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महवार
बुलेटिन न०१
एकता ही जीवन है
प्रिय पोरवाल बन्धुओ! ___ संसार इस वक्त उन्नति की ओर अग्रसर हो चुका है, क्या हम अब भी सोते ही रहेंगे ? बन्धुनो।
एक समय वह था जब अपनी ज्ञाति का नाम भारतवर्ष के कोने कोने में प्रसिद्ध था, और हमारी ज्ञाति धन जन से परिपूर्ण थी, परन्तु अफसोस ! अब हमारा वह सौभाग्य न रहा, हम कई भागों में विभाजित होकर छिन्नभिन्न होगये। प्रिय बन्धुश्रो!
क्या आपने कभी अपनी ज्ञाति की अवनति का कारण का विचार किया है ? यदि किया है, तो फिर किस लिये देर करते हो, हमारी ज्ञाति की अवनति का कारण एक मात्र हमारी ज्ञाति में शाखा भेद का होना है। ज्ञाति बन्धुओ! ___एक ज्ञाति ८ या १० भागों में विभक्त रहकर क्या उन्नति कर सकी है ? क्यों कि हरेक व्यक्ति अपने को ऊंचा रखने, और दूसरे को नीचा दिखाने को उद्यमशील पाया जाता है। भाइयो!
हाल ही में श्री अखिल भारतवर्षीय पौरवाल महासम्मेलन श्री बामणवाड़नी महातीर्थ (सिरोही ) में जो प्रस्ताव पास हुवे हैं वे इस शाखा भेद को बिलकुल मिटा चुके हैं, एवं वहां सर्वानुमत से पौरवाल ज्ञाति की शाखाभेद का विच्छेद हो चुका है। पौरवाल ज्ञाति के वीरो! - यदि हम सब एक साथ मिलकर कुछ कार्य करेंगे तो शीघ्रातिशीघ्र ज्ञाति को उन्नति के शिखर पर पहुंचा सकेंगे, संसार में एकता ही सबसे बड़ी व महत्व की वस्तु है।