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पोरवाल जाति समति की ओर
tw प्रकाशमय समय में किसी जाति को, किसी देश को किसी भी तरह से अन्धकार में रहना नहीं सुहाता । सब जातियों के नेतागण अपनी २ कौम के लिये कल्याणप्रद मार्ग की खोज में लगे हुए हैं। एक प्रकार से सब जातियाँ उन्नति की घुड़दौड़ में आगे बढ़ रही हैं और इसी उद्देश्य के अनुसार पौरवाल जाति श्री खनति की ओर अग्रसर होने का प्रयास कर रही है जिसका ताजा दाखिला आपके सामने मौजूद है कि एक माह पहिले श्री अखिल भारतवर्षीय पौरवाल महासम्मेलन का प्रथम अधिवेशन श्री बामणवाड़जी महातीर्थ में ता० ११-१२-१३ अप्रैल सन् १६३३ ई० को हुआ था और उसमें जो प्रस्ताव १६ पास किये गये हैं उनको देखते यह प्रतीत होता है कि यदि पौरवाल समाज ने इन प्रस्तावों का पूर्णतया पालन किया तो इसमें कोई भाथर्य की बात नहीं है कि जाति की उम्रति थोड़े समय में हो सकेगी और अपने समाज की खोई हुई कीर्ति को पुनः प्राप्त कर सकेगी । इस स्थान पर प्रस्तावों पर उल्लेख करना अनुचित नहीं होगा ।
प्रस्ताव नं० १ -- श्रीमान् राज राजेश्वर महाराजाधिराज महारावजी साहेब सिरोही को धन्यवाद का ।
प्रस्ताव नं० २ - विद्या प्रचार का जिसके लिये एक कमिटी १५ महाशयों की बनाई गई है जो इस विषय पर अपनी रिपोर्ट आगामी अधिवेशन के पहिले प्रबन्धकारिणी कमेटी को पेश करे ।
प्रस्ताव नं० ३ - मृत्यु सम्बन्धी जीमन ( टोणा मौसर ) को बंद करने के विषय में है । यह प्रस्ताव बहुत ही महत्वपूर्ण है और इससे समाज को बड़ी २ हानिएं हो रही है। सम्मेलन के उत्साही कार्यकर्त्ताओं ने इसको पास कर समाज के सामने एक उदाहरण उपस्थित किया है परन्तु खाली कागजों के पन्नों पर पास करके रहने देने से काम नहीं चल सकेगा इसके लिये अधिक प्रयास की शरूरत है ।
• प्रस्ताव नं० ४ -- कन्याविक्रय की महा निन्दित प्रथा को बंद करने के विषय में है जो अति उत्तम है। परन्तु यह प्रथा पोरवाल समाज में जोरों से घर करके बैठी हुई है जिससे समाज को परित्राण पाना बड़ा कठिन है। इसके लिये गांव २ के नवयुवकों को तैयार करना जरूरी है। युवक और युवतियों के सत्याग्रह से ही यह प्रथा बंद हो सकती है जिसके लिये प्रयास करना बहुत जरूरी है।