Book Title: Mahavir 1933 04 to 07 Varsh 01 Ank 01 to 04
Author(s): C P Singhi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan

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Page 94
________________ ( २ ) लोग, निभा लेंगे और आप अपने अन्तःकरण से सहयोग देकर ऐसे भगीरथ कार्य के उत्तरदा यत्व को पूरा करने के मेरे प्रयास को प्रोत्साहन देंगे। ___ जिस स्थान में अपन सब लोग एकत्रित हुए हैं उसके चुनने में आपने अतिशय बुद्धिमत्ता का परिचय दिया है; क्योंकि बानणबाड़जी तीर्थ ऐसी जगह पर स्थित है, जिसकी चारों ओर पौरवालों की आबादी देखने में आती है। सिर्फ इतना ही नहीं लेकिन यह स्थान ऐसा महातीर्थ है जहां भगवान महावीर को कठिन उपसर्ग हुए थे और इसलिए जैनों के लिए यह अतिशय महान् पवित्र स्थान है । तदुपरान्त प्राग्वाट् जाति की उत्पत्ति भी इसी भूमि पर हुई है, ऐसे स्थान पर अपने सम्मेलन के प्रथम अधिवेशन का होना परम सौभाग्य की बात है। सब जातियों के पूर्व इतिहास की तरह, प्राग्वाट् जाति का इतिहास भी, बड़ा रसिक और बोधप्रद है। अपने पास के पालनपुर और आबूरोड स्टेशन से पश्चिम में ४० मील पर, गुजरात और मारवाड़ के सीमाप्रदेश पर, श्रीमाल नगर के प्राचीन खंडहर पड़े हैं और इस प्राचीन जाति का वह महास्थान आज नष्ट होगया है उस । नगर में श्रीमाली ज्ञाति की स्थापना होने बाद कितनेक समूह ( जत्थे ) क्रमशः अलग होकर अपने २ समूह का स्वतंत्र नाम धारण करने लगे और वे समूह आज श्रीमाली ज्ञाति के नाम से नहीं किन्तु अलग २ जातियों के नाम से पहिचाने जाते हैं । ऐसे समूहों में प्रतिष्ठावान् समूह ओसवाल जाति का है परन्तु श्रीमाली ज्ञाति के साथ ओसवालों का जिस प्रकार का संबंध है उस पे बिल्कुल ही उल्टे प्रकार का संबन्ध पौरवाल ज्ञाति के साथ है । ओसवालों की उत्पत्ति श्रीमालियों में से हैं जब कि पोरवालों की शाखाएँ श्रीमालियों से गूंथी हुई है । उत्पलदेव परमार नामक राजकुँवर और ऊहड़ नाम का श्रीमाली वणिक ये दोनों, अपने २ कुटुम्बियों से नाराज होकर, श्रीनगर छोड़कर चले गए और राजपूताने के मध्य भाग में रेतीले रण के बीच उष (ऊह ) वाली एक जगह में उप अथवा ओसनगर नामका नया नगर बसाया। उसके बाद श्रीमाल नगर की स्थिति दिन दिन खराब होने लगी, लूटेरों के जत्थे आक्रमण करने लगे और नगर लूटा जाने लगा। इस संकट से मुक्ति पाने के लिए महाजनोंने मिल कर चक्रवर्ती पुरुरवा राजा की सहायता लेने का निश्चय किया। राजा ने उनकी हकीकत सुनकर अपने खास चुने हुए दश हजार सुभटों ( वीरों) को श्रीनगर की रक्षा के लिये भेजे । - इन वीर योद्धाओं के आते ही नगर का दुःख मिट गया। इन योद्धाओं के ठहरने के लिये नगर से बाहर पूर्व दिशा में एक स्थान नियत किया था वहाँ अम्बिका देवी का मन्दिर था। योद्धागण देवी की पूजा करने लगे जिससे सर्व स्थल में वे विजय पाते गये । अपनी विजय-यात्रा से खुश होकर दिवाली के अवसर पर उन्होंने अम्बिका देवी की महापूजा की । देवी उनपर प्रसन्न हुई और एक रात्रि में सातदुर्ग (किले ) खड़े कर

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