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________________ अभिनन्दन पत्र एवं उपाधि-समर्पण [४१ शान्त, दान्त, महंत अनन्त गुरूभक्त विद्याप्रेमी सतत उद्यमी श्रीमान् पन्यासजी महाराज . श्री १०८ श्री ललितविजयजी महाराज पवित्र सेवा में अभिनन्दन पत्र एवं उपाधि-समर्पण पन्यासजी महाराज श्री! . आपश्री ने इस समय तक श्री गुरु महाराज की अनन्य भक्ति करके उनके विद्याप्रचार के प्रयत्नों को अमल में लाने की गरज से अपने खाने पीने और विहार वगैरा के संबंध में अथक परिश्रम उठा कर जैन समाज की उमति के लिये जो कार्य किया है, उससे आकर्षित होकर श्रीबामणवाड़जी तीर्थ में श्रीनवपदी की चैत्री ओली पर एवं श्री. अखिल भारतवर्षीय पोरवाल महासम्मेलन के अवसर पर भारतवर्ष के भिन्न भिन्न प्रान्तों से आकर एकत्रित हुआ जैन संघ आपका अन्तःकरणपूर्वक आभार मानता है। ... ... जैन समाज की उन्नति के क्षेत्र में आपने जो कठिन तपश्चर्यायुक्त योग दिया है, उसका बदला चुकाने में हम असमर्थ हैं, फिर भी आपके उपकार के स्मरणार्थ हम भक्तिपूर्वक "प्रखर-शिक्षा-प्रचारक मरुधरोद्धारक" पद अर्पण करते हैं और शासनदेव से प्रार्थना करते हैं कि श्राप भविष्य में भी दीर्घ काल तक इसी प्रकार जैन समाज की सेवा करते रहें। श्री संघ की माज्ञा से विनीतश्री बामणवाड़जी तीर्थ, ) भभूतमल चतराजी, दलीचंद वीरचंद, मिती वैशाख वदी ३ गुरुवार । ड डाह्याजी देवीचंद, रणछोड़भाई रायचंद मोतीचंद सं० १६६०, ता. १३ अप्रेल । सन् १९३३. गुलाबचंद डड्ढा, आदि श्री संघ के सेवक
SR No.541501
Book TitleMahavir 1933 04 to 07 Varsh 01 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC P Singhi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1933
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size18 MB
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