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________________ . मंहावीर श्री पोरवाल 'जाति-भूषण ' शासन प्रेमी, उदारात्मा, विवेकमूर्ति, ... शान्त सरल स्वभाव श्रेष्ठी। श्रीमान सेठ डाहाजी खूमाजी शुभ निवास मड़वाड़िया ( सिरोही राज्य ) की सेवा में __ अभिनन्दन पत्र एवं 'जाति-भूषण' उपाधि समर्पण माननीय सज्जन महोदय ! आप श्रीमान् ने पोरवाल जाति में जन्म लेकर अपने परोपकारी तथा समाज हितकारी शुभ कर्मों द्वारा, स्वजाति गौरव में अभिवृद्धि करने के साथ, नीतिकार के इस कथन को अक्षरशः चरितार्थ कर दिखाया है किपरिवर्तिनि संसारे मृतः को वा न जायते । स जातो येन जातेन याति वंश समुन्नतिम् ।। - अर्थात् इस नित्य परिवर्तनशील संसार में कौन नहीं मरता और कौन नहीं पैदा होता ? अर्थात् जन्म और मरण यह इस संसार का एक त्रिकालावाध्य नियम अथवा क्रम देखने में आता है। परन्तु जिसके पैदा होने से उसका वंश या जाति उन्नति को प्राप्त हो, वही वास्तव में पैदा हुआ माना जाता है यानी उसी का संसार में जन्म होना सफल माना जाता है। माननीय श्रेष्ठीजी ! मापने अपने सदुपार्जित द्रव्य का, देश काल की प्रावश्यकता को लक्ष्य में रखकर, नीचे दिये हुए जो २ धर्म एवं परोपकार कार्य किये हैं, उनके करने में लक्षावधि रुपयों का व्यय हुमा है, उन कार्यों के करने वाले की अन्तरात्मा में किस प्रकार जाति प्रेम, देश प्रेम एवं धर्म प्रेम का अपार स्रोत बह रहा है, इस बात का भली प्रकार परिचय होता है। ___ यहां आपके पूर्वजों के गौरवशाली जीवन का किंचित् परिचय करना भावश्यक है। भापके पूर्वज श्रेष्ठी रायखेण जी ने, जो कालन्दरी में हुए थे, अपने बाहुबल से उपार्जित द्रव्य का धर्ममार्ग में विनियोग ( व्यय ) करने में ही अपना परम कर्तव्य समझा था। उन्होंने वि० सं० ११६५ में श्री ऋषभदेवजी का महान् मन्दिर कालन्दरी में बनवा कर उसमें प्राणप्रतिष्ठा कराई थी, जो अब तक विद्यमान है।
SR No.541501
Book TitleMahavir 1933 04 to 07 Varsh 01 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC P Singhi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1933
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size18 MB
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