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अभिनन्दन पत्र एवं 'जाति-भूषण' उपाधि समर्पण ४३ संवत् १३६५ में आपके पूर्वजों ने श्री कुलधरजी का जीर्णोद्धार कराकर उसकी प्रतिष्ठा श्री हरिभद्राचार्यजी के हाथ से कराई थी ।
आपने खुद संवत् १६५६ के भयानक दुर्भिक्ष में, रुपये २५०००) का व्यय करके गरीबों को अन्न एवं पशुओं को घास दिलाकर अपनी वंश-परंपरागत उदारता एवं जीव-दया का पहले पहल अपने देशवासियों को परिचय कराया था। संवत् १९६० में रुपये १५०००) के व्यय से मड़वारिया में आपने बगीचा बनवाया था। उसके बाद उसी मड़वाडिया में बालकों के विद्याभ्यास के लिये रुपये २००००) खर्च करके एक पाठशाला का भवन बनवाया था ।
सिरोही रियासत की राजधानी ने सिरोही नगरी में यात्रियों के उतरने व ठहरने के लिये रुपये २००००) के व्यय से धर्मशाला बनवाई, जिससे लोगों को अनहद भाराम पहुँच रहा है ।
मापने संवत् १६५८ में श्री केसरियानाथजी का संघ निकाला जिसमें रुपये ४००००) खर्च किये । सं वत् १९६२ में रुपये २००००) खर्च करके अहाई महोत्सव किया । बाद में सं० १९६९ में रुपये २०००००) दो लाख का व्यय करके श्री शान्तिनाथजी का नवीन एवं भव्य संगमरमर का मन्दिर मड़वाड़िया में बनवाया, जिसकी आकाश-स्पर्शिनी धर्मध्वजा आपकी उज्वल कीर्ति को दिगन्त में फैला रही है ।
आप श्रीमान् सेठ प्रानन्दजी कल्याणजी की धार्मिक पेढ़ी के माननीय प्रतिनिधि भी हैं। आपके परोपकार के प्रकट एवं गुप्त सत्कार्यों का पूरा विवरण करने में हम असमर्थ हैं। संक्षेप में हम इतना ही कहेंगे कि, भाप श्रीमान् ने अपने प्रादर्श जीवन से, देश के दूसरे धनवानों को यह प्रत्यक्ष बोधपाठ सिखाया है कि
"तुम्हें मंजूर है धनरक्षा, तो धनवानो बनो दानी,
कुएं से जल न निकलेगा, तो सड़ जायेगा सब पानी।" अस्तु आपके देश एवं जाति हितकारी सत्कार्यों का विशेष उल्लेख करने की लालसा को रोक कर हम यहां एकत्रित हुए 'श्री अखिल भारतवर्षीय पोरवाल महासम्मेलन' प्रथम अधिवेशन के प्रतिनिधि एवं आपके स्वजाति बन्धुगण, आपके सत्कार्यों की बार २ सराहना करते हुए, आपको "जाति भूषण" की गौरवमयी उपाधि से भूषित करते हैं और श्री शासनदेव से अन्तः