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(९) भगवान के सर्व पुत्र परस्पर प्रेम पूर्वक रोटी एवं बेटी व्यवहार में विशेष और विशेष । निकट संबंध में आवे यह बहुत वांच्छनोय है ।
सामाजिक जीवन का सबसे ज्यादा संबंध रोटी-व्यवहार एवं बेटी-व्यवहार से होता है। प्राचीन काल से पोरवाड़ों का रोटीव्यवहार बारह ज्ञातियों के साथ था जो
आज पर्यन्त मौजूद है । परन्तु बेटी-व्यवहार यहाँ के वीशा पोरवाड़ों के साथ ही है । दूसरी जाति के पोरवाड़ों में उसी जाति के पोरवाड़ों के साथ ही संबंध है । जब कि सब की उत्पत्ति एक ही है । वीशा पोरवाड़ पद्मावती पोरवाड़, नेता पोरवाड़, अठावीसा पोरवाड़, दशा पोरवाड़, कपोल पोरवाड़,,जाँगड़ और गाँगरेड पोरवाड़ इन सब में समान गुणधर्म है । लेकिन किसी कारण से अलग २ प्रान्तों में जाकर रहने की वजह से किसी स्थान में रोटी-बेटी व्यवहार है और किसी स्थान में नहीं है।
__ यह युग क्रान्ति युग है । हरेक समाज प्रगति की ओर अग्रसर हो रहा है। इस प्रवाह का हमको पूरा २ लाभ उठाना चाहिये और वह यह है कि जो व्यक्तियें समान गुणधर्म रखती हों, उनके साथ रोटी एवं बेटी व्यवहार जारी करना चाहिये । यह बात स्वयं बड़ी उत्तम है । इसके साथ जैन-शास्त्र सर्वथा संमत एवं अनुकूल है। अमुक समय में किसी कारणवशात् वैमनस्य उत्पन्न होने से अथवा दूर देश में निवास करने से बेटीव्यवहार बंद हो गया होगा, लेकिन अब उन कारणों का अस्तित्व नहीं रहा होने से उनके साथ सब प्रकार का संबंध एवं व्यवहार पुनः शुरू करना चाहिये । विवाह-क्षेत्र को विस्तृत बनाने से संतान नीरोगी एवं शक्तिवान् होंगे और इसके विशाल हो जाने से कुटुम्बियों का आपसका वैमनस्य भी घट जायगा। ऐसा प्रस्ताव 'अखिल भारत वर्षीय ओसवाल सम्नेलन' (अजमेर) एवं 'दिगंबर जैन परिषद' ने किये हैं जो प्रशंसनीय हैं। हाल ही में ओसवालों ने, जिनके साथ अपना कभी संबंध नहीं था ऐसे श्रीमालियों के २५०० घर भरतपुर वगैरा में अपने में मिला लिये हैं। पंजाव में भी, करीब दो वर्ष से, ओसवालों का संबंध, सारी जाति की मंजूरी से, खंडेलवाल ज्ञाति के साथ शुरू हो गया है ।
आधुनिक समय में, हमारे में, कुछ सामाजिक प्रथाएँ ऐसी चल रही हैं जिनके कारण हमारे निधन भाइयों को अधिकतर कष्ट सहन करना पड़ता है। विवाह के संबंध में हमारा प्रधान कर्त्तव्य यह होना चाहिये कि हम सामाजिक नियम बनाकर फिजूल खर्ची को बंद करें जिससे सामाजिक प्रतिष्ठा की चेदो पर हमारे निरक्षर एवं निर्धन भाइयों का बलिदान न होने पाये । सब ज्ञाति भाइयों की संमति से विवाह-संबंधी नियम ऐसे बना लिये जाँय, जिनको सर्वा स्थल में सरलता से कार्यरूप में परिणत करने में सुभीता हो । . अस्पृष्यों की अवगणना और उनके प्रति किया जानेवाला अधर्म आचरण भी एक महान् सामाजिक कलंक है। किस जमाने में और किस प्रकार यह अनिष्ट रूढ़ि समाज में दाखिल हुई, इसके प्रमाण देना निरर्थक है। हिन्दू एवं अन्य शास्त्रों में से