Book Title: Mahavir 1933 04 to 07 Varsh 01 Ank 01 to 04
Author(s): C P Singhi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan

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Page 39
________________ : उपसंहार उपसंहार सभापति के उपसंहार के बाद महामंत्री ने सभापति एवं सम्मेलन कार्य में सहायता देने वाले सज्जनों का उपकार मानते हुए निम्नलिखित विवेचन किया: प्रथम ही प्रथम सभापति महोदय ने सूरत से यहां तक पधारने में अनेक कष्टों को सहन कर सम्मेलन के कार्य को सफल बनाने में जो कार्य दक्षता बतलाई है उसके लिये वे धन्यवाद के पात्र हैं। नेक नामदार महाराजाधिराज महारावजी श्री सर स्वरूपरामसिंहजी, जी० सी० आई० ई०, के० सी० एस० आई० साहब बहादुरजी को कोटिशः धन्यवाद है कि जिन्होंने हमारे महा-सम्मेलन को सफल बनाने में तम्बू, रावटियाँ, पुलिस, पल्टन के सिपाही, डाक्टर आदि देने में पूर्ण उदारता बतलाई और साथ ही साथ मोटर के किराये और टोल टैक्स आदि में कन्सेशन (रिवायत) दिला कर सम्मेलन के प्रति पूर्ण सहानुभूति प्रदर्शित की जिससे लोगों ने अधिक प्रमाण में सम्मेलन से लाभ उठाया । अतएव महारावजी साहब की जितनी प्रशंसा की जाय थोड़ी है। हमारी सिरोही नरेश से प्रार्थना है कि वे इसी प्रकार प्रजाहित के कार्यों में पूर्ण सहानुभूति रखकर प्रजा को उत्साहित करेंगे। अलावा इसके सिरोही राज्य के चीफ मिनिस्टर साहब व अन्य राज्य कर्मचारियों ने सहायता की अतएव उनका भी आभार मानना परम कर्तव्य है। .......... नेक नामदार हिज हाईनेस नवाब साहब तालिमोहम्मदखाँनजी साहब बहादुर पालनपुर नरेश का भी उपकार मानना हमारा परम कर्तव्य व सराहनीय है यहां तक कि आपने अपने अनुमवी तम्बूओं के काम करने वालों को मय .१.२ तम्बुओं के भेजने में पूर्ण कृपा ही नहीं की थी परन्तु पाप श्री ने अपने स्टेट का पूर्ण बैण्ड (बाजा) जिसमें करीब ७५ आदमी हैं आदि देने का हुक्म फरमाया था लेकिन जरूरत न होने से उनको कष्ट नहीं दिया गया। धन्य है ऐसे प्रजावत्सल नरेशों को जो अपनी प्रजा के अलावा दूसरों का भी उपकार करने में नहीं.चूकते। इस वयोवृद्ध अवस्था में मरूभूमि के कष्टों को सहन करते हुए प्राचार्य देव अज्ञानतिमिरतरणि कलिकालकल्पतरु श्री विजयवल्लभसूरीश्वरजी महाराज साहब ने अपने शिष्य समुदाय सहित पधार कर जनता के हृदय में जो जागृति

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