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________________ (१३) प्रान्त में स्थापित करने की आवश्यकता है। .. आज पश्चिम के देश, विज्ञान की खोज एवं उसकी प्राप्ति में बड़ी प्रगति कर रहे हैं। यदि अपने देश और समाज को प्रगतिमान बनाना हो तो, अपने युवकों को छात्रवृत्तिये ( Scholarships ) देकर परदेश में भेजने की आवश्यकता है । समाज, देश और धर्म का, विविध दृष्टि से, अभ्यास करने के लिये, इतर समाज और देशों या राष्ट्रों का सर्व देशीय एवं तुलनात्मक अनुभव प्राप्त करने के लिये अच्छे २ पुस्तकालयों की कम आवश्यकता नहीं है । इस संबंध में भी समाज को अपना लक्ष्य दौड़ाना आवश्यक है। ___ आधुनिक काल में देश का व्यापार उद्योग नष्ट हो गया है; देश की उत्पादिका शक्ति कम या बंद होती जा रही है। हमारी शराफी सड़ती जा रही है; अॉट टूटती जा रही है। सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि मध्यम वर्ग को जीवन निर्वाह की भी मुसीबत मालूम हो रही है। ऐसे बारीक समय में, जैन युवकों को, हुनर उद्योग एवं कला कौशल की शिक्षा देने की अनिवार्य आवश्यकता है । जिससे भविष्य में, वे बेकारी से अपना पिंड छुड़ा कर, अपने पैरों पर खड़े हो सकें । इस. दशा में भी विचार करने का समय, समाज के हितचिन्तकों के लिये, निकट आ चुका है। .. उपर के विषय में जितना ही महत्त्व पूर्ण विषय कन्याओं की शिक्षा का है । एक सुशिक्षित माता सौ शिक्षकों की बराबरी कर सकती है । जिसके हाथ में. हिंडोले की डोर है, वही इस संसार पर शासन करती है । भावी प्रजा के ऊपर अच्छे संस्कार डालने हों, और आदर्श गृह जीवन उपरान्त देश धर्म और समाज की-सच्ची उन्नति के दर्शन की आकांक्षा हो, तो समाज के हृदय के दूसरे फेफड़े को, एक के जितना ही प्राणवाय की आवश्यकता है। इससे स्थान २ पर लियोपयोगी संस्थाएँ खोलने की आवश्यकता है। बालकों एवं बालिकाओं की योग्यता का आधार मुख्यतः माता के ऊपर निर्भर होता है । जो शिक्षा बचपन में माता के द्वारा प्राप्त हो सकती है, वह बड़ी उमर में, अनेक वर्षों तक, परिश्रम करने पर भी नहीं प्राप्त होती । इससे बालकों की शिक्षा से भी, बालिकाओं की शिक्षा विशेष महत्व का कार्य है, ऐसा कहने में किसी प्रकार की अतिशयोक्ति होने का संभव नहीं है । कन्याओं की उच्च शिक्षा के लिये हमको जालन्धर महाविद्यालय के जैसी आदर्श संस्था के स्थापित करने की परम आवश्यकता है। .... जैन समाज में विधवाओं की स्थिति भी कम दयाजनक एवं शोचनीय नहीं है । उन की संख्या, समाज की कुल व्यक्तियों की संख्या से, चौथाई हिस्से की है। उसमें भी बाल विधवाएँ एवं युवती विधवाएँ जो कष्टमय जीवन व्यतीत .. करती हैं, वह घटना हमारे समाज के लिये बेशक लज्जाजनक है। ऐसी विधवाओं के . प्रलोभन एवं अपहरण के किस्से सुनकर हमको कम्प का अनुभव होता है । उनको विप
SR No.541501
Book TitleMahavir 1933 04 to 07 Varsh 01 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC P Singhi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1933
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size18 MB
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