग्य है । हमारे पूर्वजों के समय में, मुस्लिम शासकों के अत्याचारों के सबब से, उत्तर भारत में 'वह दाखिल हुआ था और इस समय वह अनावश्यक होने से उसका निभाना बुद्धिमत्ता नहीं है । पश्चिम के सुधरे हुए देशों में एवं दक्षिण भारत में यह रिवाज बिल्कुल ही देखने में नहीं आता । इससे मालूम होता है कि समाज के हित के लिये इस प्रथा की बिल्कुल ही आवश्यकता नहीं है।
इसके उपरान्त स्त्री समाज बहुत से कपड़े एवं आभूषण पहनने की विचित्र और निन्दनीय प्रथा चल पड़ी है । उसके प्रति लक्ष्य दौड़ाने की भी आवश्यकता है । शरीर की लज्जा का रक्षण के लिये एवं सर्दी व गर्मी से बचने के लिये कपड़ों की आव'श्यकता है । उसके बदले देखा देखी से या गतानुगतिकता से पुरानी कुरूढ़ियों का पालन करना इसमें विचार शक्ति की कमी मालूम होती है । शरीर के उपर जेवरों का बोझ लादने में भी हमारी स्त्रियें अपना गौरव मानती हैं । परंतु उससे शरीर की सफाई नहीं की जा सकती न बराबर हलनचलन ही हो सकता है । उपरान्त प्रवास और यात्रा के अवसरों पर चोर डाकूओं का भी भय बना रहता है ।
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देश की वर्तमान परतन्त्र एवं निर्धन स्थिति का खयाल करने पर मालूम होता है कि पुरुषवर्ग, और विशेषतः स्त्री वर्ग को अब बारीक विदेशी वस्त्रों का मोह छोड़कर उन्हें अपने देश में ही बने हुए वस्त्र परिधान करने चाहिये । इसी में हमारी महत्ता है, देश का गौरव है और समाज की स्वस्थता है ।
अधिक चूडियों का पहनना यानी चूड़े से तमाम हाथ भर देना यह भी 1. स्त्रियों की स्वतन्त्रता के लिये बाधा करने वाला है इससे स्त्रियों के स्वास्थ्य के ऊपर खराब असर होता है । ऐसा बन्धन उनके ऊपर भार रूप है । इससे उनको अनेक प्रकार की हानियां उठानी पड़ती हैं। इस कार्य के लिये प्रतिवर्ष ६००००) हजार हाथियों का वध होता है । यह बात जैन शास्त्र से सर्गया विपरीत है। इससे हरेक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह इस हिंसक प्रवृत्ति को बन्द करे ।
रेशम का उपयोग भी हमारे समाज में विशेष रूप से होता है। एक गज रेशन के बनाने में हजारों कीड़ों का नाश होता है । उनको गर्म पानी की कढाइयों में डाले