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________________ ( १६ ) सारे समाज में संगठन की भावना पैदा करेगी और हिन्दुओं के वानप्रस्थ आश्रम की तरह, हमारी जाति के सब सुशिक्षित एवं साधन संपन्न बन्धुओं ने ४० से ५० वर्ष की आयु में, अपने स्वार्थ कार्यों को छोड़ कर और निवृत्ति प्राप्त कर ऐसी महान संस्था के साथ मिल जाना चाहिये । और उसके आश्रय के नीचे चलाने वाली प्रवृत्तियों में हाथ बँटाना चाहिये । अतएव यह आवश्यक है कि ऐसी महान संस्था के आश्रय के नीचे एक पोरवाड़ समाज की डायरेक्टरी तैयार करना और उसमें स्वजाति की उत्पत्ति से लेकर आज दिन तक के प्रमाण बंध सच्चे इतिहास का आलेखन करना उससे समाज की प्राचीन एवं अर्वाचीन स्थिति की सच्ची कल्पना आ सकेगी । उसमें प्रकाशित होने वाले पोरवाड़ ज्ञाति के महान् राजनीतिज्ञों, कर्म वीरों एवं महात्माओं के जीवन चरित्रों पर से आधुनिक प्रजा को बहुत कुछ उपदेश मिलेगा । उसी प्रकार हमारे समाज में प्रचलित कुप्रथाओं के निवारण के लिये, शिक्षा प्रचार के लिए, प्रजा में नवीन उत्साह एवं चेतन फैलाने के लिए, एकता और संगठन साधने के लिये, विदेशों में रहने वाली स्वज्ञाति की व्यक्तियों को संस्था के कार्य से परिचित करने के लिये, और समाज की सब व्यक्तियों में परस्पर सहयोग की भावना फैलाने के लिये उक्त संस्था की ओर से एक प्रभावशाली पत्र निकालने की भी अनिवार्य आवश्यकता है । यहाँ उपस्थित हुए आप सब भाई बहनें, ज्ञात्युन्नति के इस महान कार्य में संपूर्ण सहयोग देते रहेंगे, तो मुझे आशा है कि संस्था को हरेक प्रकार की सहायता मिलती रहेगी । ऊपर कही हुई अनेक बातों का हमको विचार करने की आवश्यकता है । ऐसे सम्मेलन की कई वर्षों से आवश्यकता थी जो श्राज हो सका है यह अतिशय हर्ष की बात है। ऐसे संमेलन प्रति वर्ष होते रहेंगे तो समाज का उत्साह चालू रहेगा और हम सब एकत्र मिलकर जाति, समाज, देश और धर्म के अभ्युदय के विचारों का विनिमय करते रहेंगे और यथासाध्य उन विचारों को कार्य के रूप में परिणत करते रहेंगे ऐसी आशा करना अधिक नहीं होगा । लेकिन इसके कार्य-वाहकों का चुनाव योग्य रीति से होना चाहिये । इन उद्देश्यों को सफल बनाने के लिये समितियों और उपसमितियों का चुनाव आप सावधानी से करेंगे ऐसी आशा है । हमारा उद्देश्य यह नहीं है कि समाज में जो पंचायतें, सभाएं समितियाँ आदि मौजूद हों, उनका विरोध किया जाय या उनको हटा दी जायें। बल्कि हमारा यह लक्ष्य होना चाहिये कि ऐसी चालू समितियों को सम्मेलन द्वारा अधिक पुष्ट एवं उन्नतिशील बनावें; उनकी त्रुटियों को दूर कर अर्थात् उनमें समयानुकूल सुधारणा. कर उनको सतत जागृत रखें और उनके साथ सहयोग करके और अनावश्यक रूढ़ियों नाबूद करके समाज को उन्नत बनावें । को मेरे विचारानुसार हमारे समाज के लिये एक ऐसे फण्ड (चन्दा) की आवश्यकता. श्री.
SR No.541501
Book TitleMahavir 1933 04 to 07 Varsh 01 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC P Singhi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1933
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size18 MB
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