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________________ महावीर डालने से उस में तरंगें उठ कर के धीरे २ सारे जलराशि में फैल जाती हैं। उसी प्रकार एक विद्वान् अपनी लेखनी द्वारा अपने घरके शान्त एकान्त कोनेमें बैठ कर जो कुछ भी लिखता है, उसको पढ़ कर हजारों नरनारी प्रभावित होते हैं । यह बात केवल अखबार या पुस्तकों के साधन से ही संभवित हो सकती है । पुस्तकें निर्दिष्ट विषयोंपर लिखी जाती हैं जबकि एक अखबार या पत्रमें देश, जाति या समाज की अनेकों बातों का ऊहापोह किया जा सकता है । पत्र मासिक हो तो मास भर की, पाक्षिक हो तो पन्द्रह दिन तककी और साप्ताहिक हो तो हफ्ते भर की भली बुरी घटनाओं का अवलोकन या समालोचना उस जाति के खास पत्र में की जासकती है। बिना जातीय पत्र के ये सब बातें नहीं हो सकती । इस लिये आज कल जाति सम्बन्धी पत्रपत्रिकाओं की आवश्यक्ता को हरेक छोटी बड़ी ज्ञाति वाले समझने लगे हैं। ____ हमारे सिरोही राज्य में जातीय पत्र पत्रिकाएं पहले किस जाति में निकली और वे कैसे बन्द हो गई उसका उल्लेख करने से इस लेख का कलेवर बहुत बढ़ जाने का संभव है। इस लिये अखिल भारतवर्षीय पोरवाल महासम्मेलन के विवेकी कार्यकर्ताओं को धन्यवाद देकर ही सन्तोष मानता हूँ कि जिन्होंने इस " महावीर" मासिक को प्रकाशित करने के समयोचित प्रस्ताव को कार्यरूप में परिणित किया है । मैं आशा करता हूं कि पोरवाल समाज के विवेकी भाई बहन " महावीर" को अन्तःकरण से अपना कर स्वयं महा-वीर बनेंगे और पोरवाल समाज के पुनरुत्थान के इतिहास में अपना नाम सुवर्णाक्षरों से लिखवायेंगे । ॐ शान्तिः।
SR No.541501
Book TitleMahavir 1933 04 to 07 Varsh 01 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC P Singhi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1933
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size18 MB
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