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प्रगति का साधन पत्र ज्ञान कराना चाहिये । उनमें जो २ सामाजिक कुरीतियां हो और जो उनकी या राष्ट्र की प्रगति प्राप्त करने में बाधाकारक होती हों, उन कुप्रथाओं के परित्याग के लिये उन समझाना चाहिये ।
ये सब कार्य बिना ज्ञाति पत्रों के नहीं हो सकते । क्योंकि देश में दुनिया भर की खबर फैलाने वाले एवं राजनैतिक चर्चा करने वाले जो पत्र निकलते हैं, उनके संपादक ज्ञातियों की छोटी २ बातों को अपने पत्रों में स्थान नहीं देते हैं, न वे ज्ञातियों में नित्य प्रति घटनेवाली भली बुरी सामाजिक घटनाओं के संबंध में अपने विचार ही जाहिर करते हैं । कोई सज्जन किसी ज्ञाति की कैसी भी प्रावश्यक चर्चा सार्वजनिक पत्र में प्रकाशित कराने के हेतु से लिख भेजता है, तो उस व्यक्ति को पत्र सम्पादक की ओर से जवाब मिलता है कि हमारे पत्र के कीमती कालम ज्ञातियों की निकम्मी चर्चा के लिये नहीं है । ' ज्ञाति में एक धनवान आदमी ने विद्याप्रचार के लिये कुछ रूपये दिये। उसकी यदि उचित प्रशंसा की जाय तो दूसरे धनवान भी देखा देखी सहायता देने के लिये तत्पर हो सकते हैं । प्रथम दान देनेवाले व्यक्ति की प्रशंसा में यदि कोई लेख लिख कर प्रकाशित करने के लिये भेजा जाय, तो सार्वजनिक पत्र वाले उमे Refused with thanks अर्थात् 'आभार सहित अस्वीकृत' रिमार्क के साथ वापस लौटा देते हैं । अथवा जाति में किसी ने अपनी कन्या के रूपये लेकर उसको बूढे खूसट या रोगी के साथ ब्याह दी या ब्याह ने के लिये वह तत्पर हुआ है, और अगर उसके विरुद्ध यथेष्ट आन्दोलन नहीं किया जायगा तो उस कन्या का भविष्य जीवन अन्धकारमय हो जायगा । उस आन्दोलन के लिये जातीय पत्रों की आवश्यक्ता अनिवार्य है, इसमें किसी प्रकार का सन्देह या मतभेद नहीं है ।
वर्तमान युग को लोग यंत्रयुग भी कहते हैं । रेल, तार, मोटर, स्टीमर, बेतारके तार ( Wireless messages ), टेलीफोन, रेडीयो और वायुयान अर्थात् हवाई जहाजों के जरिये लोग पूर्व कालकी अपेक्षा बहुत ही कम समय में एक देशसे दूसरे देशमें सफर कर सकते हैं । महीनों का प्रवास आज वे घंटों में पूरा कर सकते हैं । इसी प्रकार मुद्रण यंत्र यानी छापखानों की खोज के बाद एक व्यक्ति के विचार हजारों लाखों बल्कि करोड़ो व्यक्तियों तक पहुंच सकते हैं । जैसे तालाब या समुद्र के स्थिर और शान्त जलमें एक छोटा सा भी कंकर