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' पोरवाल सम्मेलन मि० एस० आर० सिंघी ने सम्मेलन के नाम आये हुए निम्न लिखित सज्जनों के तार व पत्र पढ़ कर सुनाये । इनमें पाबू पूरनचंदजी नाहर कलकत्ता, सेठ कस्तूरभाई लालभाई अहमदाबाद, सेठ अमरचंदजी कोचर बैंकर और श्रानरेरी मजिष्ट्रेट फलोदी, सेठ मोहनलाल मगनलाल जौहरी अहमदाबाद, जैन श्वेताम्बर कान्फ्रेंस, लल्लू भाई गुलाबचंद जौहरी, मुनिराज श्री जयंतविजयजी, हिमाशुविजयजी, सेठ फूलचंदजी झाबक फलोदी, जैन युवक संघ बम्बई, सिरोही के हिज हाइनेस महाराजा साहब और दीवान साहब, सेक्रेटरी साहब, सेठ मणीलालजी नानावटी सर सूबा बड़ौदा, डाक्टर बालाभाई नानवाटी बड़ौदा आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। - पाटन वाले श्री भोगीलाल रतनचंद कवीश्वर ने 'स्नेह करूं सन्मान" कविता में योगनिष्ट श्री शांतिविजयजी महाराज व आचार्य भी विजयवल्लभसूरिजी महाराज को बंदना करते हुए मंगल गान किया। ___ इसके पश्चात् सम्मेलन के सभापति सेठ दलीचंद वीरचंदजी ने अपना प्रभावशाली भाषण पढ़ कर सुनाया। फिर विषय विचारिणी समिति के सदस्यों का चुनाव होकर पहिली बैठक का कार्य पूर्ण हुआ । रात्रि को इसी पंडाल में विषय विचारिणी समिति की बैठक हुई जो रात के १॥ बजे तक होती रही।
दूसरा दिवस - ता. १२-४-३३ के दिन प्रातःकाल योगिराज श्री शांतिविजयजी महाराज
और पन्यास श्री ललितविजयजी महाराज छत पर खड़े थे कि उनको देख कर सैकडों आदमी दर्शनार्थ नीचे खड़े हो गये और 'गुरुदेव की जय' 'शांतिविजयजी की जय' के नारे लगाने लगे। योगिराज ने अवसर देख कर उपदेश देना प्रारंभ किया। आपका उपदेश बहुत असरकारक था।
आपने फरमाया कि अपना और अपने समाज का उद्धार चाहते हो तो विश्व प्रेम करना सीखो। आपस में संगठन रक्खो जगत् में अहिंसा धर्म का जितना प्रचार कर सकते हो, करो । स्त्रियों को संबोधन करके कहा कि अहिंसा धर्म के अनुयायी होकर हाथी दांत का चूड़ा पहिरती हो यह किसी प्रकार उचित नहीं है। इस पर बहनों ने हाथी दांत का चूडा न पहिरने का बचन दिया। फिर