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प्रगति का साधन पत्र
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गोदी में काम करने वाला गरीब से गरीब मजदूर मी अखबार खरीदना और पढ़ना अपना एक नित्य का कर्म समझता है ।
भारत में भी, दूसरे प्रान्तों में, अच्छे अच्छे अखबार निकलते हैं । सार्वजनिक पत्रों के सिवा शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ी हुई जातियों में अपनी २ जातिके लिये दैनिक, साप्ताहिक एवं मासिक वगैरा निकलते हैं। ऐसे पत्रों से क्या फायदे होते हैं यह बात आज किसी विचारशील व्यक्ति को समझाने की आवश्यक्ता नहीं है । बहुत से लोग कहते हैं कि यह युग स्पर्धा का है और इसका खास सिद्धान्त Survival of the fittest यानि सर्वोत्तम का ही संग्राम में विजय पाने का है। जो व्यक्ति योग्य नहीं है, जिसमें किसी विशेष प्रकारकी शक्ति नहीं है, वह इस युग में विजयशाली नहीं हो सकता । यहां सग्राम से मेरा मतलब शस्त्रास्त्र से परस्पर लड़ने से यानि हिंसात्मक युद्धों से नहीं, किन्तु संसार में जीवित रहने के लिये अन्य जातियों और व्यक्तियों से की जाने वाली स्पर्धा यानी जीवन-संग्राम के मुकाबले से है।
उर्दू भाषा के प्रख्यात शायर अकबर इलाहाबादी ने एक स्थान पर लिखा है "खींचो न कमानों को, न तलवार निकालो ; अब तोप मुकाबिल है, अखवार निकालो। "
अर्थात धनुष की कमानों को मत खींचो, न म्यान में से तलवारें बाहर निकालो । जबकि तुम्हें तोपों से मुकाबिला करना है, तो तुम्हारे श्रात्मरक्षण के निमित्त, अखबार यानि वर्तमान पत्र निकालो ! इस लेख के शीर्षक के नीचे अंग्रेजी भाषा की जो उक्ति उद्धृत कीगई है, उस का मतलब यह है कि लेखनी तलवार से भी अधिक शक्ति वाली है। यहां लेखिनी से मतलब अखबारों की शक्ति से ही है। अखबार वाले अपनी लेखनी के आन्दोलन के जरिये दुनिया में असंभवित घटना को संभावित और संभवित को असंभवित बना देते हैं । जिन देशों में समाज और राज्य कार्य के करने वाले जनता के अभिप्रायानुसार चुने जाते हैं, वहां बड़े बड़े अग्रेसरों के पक्ष को समर्थन करनेवाले खास अखबार होते हैं या चुनाव के समय जनता में जिसका ज्यादः प्रचार और प्रभाव हो, उसको उतने समय के लिये वे खरीद लेते हैं। जिस अग्रेसर या नेवा के पास