Book Title: Mahavir 1933 04 to 07 Varsh 01 Ank 01 to 04
Author(s): C P Singhi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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पोरवाल समाज का सफल सम्मेलन
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श्री बामणवाडी के कम्पाउण्ड के बाहिर सम्मेलन के डेलीगेटों के लिये वीरनगर की रचना :
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ता० ११ अप्रेल सन् १६३३ ई० को सम्मेलन का कार्य शुरू होने वाला था । tara सम्मेलन के कार्यवाहक १५ दिन से पहिले ही आने शुरू हो गये थे । समाज के उत्थान के लिये इस परिषद् की मंत्रणा बहुत समय से चल रही थी और उसको क्रियात्मक रूप देने के लिये लोगो में अपूर्व उत्साह था । इसके प्रथम अधिवेशन को संगीन सफल करने के लिये समाज में जागृति अपूर्व थी । आमंत्रणों के जवाबों को देखते इस बात की खातरी होगई कि विशाल मानव मेदनी इस अधिवेशन को सफल बनाएगी । इस पर से ही श्री बामणवाड़जी के कोट के बाहिर की जमीन में वीर नगर बसाया गया । नगर में अनेक तम्बू वं रावटिएं लगाई गई और ता० ११ अप्रेल सन् १९३३ को यह नगर मानव मेदनी से खचाखच भर गया ।
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वीर नगर के दरवाजे पर ही स्वागताध्यक्ष ने अपना डेरा रक्खा था इससे सार सम्हाल करने का बहुत सुभीता था । स्वागताध्यक्ष वयोवृद्ध हैं परन्तु युवकों से अच्छे कार्यकर्त्ता हैं । वीर नगर में पदार्पण करते ही बांई ओर एक खेमे में उतारा समिति का उसके बराबर के खेमे में तपास ऑफिस रक्खा गया था । इसके द्वारा यात्रियों को ठहराने एवं हर बात को बताने का अच्छा प्रबन्ध हो रहा था । डेरे तंबू और रावटी द्वारा बसाया हुआ नगर जब खचाखच भर गया तब मंदिर के कोट के बाहिर सामने की ओर दूर २ तक के खेतों में डेरे तम्बू लगवाकर आनेवाले ठहराये गये । इस सम्मेलन में करीब पांच हजार मनुष्यों के आने की संभावना थी परन्तु आशा से कहीं अधिक मनुष्यों का आना हुआ। इसमें कई एक कारण थे जैसे - स्वागत समिति का अच्छा प्रचार कार्य, तीर्थ का स्थान, नवपद आराधन उत्सव, आचार्य श्री विजय वल्लभसूरीश्वरजी व योगीराज श्री शान्तिविजयजी महाराज का आना श्रादि । इन सब कारणों के मिलजाने से १७ - १८ हजार मनुष्यों का आना हुआ। सम्मेलन ने वीर नगर के सामने एक बाजार लगवा दिया था जिसको देख कर लोग यह कहा करते थे कि सम्मेलन ने तो जंगल में मंगल कर दिखाया |