Book Title: Mahavir 1933 04 to 07 Varsh 01 Ank 01 to 04
Author(s): C P Singhi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan

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Page 95
________________ उन योद्धाओं से कहा कि "तुम लोग इन दुर्गों में रहो। मेरी पूजा करते रहना जिससे सर्वत्र तुम्हारा विजय होता रहेगा।" इस प्रकार अंबिका देवी ने जिन्हें बसाये वे पोरवाड़ या पोरवाल कहलाये । दूसरी कथा इस प्रकार है कि विष्णु ने श्रीमाल नगर में ४५ हजार ब्राह्मणों और ८० हजार व्यवहारियों को बसाये । फिर दो २ व्यवहारियों के बीच एक २ ब्राह्मण को सुपुर्द करते दश हजार व्यवहारिये कम हुए । इस पर कृष्ण पुरुरवा राजा के पास गये और उससे कहा कि मुझे चौरासी ज्ञातियों की स्थापना करनी है, जिसमें १० हजार व्यवहारिये कम होते हैं । इस लिये तू अपनी प्रजा में से मुझे दश हजार पुरुष सौंप । राजा ने कहा कि मैं मेरे पुत्रों को वहाँ आबाद होने के लिये भेजता हूँ । विष्णु ने इस प्रकार दश हजार पुरुषों को लाकर श्रीमाल नगर में बसाये और वे श्रीमाल नगर की पूर्व दिशा में रहे। . ऊपर की दोनों कथाओं का तात्पर्य एकसा ही है । मल में पूर्व दिशा से आये हुए हैं यह बात 'प्राग्वाट,' 'पूर्वाट' या 'पोरवाड़' (पोरवाल ) आदि शब्दों से स्पष्ट मालूम होती है। प्रारंभ में पोरवाल दशहजार थे लेकिन थोड़े ही समय में उनमें से दूसरी दो ज्ञातियों की उत्पत्ति हुई और उनमें फिर श्रीमाली शामिल हुए जिससे उनकी संख्या बहुत अधिक बनी रही । पाटण के राज दरबार में श्रीमालियों के साथ पोरवाड़ भी अपना कारोबार चलाते हैं, इससे मालूम होता है कि श्रीमाली और पोरवाड़ गुजरात में साथ २ ही गये होंगे । पोरवाड़ों को सात- दुर्ग मिलने से उनमें १ प्रतिज्ञानिर्वाह (लिये हुए प्रण का पालन करने वाले ), २ स्थिरप्रकृति, ३ प्रौढ़ वचन ( भारदस्तवाणी ), ४ बुद्धिमत्ता, ५ सबका भेद समझने की शक्ति ६ दृढ़ मनोबल और ७ महत्त्वाकांक्षा-ये सात सद्गुणों का आगमन (निवास) हुआ। ओसवाल जिस प्रकार असल राजपूत हैं, वैसे पोरवाड़ मूल योद्धा हैं । ओसवालों का विरुद "अरडक मल्ल" है वैसे पोरवालों का बिरुद "प्रगट मल्ल" है। 'प्रगट मल्ल' का अर्थ जाहिर योद्धा होता है । यह बिरुद उन्होंने दीर्घ काल तक निभाया है । पाटण के महाराजा भीमदेव प्रथम के सेनापति विमलशा पोरवाड़ थे। उन्होंने मालवा और सिन्ध के उपर आक्रमण कर विजय प्राप्त किया था। आबू पर विमलवस ही में, आसपास बारह सुलतान और बीच में अश्वारूढ विमलशा की प्रतिमा, करीब ७००-८०० वर्ष पहले का प्राचीनदृश्य है । उस पोरवाड़ वीर योद्धा ने 'बारह सुलतानों के छत्र हरने वाले' की पदवी प्राप्त की थी। वस्तुपाल तेजपाल ने विशल देव के मंत्री की हैसियत से समस्त गुजरात, काठियावाड़, वाकल और लाट की सीमाओं की उस पार अपनी धाक जमाई थी।

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