Book Title: Mahavir 1933 04 to 07 Varsh 01 Ank 01 to 04
Author(s): C P Singhi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan

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Page 47
________________ निमंत्रण पत्रिका [३t स्वर्गीय भ्यायाम्भोनिधि जैनाचार्य श्रीमद् विजयानन्द सूरीश्वर (प्रसिद्ध नाम श्री प्रास्मारामजी ) महाराज ने अन्तिम अवस्था के समय पंजाब के जैनों के हृदय का दर्द पहचान कर उनको आपके सुपुर्द किया था। तदनुसार आप श्रीगुरुदेव के ध्येय की पूर्ति के लिये अपने जीवन में महान् परिश्रम उठा कर पंजाब में जैनत्व कायम रखने में सफल हुए हो। ___ तदुपरांत श्री महावीर विद्यालय की स्थापना करके तथा श्री आत्मारामजी महाराज के पट्टधर की पदवी को सुशोभित करने की जैन जनता की आग्रहयुक्त विनति को मानकर पंजाब में ज्ञान का झण्डा फहरा कर अपने सद्गत गुरु महाराज की आन्तरिक अभिलाषा को पूर्ण किया। मापने गुजरानवाला, वरकाणा, उम्मेदपुर तथा गुजरात काठियावाड़ वगैरह स्थलों में ज्ञान-प्रचार की महान् संस्थाओं को स्थापित कर और जगह २ पर जैन समाज में फैले हुए वैमनस्य एवं परस्पर मत भिन्नता आदि को मिटा कर जैन-जनता पर बड़ा भारी उपकार किया है । इतना ही नहीं, किन्तु अज्ञानान्धकार में भटकते हुए जैन-बन्धुओं को धर्म का मार्ग बताकर तथा उनमें ज्ञान का संचार करके उनको सच्चे जैन बनाने में जो भगीरथ श्रम उठाया है उसकी हम जितनी कदर करें वह कम है । ___ आपके इन सब महान् उपकारों से तो जैन-जनता किसी भी प्रकार उऋण नहीं हो सकती, फिर भी फूल के स्थान पर पत्ती के रूप में आपको 'प्रज्ञानतिमिरतरणि कलिकालकल्पतरु ' बिरुद अर्पण करने को हम विनयपूर्वक तत्पर हुए हैं और आप इसको स्वीकार करके हमारी हार्दिक श्रमिलाषा अवश्य पूरी करेंगे और हमारे उल्लास की वृद्धि करेंगे ऐसी आशा हैं । श्रीसंघ की प्राज्ञा से, विनीत चरणोपासक सेवकगण - दलीचंद वीरचंद, भबूतमल चतराजी, डाह्याजी देवीचंद, श्री वामणवाड़जी तीर्थ (सिरोही राज्य) ) गुलाबचंद डड्ढा, मिती वैशाख बदी ३ गुरुवार सं० १९६० रणछोड़भाई रायचंद मोतीचंद ता. १३ अप्रैल सन् १६३३ ईसवी रमादि भी संघ के सेवक....

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