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________________ Lada महावीर परिचय कराने की आवश्यक्ता नहीं है। पत्र सम्पादन एवं लेखन कला का इनको पर्याप्त अनुभव है और जिसका प्रत्यक्ष परिचय हम अखिल भारतवर्षीय पौरवाल महा सम्मेलन, ( बामणवाड़जी ) के प्रथम अधिवेशन के अवसर पर पा चुके हैं । हमको आशा ही नहीं प्रत्युत दृढ़ विश्वास है कि इन महानुमानों की लेखनी, हमारे निद्रित समाज को जागृत कर उसको कर्तव्य परायण बनाने में अवश्य फलीभूत होगी । अन्त में सर्व साधारण से हमारा यही निवेदन है कि इस पत्र को अपनाने मैं किसी तरह हाथ पीछे नहीं खींचे और साथ ही साथ उन महाशयों से जो कि पत्र मंगा कर केवल ताक में रख देते हैं, हमारी यह प्रार्थना है कि वे जाति हित के लिये एक दफा पत्र को पढ़ें अगर न पढ़ सकें तो अपने इष्ट मित्रों से पढ़ा कर जाति को उन्नति के पथ पर ले जाने की लगन सदा अपने अंदर रखा करें । समर्थमल रतनचन्दजी सिंघी, महामंत्री, श्री श्र० भा० पो० महासम्मेलन, सिरोही. पौरवाल जाति प्रगति की चोर आज कल संसार की समस्त जातियां अपनी २ उन्नति करने का प्रयत्न कर रही हैं। जहां दृष्टि डालते हैं वहाँ सब जातियां तन मन धन से अपने उत्कर्ष के लिये प्रयास करती हुई मालूम पड़ती हैं । सब जगह 'उन्नति' तथा 'सुधार' की पुकार सुनाई देती है । सामाजिक सुधार की अब सबको आवश्यक्ता दीखने लगी है । सब जातियां अपने समाज हित के लिये अपने गिरते हुए समाज को पुनः प्रगति के मार्ग पर लाने के लिये इन दिनों घोर परिश्रम कर रही हैं | स्थान २ पर सभाएं स्थापित हो रही हैं । उपदेशकों का पूरा प्रबन्ध किया जा रहा है । आर्यसमाज किस जोश व उत्साह से कार्य कर रहा है. यह किसी से छिपा नहीं है । यदि सच पूछा जाय तो इस शताब्दी में गाढ़ निद्रा से सोई हुई हिन्दु जाति को जगाने का महत्वपूर्ण कार्य आर्यसमाज ने ही किया है ! स्त्री जाति में ज्ञानभानु का प्रकाश फैलाने का आर्यसमाज ने निस्संदेह बहुत ही प्रशंसनीय कार्य किया है । कहने का तात्पर्य यह है कि इस शताब्दी के
SR No.541501
Book TitleMahavir 1933 04 to 07 Varsh 01 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC P Singhi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1933
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size18 MB
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