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________________ एक्यता ही जीवन है ७ नीतिकारक का वाक्य है अल्पानामपि वस्तूनां, संहतिः कार्यसाधिका । तृणैर्गुणत्वमापन्नैषध्यन्ते मत्त दन्तिनः ॥ अर्थात्-छोटी छोटी वस्तुओं के समूह से भी कार्य सिद्ध होते हैं जैसे घास की बटी हुई रस्सियों से मतवाले हाथी बांधे जा सके हैं। संहतिः श्रेयसी पुंसा, स्वकुलै रल्पकैरपि । तुषेणापि परित्यक्ता, न प्ररोहन्ति तण्डुलाः॥ अर्थात्-अपने कुल के थोडे मनुष्यों का समूह भी कल्याण करनेवाला होता है । छिलके से अलग हुवा चावल फिर नहीं उग सका । प्यारे भाइयो! हमें भी अपनी ज्ञाति की उन्नति करने के लिये इस ही मार्ग का अनुसरण करना चाहिये । संसार में प्रशंसा के योग्य वही व्यक्ति है जो अपनी ज्ञाति व वंश की उन्नति करता है। जन्म मरण जग चक्र में, ये दो बात महान् । करेजु उन्नति ज्ञाति की, जन्म्यों सो ही जान ॥ बन्धनो! चेतो, चेतो और ज्ञाति की उन्नति करके समाज का काया पलट करदो, और निद्रा देवी के उपासकों को दिखा दो कि हम क्या कर सक्ने हैं। भवदीय शिवनारायण यशलहा, फक्त तारीख १९-६-३३ ई. मन्त्रीश्री मध्य-भारत पौरवाल संघ, न्यू क्लाथ मार्केट इन्दौर। नोट:-श्री मध्य भारत पौरवाल संघ इन्दौर यह श्री अखिल भारतवर्षीय पौरवाल महासम्मेलन (सिरोही) की एक शाखा है । इसलिये ज्ञाति उन्नति सम्बन्धी जो कुछ लिखना या पूछना हो उपरोक्त पते से पत्र व्यवहार करें ।
SR No.541501
Book TitleMahavir 1933 04 to 07 Varsh 01 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC P Singhi and Others
PublisherAkhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
Publication Year1933
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Mahavir, & India
File Size18 MB
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