Book Title: Mahavir 1933 04 to 07 Varsh 01 Ank 01 to 04
Author(s): C P Singhi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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महावीर समाज में इस मासिक पत्र को प्रकाशित करने की आवश्यहा क्यों और कैसे समझी गई इस पर एक पूरा प्रस्ताव पास हो चुका है फिर भी इस पर विशेष रूप से प्रकाश डालने के लिये और जाति संबंधी पत्र की उपयोगिता को समझाने के लिये इसी अंक में अन्यत्र स्वतंत्र लेख छपा है उसकी ओर पाठकों का ध्यान खींचते हैं। ___ इस समय पोरवाल समाज की दशा अत्यन्त सोचनीय है। इसका सुधार होना अत्यन्त आवश्यकीय है और जिसके लिये प्रयास भी हो रहा है। परन्तु अधिक प्रयास की आवश्यक्ता है। जब तक रोग साध्य होता है तब तक ही उसका इलाज हो सकता है । अभी रोग असाध्य नहीं हुआ है केवल कष्ट साध्य ही है। कुछ परिश्रम करने से उसका समूल नाश हो सकता है। जाति के नेता कहलानेवाले, समाज की उन्नति चाहने वाले, बात २ में धर्म की दुहाई देनेवाले, धर्मगुरू कहलाने वाले सब ही धनी मानी प्रतिष्ठित महा पुरुषों से तथा सर्व साधारण से हमारा यही साग्रह और सविनय निवेदन है कि यदि आप वास्तविक समाज की उन्नति चाहते हो, नहीं, नहीं यदि आप अपने समाज को इस संसार में टिका रखने की प्रबल इच्छा रखते हों तो अब आप कटिबद्ध होकर इस जाति की हित चिन्ता में, इसके कल्याण के लिये उचित मार्ग की खोज में लग जाइये । - हमारे समाज की कैसी सोचनीय गृहणीय दशा हो रही है यह किसी विचारशील मनुष्य से छिपा हुआ नहीं है। यों तो समस्त जातियों में विद्या की कमी है परन्तु उनमें से पौरवाल समाज तो विद्या सरस्वती देवी के लाभों से बिलकुल वंचित है । जब पुरुषों की यह अवस्था है तो फिर स्त्री जाति तो विद्या के विषय में बड़ी सुन्न है । उनके लिये काला अक्षर काली भैस के घराबर है यह कहने में किसी प्रकार की अतिशयोक्ति नहीं है। जब हमारे समाज में स्त्रियों की ऐसी दशा है तो किसी भी प्रकार की उन्नति की आशा करना आकाश पुष्प के समान है। अब तक हमारी माताएं, बहिनें तथा गृह लक्ष्मीएं सुशिक्षित तथा सुसंस्कृत नहीं होंगी तब तक हम किसी भी प्रकार से उन्नति नहीं कर सकते । बोनापार्ट नेपोलियन ने फ्रॉन्स के माताओं की सुशिक्षा को ही उस देश की उत्क्रान्ति का मूल समझा था।