Book Title: Mahavir 1933 04 to 07 Varsh 01 Ank 01 to 04
Author(s): C P Singhi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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प्रकाशक का वक्तव्य है इस लिये यहां पर थोड़े शब्दों में इसके जन्महेतु को लिख देते हैं। पौरवाल जाति को उसकी अज्ञानानन्द भरी मीठी निद्रा से जगाना ही इसका प्रधान कर्त्तव्य होगा । इस पर से साफ जाहिर है कि इस पत्र का कार्यक्षेत्र उदार और विशाल न होकर केवल पोरवाल जाति तक ही परिमित रह जायगा । परन्तु हमारा यह दृढ़ विश्वास है कि किसी विशेष समाज या जाति को जगाने के लिये यही शैली
आवश्यक तथा लाम प्रद है । इस शैली को अंगीकार कर केवल अथवा मुख्यतया उसी जाति सम्बन्धी अधिक चर्चा की जायगी।
पौरवाल समाज को सच्चे रास्ते पर लाने और जाति में क्रान्ति पैदा करने के लिये कोई पत्र नहीं है और उसको साप्ताहिक रूप में निकाल कर जाति की सेवा करने का मुख्य ध्येय था। परन्तु बिना ग्राहकों के ऐसा साहस करना मुनासिब न समझ कर इसको मासिक के रूप से शुरु करते हैं। हमें इस बात का अनुभव है कि एकदम इस समाज में साप्ताहिक चलना कठिन व दुश्कर है इसका मुख्य कारण यह है कि अभी तक समाज में ज्यादातर अविद्या का प्रचंड जोर है। विद्या के मीठे फल से सर्वथा वंचित है। इस पत्र का मुख्य उद्देश सामाजिक सुधार है इस लिये इसकी उत्पत्ति हुई है। बुरे २ रस्म तथा अनर्थकारी कुरीतियों को जड़ मूल से उठा देने के लिये यह पत्र सर्वदा अपनी आवाज उठाने को तैयार रहेगा।
इस पत्र का वार्षिक मूल्य रु० २) रखने का विचार था परन्तु इसके उद्देशों का विशेष प्रचार लक्ष में रख कर इसका वार्षिक मूल्य रु० १) रखा गया है। और यह साहस अल्प मूल्य में इस पत्र को देने का केवल इस लिये किया गया है कि सर्व साधारण इसका लाभ उठा सकें। हमारे समाज में वाचन की रुचि बढ़े यही इमारा ध्येय है। इस साहस से जो कुछ हानि होगी उसे सहन करने को सम्मेलन तैयार है।
सर्व साधारण को यह सुन कर प्रसन्नता होगी कि इस पत्र का सम्पादन करने में अवैतनिक कार्य करने के लिये श्रीयुत् ताराचंदजी डोसी, श्रीयुत् भीमाशंकरजी शर्मा वकील, श्रीयुत् बी० पी० सिंघी ( सिरोही) व श्रीयुत् खबदासजी जैन, पौरवाल (शिवगंज) ने कबूल किया है। इस लिये सम्मेलन उनको धन्यवाद देता है। इन व्यक्तियों का पोरवाल समाज को नवीनता से