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________________ ( १७ ) है जो को-आपरेटीव स्कीम यानी सहकारी योजना के सिद्धान्त पर रचा गया हो और जिस फण्ड की मदनियों से अनाथ एवं विधवाओं की रक्षा, विद्यार्थियों को छात्रवृत्तियें, ग्राम्य पाठशालाएँ, पुस्तकालयों और उत्तीर्ण छात्रों को पारितोषिकों की व्यवस्था हो सके । उसको कार्य के रूप में परिणत करने के लिये कार्यकर्ताओं की आवश्यकता है। ऐसे फंड पारसी, यहूदी, हिन्दू आदि जातियों में स्थापित हैं और उनसे उन ज्ञातियों की बड़ी सुंदर सेवा हो रही है । ऐसे फंडों में से उनके ज्ञातिजनों के लिये औषधालय, अनाथालय वगैरह खोले हैं | उनसे अनाथ वर्ग को सहाय, आर्थिक संकोच वाले विद्यार्थियों को विद्याभ्यास का खर्च, तीव्र बुद्धिवाले विद्यार्थियों को प्रोत्साहन मिलता है । इतना ही नहीं बल्कि अनाथ विधवाओं को आश्रय मिलता है और जाति के कई आवश्यक और उपयोगी कार्यों में उस दृव्य का सव्यय होता है । बन्धु और बहनो! हमारे महान संमेलन के उद्देश्यों को लक्ष्य में रखकर मैंने मेरे नम्र विचार आपके समक्ष उपस्थित किये हैं । आप उनपर पूरा लक्ष देंगे और सम्मेलन में ऐसे प्रस्ताव रखेंगे जिनको शीघ्र ही कार्य के रूप में समाज परिणत कर सके और संचालक गण उन कार्यों में सफलता प्राप्त कर सके । एक हाथ से ताली नहीं बजती । आपके हार्दिक सहकार से चाहे जैसा भी कठिन कार्य पार पड़ सकता है । उसमें धैर्य, अध्यवसाय, एकता और बन्धु-भाव की आवश्यकता है । यहाँ एकत्र हुये भाई-बहन चाहें वे साक्षर हों या निरक्षर, युवक हो या वृद्ध, साधन संपन्न हों या साधन रहित, उन तमाम से मेरी नम्रता से विनय है कि ऐसा अमूल्य अवसर फिर बारबार प्राप्त होनेवाला नहीं है । इससे आप पूरा २ लाभ उठावें और शान्ति, प्रेम, एकता और औदार्य से ठोस एवं रचनात्मक कार्य कर दिखावें । अन्त में मैं युवकों से दो शब्द कहना चाहता हूँ । आप जाति और समाज की आशा है, दिव्य भावनाओं की ज्वलन्त मूर्ति हैं, चेतन और प्रगति के आदर्श दृष्टान्त तुल्य हैं | आप समाज को प्रेरण । पहुँचाने वाले और उसको वेगवान बनाने वाले शक्ति स्वरूप हैं | और आपके ऊपर ज्ञानिजनों की समग्र आशा का अवलम्बन हो तो उससे आप न चौंके । वृद्धों का सन्मान कर, उनके परिक्व एवं प्रखर अनुभव से फायदा उठा कर, उनकी आदर्श दृष्टि आपके हृदय में उतार कर जाति सुधारण के महत्त्व पूर्ण कार्य में अग्रसर हों । भूत काल के इतिहास को देख कर, वर्तमान में स्थित रह कर उज्ज्वल भविष्य काल के स्वप्नों को सिद्ध करने के लिए कटिबद्ध हों । अन्य देशों, समाजों और सम्प्रदायों में से ' अच्छा सो मेरा' समझ कर हमारे समाजरूपी दुर्ग में पड़े हुए की मरस्मत कर उसको उन्नन कीर्तिवन्त एवं आदर्श बनाने के लिये आत्म समर्पण कीजिये ; विजय आपकी ही है । परमेश्वर सब को सद् बुद्धि दो और ऐसा सुवर्ण युग सत्वर आओ ! तथास्तु | 1 ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।
SR No.541501
Book TitleMahavir 1933 04 to 07 Varsh 01 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC P Singhi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1933
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size18 MB
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