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________________ ( ४ ) रणि राउली शूरा सदा, देवी अंबाली प्रमाण पोरवाड़ परगट्टमल्ल, भरणी न मुकई माण । -- - देवालयों के निर्माता के नाम से पोरवाड़ों ने जैसी कीर्ति संपादन की है, वैसी कीर्ति आज तक दूसरी किसी जाति ने नहीं की। जिन देवमन्दिरों के कारण से जैनों का नाम दुनिया भर में मशहूर हुआ है, उन सब देवालयों के निर्माता पोरवाड़ ही हैं। श्रावू ऊपर का विमल शाह का मन्दिर उसकी अद्भुत शिल्प कला के लिये जगविख्यात है। उसी प्रकार वस्तुपाल तेजपाल के आबू एवं गिरनार पर के देवालय भी उनकी अपूर्व कला के लिये मुल्कमशहूर हैं । प्रख्यात राणकपुर का दहेरासर जो अपनी बनाबट के लिये समस्त विश्व में अद्वितीय है, उसका निर्माता धनाशा नामक नांदिया (सिरोही राज्य) निवासी पोरवाड़ ही है। उसके रवं भे और मुंबजों की समता कर सके ऐसा प्राचीन शिल्प कहीं भी नहीं है । अंबाजी के पास के कुभारिया ग्राम के दहेरासरों के बनाने वाले भी चंद्रावती नगरी के पोर वाड़ ही हैं । संवत् १०८ में शत्रुजय पर के जिनालयों का जीर्णोद्धार हुआ था जो जावडशाह पोरवाड ने कराया था । वल्लभीपुर ( काठियावाड) के पोरवाड़ वणिक काकू की पुत्री अनंगभद्रा ने शीलादित्य के सैन्य में दाखिल होकर और अप्रतिम पराक्रम दिखाकर अमरू वीन जमाल के लश्कर को हरा कर बिखेर दिया था । दानशूरता में पोरवाड़ अन्य किसी जाति के दानवीरों से कम नहीं हैं। विमलशाह एवं उसकी पत्नी श्रीदेवी दान के लिये इतने विख्यात हो चुके थे कि पाटण के भाटों ने उनका नाम “विमल श्री सुप्रभातम्,” "पुण्य श्लोक नल" की तरह, प्रातःस्मरणीय नाम के तौर पर चालू रखने का ठहराव किया था। सं० १७२१ में, मेरु विजय कवि ने रचे हुए वस्तुपाल तेजपाल के रासों पर से मालूम होता है कि, वस्तुपाल तेजपाल ने केवल जैन धर्म और समाज के लिये ही नहीं बल्कि सार्वजनिक कार्यों के लिये भी उदारता से अपार द्रव्य का व्यय किया था। वस्तुपाल, धनवान् एवं सत्तावान् होने पर भी, महान् कवि, विद्वान् , त्यागी और जितेन्द्रिय पुरुष था । पोरवालों की वसति गुजरात, काठियावाड़ और कच्छ में सर्वत्र प्रसरी हुई है । उसी प्रकार मालवा, आबू के आस-पास के प्रदेश (सिरोही राज्य ), मारवाड़ और उनकी छोटी !बस्ती संयुक्त प्रान्तों में और दक्षिण बराड़, हैदराबाद एवं औरंगाबाद वगैरा विभागों में फैली हुई है । पोरवाड़ों की शाखा सोरठीया पोरयाड एवं कपोल ये ज्ञातियें वैष्णव धर्म को मानती हैं। उसी प्रकार शुद्ध पोरवाडों में भी वैष्णव एवं जैन ये दोनों ही धर्म प्रचलित हैं । पोरवाड़ों की एक शाखा जांगडा नामक है वह मुख्यतया जैन है और उसके २४ गोत्र हैं। पोरवाड़ जाति का आदिम स्थान, सिरोही राज्य में आई हुई, पद्मावती नामक नगरी थी। - अन्य ज्ञातियों की तरह पोरवाडों में भी दशा बीसा के भेद हैं। ये भेद गुजरात में ही पैदा हुए हैं और वे सं० १७०० के करीब पड़े हों ऐसा मानने के लिये वास्तविक
SR No.541501
Book TitleMahavir 1933 04 to 07 Varsh 01 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC P Singhi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1933
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size18 MB
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