Book Title: Mahavir 1933 04 to 07 Varsh 01 Ank 01 to 04
Author(s): C P Singhi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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उपसंहार सहन किया है, उनके हृदय की प्रशंसा जितनी कीजाय थोड़ी है। यहाँ पर इतना कह देना जरूरी समझता हूँ कि यह अव्यवस्थ कष्टों का कारण जनता का धारना से अधिक प्रमाण में आने से पैदा हुआ है। स्थान जंगल में होने की वजह से इतने बड़े समुदाय के वास्ते हरेक के लिये संतोषदायक व्यवस्था करना हमारे सामर्थ्य से बाहर था। अतएव मैं हरेक महानुभाव से इसके लिये क्षमा प्रार्थी हूं। - मुझे जो कार्य पहिले करना था उसको मैं कुछ विलम्ब से कर रहा हूं। भाज कल अकसर हम लोग पतासे बांट कर ही धर्म की प्रभावना समझते हैं मगर सचे स्वामीवत्सल्य का परिचय देने वाले तीन नौकारसी करने वाले महाशयों ने समाज को एक नमूना कर दिखाया है कि खाली अपनी प्रशंसा में टाणे मौसर करने वाले लाखों रुपयों का व्यय कर लक्ष्मी का दुरुपयोग करते हैं उसकी बनिसबत इन उपरोक्त तीनों महाशयों को धन्य है जिन्होंने अपनी लक्ष्मी का सव्यय किया है। अतएव मैं निम्न लिखित तीनों महाशयों का उपकार मानता है और उनकी उदारता के लिये हार्दिक धन्यवाद देता हूँ।
(१) श्रीमान् किस्तूरचन्दनी आईदानजी लूणावा (२) श्रीमान् तेजाजी खूमाजी कवराड़ा (३) श्रीमान् तराचन्दजी जैसाजी भैसवाड़ा
हमारे समाज के हृदय से सेवाभाव रखने वाले स्वयंसेवकों ने अपने समाज की भक्ति का जो सच्चा परिचय दिया है, उनको मैं कभी भूल नहीं सकता और उनके कार्य से हम लोग बहुत प्रभावित हुए हैं। अतएव में उनका उपकार मानता हूं।
इस स्थान पर यह कहना अनुचित नहीं मालूम होगा कि यदि इस सम्मेलन को पूर्ण सफल करने में कोई त्रुटि रह गई है तो उसका भी सहज परिचय देना समय सूचकता से बाहर नहीं है और मुझे पूर्ण विश्वास है कि मेरे स्वर्गीय भ्राता श्रीमान् भभूतमलजी जवानमलजी सिंघी की मृत्यु सम्मेलन के पहिले हो जाना ही है। उनकी दृढ़ इच्छा सम्मेलन मरने के लिये भाज से चार वर्ष पहिले थी और उनके मरने के एक मास पहिले ताराचन्दजी दोसी को इसकी रूप रेखा शीघ्रमेव तैयार करने को जो समय पर न हो सकी और उसी के बीच में एक माह के अन्दर उनका देहान्त हो गया। इसी कारण कार्य आगे चलने से रुक गया उनके मरने के दो वर्ष बाद ये विचार उत्तरोत्तर दृढ़ीभूत होते रहे और वे