Book Title: Mahavir 1933 04 to 07 Varsh 01 Ank 01 to 04
Author(s): C P Singhi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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१८]
श्री महावीर
पन्यासजी महाराज, श्री० समरथमलजी सिंघी और जवाहरलालजी लोढ़ा से योगिराज ने कुछ बोलने के लिये जोर दिया, आज्ञानुसार उक्त महानुभावों ने योगिराज के वाक्यों के समर्थन में ही भाषण किये ।
दोपहर के समय सम्मेलन की दूसरी बैठक प्रारम्भ हुई । कवि भोगीलाल भाई ने मंगलाचरण रूप 'नमो नमो मंगलमय महावीर ' भजन गाया ।
इसके पश्चात् महिदपुर के एक विद्यार्थी का भजन हुआ। श्री० जवेरचंदजी खंडवा वालों ने 'स्वागत आज तुम्हारो भाई' कविता द्वारा स्वागत किया । भोजकों के दो बालकों ने 'बंधुओं बामणवाड़जी तीरथे रे' गायन किया । तत्पश्चात् जो प्रस्ताव पेश हुए वे अलग एक साथ दिये गये हैं । पांच प्रस्ताव हो जाने बाद एक भजन विद्यार्थियोंने गाया । फिर उमेदपुर व राणा के विद्यार्थियों ने मिल कर योगिराज श्री शांतिविजयजी की स्तुति रूप एक भजन गाया, जिसका एक अंतरा यह है :
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मरुधर को तार दिया ब्रह्मचारी योगी ने ॥ टेक ॥ सोते थे हम सब गफलत की नींद में ।
या जगाय दिया ब्रह्मचारी योगी ने ॥ इस गायन के पश्चात् योगीराज श्री शांतिविजयजी महाराज ने मधुर देशना दी । हाथी दांत का चूड़ा पहिरना नहीं चाहिये इस पर आपने इतना असरकारक उपदेश दिया कि स्त्रियों के कहने पर वालंटियर आकर कहने लगे कि यदि पुरुष मान जांय तो हम हाथी दांत का चूड़ा पहनना छोड़ने को तैयार हैं। पुरुषों को समझाने पर सैकड़ों पुरुषों ने भी त्याग कराने का प्रण लिया । अन्त में सब सभा में यह निश्चय हुआ कि एक दम से चूड़े का त्याग कर देना मारवाड़ के लिये कठिन बात होगी । धीरे २ त्याग हो सकता है । अभी इतनी छूट दे दी जाय कि केवल विवाह के वक्त बींदणी को हाथी दांत का चूड़ा पहिनाया जा सकता है । यह बात सबने स्वीकार करली। बाद में पत्र के लिये प्रस्ताव सभापति की ओर से रक्खा गया जो सर्वानुमति से पास हुआ ।
कल के प्रस्तावों को जनता ने बड़े उत्साह के साथ पास किये। यदि इसी प्रकार जागृति रही तो हमें पूर्ण आशा है कि यह कई टुकड़ों में विभक्त हुई पौरवाल जाति एक दिन अवश्य संगठित हो जायगी जो गौरव भाज केवल इति