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महावीर . खोकमत ( Public Opinion ) को अपने अनुकूल बनाने का साधन अखबार न हो, वह चाहे कितनाही बड़ा क्यों न हो, चुनाव में विजयशाली नहीं हो सकता। अर्थात् जिसकी तरफसे अखबार में अान्दोलन न हुआ हो उसको ज्यादह मत ( Votes ) मिलना मुश्किल है। ... ____ सार्वजनिक पत्रों की आवश्यक्ता को समझने के बाद कोई व्यक्ति यह सवाल शंका के तौर पर कर सकता है, कि देशमें जब इतने अनगिनती पत्र निकलते हैं तब फिर ज्ञातियों रूपी संकुचित मर्यादा को उत्तेजना देनेवाले अनुदार पत्रों की क्या आवश्यक्ता है ? इस का जवाब यह है कि ज्ञातियों की चर्चा सार्वजनिक अखबार वाले नहीं लेते हैं यह बहुत ही कम लेते हैं। यहां पर कोई यह भी सवाल कर सकता है कि राष्ट्रीय भाव प्रधान वर्तमान युगमें ज्ञातियों रूपी छोटे छोटे समूहों को टिकाये रखने की भी क्या जरूरत है ? जहां विश्वबन्धुत्व ( Universal brotherhood ) की आदरणीय और उदार भावना संसार में फैल रही है, ऐसे समय में छोटी २ दल बन्दीयों को उत्तेजना देना क्या उचित है ?
इसका उत्तर यह है कि जात पांत तोड़क सुधारकों के भगीरथ प्रयत्न करने पर भी जातियां या ज्ञातियां टूटी नहीं है; हां, अलबत्ता उनके बन्धन कमजोर जरूर हुए और होते जारहे हैं ! जब तक भारतवर्ष में छोटे छोटे गिरोह या समूहों के रूप में ज्ञातियों का अस्तित्व है, तब तक उन को सुधारना, उनको देश के उपयोगी बनाने का प्रयास करना यह प्रत्येक देशभक्त का परम कर्तव्य है। भारतका उद्धार या तो ऐसे छोटे छोटे समूहों को प्रगतिशील बनाने से होगा या उनका अस्तित्व ही मिटा देने से अर्थात् उनका सर्वथा नाश कर देने से होगा। इस दृष्टि से जब तक ये ज्ञाति रूपणी सरिताएं भारतवर्ष के भिन्न २ भागों में बह रही हैं ओर जन समाज उनके जलको पीने तथा नहाने धोने के काम में लाते हैं, तब तक उनके जल को हर तरह से शुद्ध बनाये रखना अत्यन्त जरूरी है । उनमें सबसे पहले तो अक्षर ज्ञान का फैलाना परम कर्तव्य है । उसके बाद उनको यह सिखाना कि देश के प्रति भी तुम्हारा कुछ कर्तव्य है । देशमें कहां क्या चल रहा है, नेतागण समय २ पर क्या आन्दोलन किस हेतु उठाते हैं। देशके ऊपर जब संकट आवे तब उनका क्या कर्तव्य है, इत्यादि बातों का उनको समुचित