Book Title: Mahavir 1933 04 to 07 Varsh 01 Ank 01 to 04 Author(s): C P Singhi and Others Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan View full book textPage 7
________________ महावीर ' (निबन्धमाला) निज देश हित करना सदा, यह एक ही सुविचार हो। परचार हो सद् धर्म, का, याचार पूर्वाचार हो॥ वर्ष १ वी० २४५६ वैशाख, ज्येष्ठ, प्राषाढ़ १९६० अंक १-२-३ पौरवाल जाति की महिमा प्रेषक-ठाकुर लक्ष्मणसिंह चौधरी देवास-सीनियरः . - remain भी वीर प्रभु पद पंकजों में मन हमारा लीन हो! श्री सिद्ध पर प्राचार्य ऊपाध्याय गुण तल्लीन हो ! भी साधु मादेशांनुरागी वाग्विहारी मीन हो ! '- श्री वीर प्राग्वाट् जाति महिमागानगरिमाधीन हो ॥१॥ है पूर्व की महिमा अनूठी, पूर्व है मंगलप्रदा। ." - ... है समुग्वळ पूर्व जिसका, मान होता है सदा ॥ श्री जैन मत उद्धार कर्ता वीर जन्मे पूर्व में । होता उदय सम नाश कर्ता सूर्य शशि का पूर्व में ॥२॥ है पूर्व का वायूहि . वर्षा काल को लाता यहां। यह पूर्व ही धन धान्य दे भब भी जिलाती है जहाँ ॥ महिमान्विता इस पूर्व से पूर्वज हमारे पाए थे। परवीर शतसत रक्षिता श्रीमाता अनमो भाए थे ॥३॥Page Navigation
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