Book Title: Mahavir 1933 04 to 07 Varsh 01 Ank 01 to 04
Author(s): C P Singhi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan

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Page 20
________________ महावीर श्री पौरवाल सम्मेलन यह पवित्र तीर्थ श्री महावीर भगवान् की उपसर्ग भूमि होने के कारण जैनियों के लिये खास यात्रा करने योग्य है किन्तु इसके चारों ओर जंगल ही जंगल होने से यात्री कम माते जाते हैं। नाने में किसी प्रकार का भय नही है फिर भी प्रख्याति कम होने से बहुत से यात्रियों को तो मालूम ही नहीं है कि हमारा भी यहां कोई तीर्थ है। परन्तु हर्ष है कि अबकी बार चैत्री भोली का उत्सव एवं पौरवाल महासम्मेलन दोनों इसी स्थान पर हुए और इस कारण इस तीर्थ से जो अनभिन्न थे वे भी इसे जान गये । करीब पांच हजार भन्यजनों ने यहां भाकर 'नवपद आराधन उत्सव मनाया । भात्मोन्नति के लिये की गयी तपस्या और उत्सव पूर्णिमा के दिन सानंद पूर्ण होगया। प्राचार्यदेव का आगमन प्राचार्य श्री विजयवल्लभपूरिजी महाराज अपने शिष्य परिवार सहित चैत शुक्ला १२ के दिन वहाँ पधारे । मौजूदा संघ ने आपका खूब जोरदार स्वागत किया । सेठ भभूतमलजी चतराजी ने ३०१) चढ़ावा बोलकर प्राचार्य देव के स्वागत का नेतृत्व ग्रहण किया । चैत्र सुदी १३ के दिन प्राचार्य महाराज की अध्यक्षता में श्री महावीर जयन्ती का उत्सव मनाया गया। जिसमें बाबू गुलाबचंदजी साहब दृट्वा भादि कई एक विद्वानों के माननीय भाषण हुए । योगीराज का आगमन परम योगिराज श्री शांतिविजयजी महाराज चैत्र शुक्ला १५ के दिन पधारे। जिस समय वालंटियरों ने आकर सूचना दी कि योगिराज भा रहे हैं, उस समय जनता में आनन्द उमड़ आया। हजारों भादमी आपके स्वागतार्थ एवं दर्शनार्थ मील भर भागे दौड़े गये । सेठ कपूरचंदजी केशरीमलजी ने ५०१) चढ़ावा बोलकर योगिराज के स्वागत् का नेतृत्व ग्रहण किया । पन्यासजी का प्रागमन दो हजार मनुष्यों का एक संघ पन्यासजी श्री ललित विनयजी महाराज की अध्यक्षता में आया । उसका भी खूब स्वागत किया गया। और सेठ कपूरचन्दजी ऋषभदासजीने ३६५) चढ़ावा बोलकर स्वागत का नेतृत्व ग्रहण किया।

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