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महावीर पहली पत्रिका के रूप में समाज के सामने रक्खे गये जिसके फल स्वरूप यह प्रथम अधिवेशन है। हमारी शासनदेव से प्रार्थना है कि उनकी आत्मा को शान्ति हो । . इस स्थान पर श्रीमान् हजारीमलजी जवानमलजी वांकली निवासी के हृदय की प्रशंसा किये बिना नहीं रह सकते कि जिनका विचार श्री बामणवाड़जी महातीर्थ में अपने खर्चे से पौरवाल सम्मेलन को बुलाने का था जिनका देहान्त भी सम्मेलन के पहिले हो चुका है उनके हृदय में समाजसेवा की लगन अधिक थी। मेरी शासनदेव से प्रार्थना है कि उनकी आत्मा को शान्ति हो ।
सबका उपकार मानते हुए मेरे हृदय को जितनी प्रशंसा नहीं, उतनी प्रशंसा मुझे मेरे उपकारी महानुभावों के उपकार मानने में होती है। हमारी आत्मा के गुणों का विकास करने में जो सहायता हमको विघ्न संतोषियों के उपद्रवों से मिली
और शान्ति का पाठ इन महानुभावों ने सिखाया, उन उपकारियों के उपकार को मानने के लिये कौन सज्जन पीछे रह सकता है। बन्धुओ ! सब शारीरिक गुणों का विकास करने में तो आप सर्व सहायक हैं मगर अात्माओं के गुणों का विकास करने में तो सिवाय उन उपद्रवी महाशयों के और किसको विशेष सहायक माना जा सकता है। केवल दुःख इस बात का है कि हमारी आत्मा ने शान्ति का पाठ सीखा और उनकी आत्मा कषायवश रही। प्रभो ! ऐसे विघ्नसन्तोषी महाशयों को सद्बुद्धि दें। हमारे माननीय देशनायक महात्मा गांधी के समान मारने के पाठ के बदले मरने का पाठ सीखें। केवल कपाल में ही केसर युक्त तिलक लगाने से ही महावीर के सन्नान कहलाने योग्य नहीं हो सकते
और न स्वयं सेवक का बैज लगा कर ही समाज के सेवक बन सकते हैं। महावीर के कथनानुसार पथ पर पदार्पण करने से ही हमको महावीर के अनुयायी होने का हक हासिल है। अतएव हमारा फर्ज है कि हम महावीर के चलाये हुए पथ पर चलें।
* ॐ शान्तिः *